सिक्किम में हुई त्रासदी बिना किसी चेतावनी के नहीं आई। पिछले दशक में ऐसे कई मौके आए हैं जब सरकारी एजेंसियों और शोधकर्ताओं ने सिक्किम में घातक हिमनद झील के फटने से बाढ़ की संभावनाओं के बारे में चेतावनी दी थी। उत्तरी सिक्किम में ल्होनक झील पर सावधानी का मैसेज 2021 में दिया गया था, लेकिन सभी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया गया। और फिर बुधवार को सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया। झील के ऊपर बादल फटने से तीस्ता नदी बेसिन में अचानक बाढ़ आ गई। इस आपदा से 22,034 लोग प्रभावित हुए हैं।
4 अक्टूबर को ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के कारण झील में जल स्तर तेजी से बढ़ गया, जिससे मंगन, गंगटोक, पाकयोंग और नामची जिलों में गंभीर क्षति हुई। ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) तब होती है जब अत्यधिक जल संचय या भूकंप जैसे ट्रिगर के कारण पिघलती हुई ग्लेशियर से बनी झीलें फट जाती हैं, जिससे नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ जाती है।
अध्ययनों के अनुसार, सिक्किम के सुदूर उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित दक्षिण ल्होनक झील, जीएलओएफ के प्रति संवेदनशील 14 संभावित खतरनाक झीलों में से एक है। यह झील समुद्र तल से 5,200 मीटर (17,100 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और लोनाक ग्लेशियर के पिघलने के कारण बनी है। संबंधित ग्लेशियरों के पिघलने के कारण झील का आकार तेजी से बढ़ रहा है।
सैटेलाइट इमेज ने जीएलओएफ घटना की पुष्टि की, जिसमें झील के क्षेत्र में 28 सितंबर को 167.4 हेक्टेयर से भारी कमी देखी गई और 4 अक्टूबर को 60.3 हेक्टेयर हो गई।
नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा 2012-2013 में किए गए एक अध्ययन में झील से जुड़े जोखिमों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें 42 प्रतिशत की उच्च विस्फोट संभावना का अनुमान लगाया गया था।
फरवरी 2013 में “Current Science” Journal में छपा ISRO के दो वैज्ञानिकों और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की एक वैज्ञानिक का एक रिसर्च पेपर सामने आया है। इसमें उन्होंने आगाह किया था कि सिक्किम का साउथ ल्होनक ग्लेशियर पीछे जा रहा है। इसकी वजह से इसके फटने और आपदा की संभावना काफी ज़्यादा है।
फरवरी 2013 में ISRO के दो वैज्ञानिकों और उस वक्त इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से जुडी वैज्ञानिक डॉ. एस एन राम्या ने “Current Science” Journal में छपी इस रिसर्च पेपर में सैटेलाइट डेटा का हवाला देते हुए आगाह किया था कि सिक्किम का ल्होनक ग्लेशियर 1962 से 2008 के बीच 1.9 किलोमीटर तक पीछे जा चुका है। इसकी वजह से झील के टूटने या फटने की आशंका 42% है। इस खतरे को देखते हुए वहां अर्ली वार्निंग सिस्टम्स लगाना बेहद ज़रूरी है।
वैज्ञानिक एस एन रम्या ने साउथ ल्होनक ग्लेशियर पर 2019 में दूसरा रिसर्च पेपर पब्लिश किया था। इसमें कहा गया कि साल 2000 से 2015 के बीच साउथ ल्होनक ग्लेशियर की लंबाई आधा किलोमीटर तक बढ़ गई है। इसकी गहराई औसतन 50 मीटर हो गई है।
2016 में लद्दाख के छात्र शैक्षिक और सांस्कृतिक आंदोलन के सोनम वांगचुक के नेतृत्व में एक अभियान ने जीएलओएफ कार्यक्रम की संभावना के बारे में चेतावनी दी थी। जीएलओएफ घटना को रोकने के लिए ग्लेशियल झील से पानी निकालने के लिए उच्च घनत्व वाले पॉलीथीन पाइप लगाए गए थे। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और स्वचालित मौसम स्टेशन स्थापित करने के लिए हाल ही में एक निरीक्षण किया गया था।
एल्सेवियर जर्नल में प्रकाशित 2021 के एक अध्ययन में दक्षिण लोनाक झील को उच्च विस्फोट की संभावना के साथ संभावित रूप से खतरनाक माना गया।
इस अध्ययन में प्रकाश डाला गया, “ग्लेशियर 1962 से 2008 तक 46 वर्षों में लगभग 2 किमी पीछे चला गया और 2008 से 2019 तक 400 मीटर पीछे चला गया। इससे इस झील की खतरे की क्षमता के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं, क्योंकि निचली घाटी कई बस्तियों और बुनियादी ढांचे के साथ भारी आबादी वाली है।”
2001 की सिक्किम मानव विकास रिपोर्ट ने भी सिक्किम में जीएलओएफ से ‘गंभीर संभावित खतरे’ की चेतावनी दी थी।