छपते छपते
सलमान रुश्दी के बजाय नार्वे के नाटक लेखक जोन फोसे को 2023 का नोबल साहित्य पुरस्कार विजेता घोषित कर दिया गया है। इसके लिए उनका चयन करने वाली कमेटी ने आधिकारिक बयान में कहा के फोसे के नाटकों ने उन लोगों को आवाज दी जो अपनी बात नहीं कह पाते हैं।
डायनामाइट के आविष्कारक विज्ञानी और व्यापारी, स्वीडन के आल्फ़्रेड बर्नार्ड नोबेल (1833:1896) की याद में 1901 में संस्थापित सालाना नोबेल पुरस्कारों के 2023 के विजेताओं की घोषणाओं का सिलसिला जारी है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता की छह अक्टूबर को और उसके बाद 9 अक्टूबर को अर्थशास्त्र के विजेता की घोषणा होगी। इनके विजेताओं को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर (10 लाख अमेरिकी डॉलर) नकद दिए जाते है। चिकित्सा विज्ञान में कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को 2 अक्टूबर को और भौतिकी विज्ञान में पियरे ऑगस्टिनी फेरेंस क्राउसज और एनी एलहुलियर को छोटी तरंगों के इलेक्ट्रॉनों की खोज के लिए तीन अक्टूबर को विजेता घोषित किया गया। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने केमिस्ट्री में नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से मौंगी बावेंडी ब्रूस और एलेक्सी एकिमोव को ‘ क्वांटम डॉट्स ‘ की खोज के लिए घोषित किया। उन्होंने स्वतंत्र रूप ने क्वांटम डॉट्स विकसित किये। क्वांटम डॉट्स क्यूएलईडी तकनीक से कंप्यूटर मॉनिटर और टेलीविजन स्क्रीन को प्रकाश देते हैं। वे एलईडी लैंप की रोशनी में जो बारीकियां दिखाते हैं उनका चिकित्सक जैविक ऊतकों को मैप करने में बेहतर इस्तेमाल कर सकेंगे। कटेलीन कारिको और ड्रयू विजमैन को चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार ऐसी कोविड वैक्सीन विकसित करने के लिए दिया गया है जिसके फलस्वरूप दुनिया भर में लाखों लोगों की जान बच सकी। कारिको चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली 13 वीं महिला हैं।
नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित लोगों की घोषणा नहीं की जाती है। पर ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार साहित्य के लिए जिन्हे पुरस्कार मिल सकता है उनमें लंदन में बसे भारतीय मूल के उपन्यासकार सलमान रश्दी, तंग शिया ओहुआ (चीन) लुडमिला उलित्सकाया (रूस) जापान के हारुकी मुराकामी शामिल हैं। रुश्दी को नोबेल पुरस्कार मिलने की उम्मीद है जिनके ” मिडनाइट्स चिल्ड्रन ” (आधी रात के बच्चे) और ” शैटेनिक वर्सेस ” (शैतान के छंद ) जैसी कृतियाँ समकालीन वैश्विक समाज में आधी हकीकत आधा फ़साना बयां करती है। उनकी लिखी कहानियां हकीकत और कल्पना की उड़ान भर कर विभिन्न पहलूओं को उकेरती हैं। इसके कारण उनकी जान जोखिम में है और वह आतंकी संगठन अलकायदा की हिटलिस्ट में रहे हैं।
ईरान की ‘इस्लामिक क्रांति’ के नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी पर इस्लाम के पैगंबर की बेअदबी करने का आरोप लगा उनके खिलाफ की मौत का फतवा जारी कर दिया था और भारत में कांग्रेस के राजीव गांधी (अब दिवंगत) की सरकार ने मिडनाइट्स चिल्ड्रन पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत पहला देश था जिसने इस उपन्यास को बैन किया। उस वक्त राजीव गांधी की सरकार थी। तब हम यूएनआई न्यूज एजेंसी के मुख्यालय पर बतौर ट्रेनी जर्नलिस्ट तैनात थे। हमने आल इंडिया रेडियों में निदेशक रहे यूएनआई की हिंदी सेवा वार्ता के संपादक काशीनाथ जोगलेकर (अब दिवंगत) के निर्देश पर रुश्दी से लंदन फोन पर और दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के हिंदी विभाग के प्रोफेसर कवि केदारनाथ सिंह (अब दिवंगत) से बातचीत कर अपने सहकर्मी राजेश वर्मा के साथ मिलकर रिपोर्ट लिखी थी जो भारत में हिंदी के लगभग सभी अखबारों में भर-भर पेज छपी थी। केदार जी का साफ कहना था दुनिया में किसी भी साहित्यिक कृति पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए। पिछले बरस अगस्त में न्यूयॉर्क में हमलावरों ने रुश्दी उनका गला काटने की कोशिश की थी, पर वह किसी तरह जिंदा बच गए।
शैतानी आयतें-
1988 में छपी सैटेनिक वर्सेज को रुश्दी ने काल्पनिक कहानी होने का दावा किया है,जो मुबाई से विमान से लंदन जा रहे दो फिल्म कलाकार जिबरील है और ‘वॉयस ओवर आर्टिस्ट’ सलादीन का किस्सा है।विमान को अटलांटिक महासागर के उपर गुजरते वक्त एक सिख आतंकी हाइजैक कर लेता है तो उनसे यात्रियों की बहस छिड़ जाति है। आक्रोशित आतंकी विमान में बम विस्फोट कर देते है और खुद महासागर में छलांग लगाकर बच जाते हैं। पर दोनों की जिंदगी बदल जाती है। पैगंबर लगभग विक्षिप्त जिबरील के सपने में आते है तो वह इस धर्म के इतिहास को नए सिरे से संस्थापित करने की सोचता है। रुश्दी ने जिबरील और सलादीन के किस्से जिस तरह लिखा उसे कट्टरपंथियों ने ईशनिंदा माना। इस्लामी पाकिस्तान में 1990 में रुश्दी को खलनायक के किदार में रख ‘इंटरनेशनल गोरिल्ला’ नामक फिल्म बनी। इस फिल्म पर प्रतिबंध नहीं लगने से रुश्दी दुखी हुए थे।पर उनकी राय मे प्रतिबंध के बाद फिल्म या किताब को ज्यादा लोग देखते या पढ़ते हैं। पाकिस्तान समेत कई इस्लामी देशों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। हमें याद है फरवरी 1989 में मुंबई में रुश्दी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर पुलिस गोलीबारी में 12 लोग मारे गए थे।
एटवुड की लिखी किताब हैंडमेड्स टेल पर भारत में लैला नाम से बनी वेबसीरीज में पितृसत्ता को चरम रूप में दिखाया गया है जिसमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना है जहां किसी महिला को पढ़ने, काम करने, पैसे खर्च करने या गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं है और वह वो सिर्फ बच्चे पैदा कर सकती है। कुछ देशों में गर्भपात पर अबॉर्शन बैन ने उनकी किताब प्रासंगिक कर दी। तंग शिया ओहुआ के परिवार को 1950 के दशक में चीन सरकार ने जेल में बंद कर दिया था। तब वह चार बरस की थी। उन्होंने अपनी कठिनाइयों और अस्तित्व के संकट पर कई किताबें लिखी हैं।
भारतीय विजेता-
अभी तक जिन 9 भारतीयों ने नोबेल पुरुस्कार जीते हैं उनमें गुरुदेव रबिन्द्र नाथ टैगोर, डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमन, हरगोविंद खुराना, मदर टेरेसा, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, अमर्त्य सेन, वेंकटरमन रामकृष्णन, कैलाश सत्यार्थी और अभिजीत बनर्जी शामिल हैं। नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के हमारे समकालीन छात्र रहे अभिजीत बनर्जी को उनकी फ्रांस की पत्नि इस्थर दुफ़लों के साथ 2019 का नेबेल पुरस्कार मिल था। भारत के ही प्रोफेसर अमर्त्य सेन को भी आर्थिक क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। पर अभिजीत जेएनयू के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज में जिन प्रोफेसर प्रभात पटनायक के शिष्य थे उनको यह पुरस्कार अभी तक नहीं मिला है। गुरु-शिष्य दोनों ने ही भारत के प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता नरेंद्र मोदी मोदी के नोटबन्दी उपाय की धज्जियां उड़ा दी थी। अफसोस है कुछ भक्त ने अभिजीत के जेएनयू में पढ़ाई के दौरान छात्रों के आंदोलन के सिलसिले में दिल्ली के तिहाड़ जेल की हवा खाने को इंगित करने के साथ ही उनके दाम्पत्य जीवन के बारे में चटखारे लेकर बोगस बातें फैला दी। उन्हें नहीं मालूम था उनके आराध्य मोदी जी ने भारत में दोपहर मिली इस खबर का संज्ञान लेकर अर्धरात्रि के बधाई टवीट कर देंगे। अचरज है कुछ अति वामपंथियों ने अभिजीत का यह कह मजाक उड़ाया यह छोरा कम्युनिस्ट नहीं लिबरल पूंजीवाद का एजेंट है। अभिजीत को प्रेसीडेंसी कॉलेज (कोलकाता) और जेएनयू में पढ़ने के बाद अमेरिका के हार्वर्ड में आर्थिकी विषय पर फ्रांस मूल की पत्नी इस्थर दुफ़लों के साथ मिल कर वैश्विक गरीबी दूर करने के प्रायोगिक कार्यों के लिए संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार दिया गया था। दुफ़लों को बाद में तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने अपना आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था।
पत्रकारों को नोबेल शांति पुरस्कार-
नोबेल शांति पुरस्कार के बरस 2021 के विजेताओं का
चयन अप्रत्याशित माना गया था। उस बरस अधिकतर
लोगों ने सोचा नहीं था पुरस्कार लोकतंत्र और टिकाऊ
शांति के लिए आवश्यक अभिव्यक्ति की आजादी की
हिफाजत में कलम से लड़ने वाले दो पत्रकारों को संयुक्त
रूप से दिए जाएंगे,जिनमें एक महिला हैं। फिलीपींस की
मारिया रीसा और रूस के दिमित्री ए मुरातोव को नॉर्वे की राजधानी ओस्लो मे नोबेल शांति पुरस्कार कमेटी ने विजेता घोषित किया तो तानाशाही व्यवस्था के खैरख्वाह को बहुत चुभा होगा। नोबेल शांति पुरस्कार 2021 में एक महिला समेत दो पत्रकारों को देना भारत की गोदी मीडिया के लिए थप्पड़ था। अधिकतर लोगों ने सोचा नहीं था उस बार नोबेल शांति पुरस्कार लोकतंत्र और टिकाऊ शांति के लिए आवश्यक अभियक्ति की आजादी की हिफाजत में अपनी कलम से लड़ने वाले दो पत्रकारों को संयुक्त रूप से दिए जाएंगे।
बहरहाल,किसी को नोबेल पुरस्कार मिलना या नहीं मिलना बड़ी बात नहीं है। “वार एंड पीस” के महान उपन्यासकार ,लिओ टालस्टॉय, भारत के अप्रतिम साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद और शांति एवं अहिंसा के विश्वविख्यात प्रेमी महात्मा गांधी को भी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। पर उन सबका व्यक्तित्व और कृतित्व किसी से भी कम नहीं है।
दुनिया में सबसे ज्यादा स्पेन में 52 बरस तानाशाह रहे जनरल फ्रांको के मुखबिर से सिपहसालार बने,कमिलो खोसे सेला को “पास्कुएल दुआर्तो का परिवार “ के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। तब बहस हुई थी किसी तानाशाह के सिपहसालार को यह पुरस्कार देने का औचित्य क्या है। जवाब पुरस्कार देने वाली कमेटी ने यह कह दिया था यह पुरस्कार तानाशाह के सिपहसालार को नहीं बल्कि एक साहित्यिक कृति को दिया गया है।
नोबेल पुरस्कारों में 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर यानी 10
लाख अमेरिकी डॉलर का नकद पुरस्कार दिया जाता है।
धनराशि अवॉर्ड के संस्थापक और स्वीडिश आविष्कारक
अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के मुताबिक स्थापित एक कोष
से मिलने वाले ब्याज से आती है। उन्होंने 355 पेटेंट काराये थे। उन्होंने अपने कारोबार से सारी कमाई का जनकल्याण कार्य मे उपयोग करने एक ट्रस्ट बनाया जिसके कोष में जमा धन पर ब्याज से हर बरस भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, साहित्य और विश्वशांति के लिए कार्य करनेवालों को नोबेल पुरस्कार दिए जाते है।
•लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह बिहार के अपने गांव में खेतीबाड़ी, स्कूल चलाने और किताबें लिखने के काम से अवकाश लेकर इन दिनों दिल्ली आए हुए है।