बनारस में अबतक डेंगू के 125 से अधिक मरीजों की पुष्टि स्वास्थ्य महकमा कर चुका है। इसके साथ सरकारी दस्तावेजों में स्मार्ट कहे जाने वाले वाराणसी में मॉनसून के दौरान गन्दगी, कूड़े, अव्यवस्था और मौसम के उतार-चढ़ाव से सभी घरों में सर्दी-जुकाम से पीड़ित लोगों के साथ जनपद के सभी अस्पतालों में मरीजों की बाढ़ सी आई हुई है। इससे सभी वार्ड और बेड फुल हो गए हैं। जिसपर एलबीएस रामनगर, जिला अस्पताल पांडेयपुर और एसएसपीजी कबीरचौरा में चिकित्सकों के खाली 40 फीसदी पद ने नागरिकों की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है। शहर से लेकर गांवों तक में लोगबाग और छात्र-छात्राएं डेंगू के बढ़ते मामले को लेकर डरे-सहमे हुए हैं। अस्पतालों में ब्लड टेस्ट, प्लेटलेट्स, बेड और इलाज के लिए मरीज और तीमारदारों को दिन-रात एक करना पड़ रहा है। वाराणसी जनपद के सिर्फ दो अस्पतालों में गुरुवार व शुक्रवार को महज दो दिनों में 06 हजार से अधिक मरीज दवा और उपचार को पहुंचे। ‘तक्षक पोस्ट’ ने कबीरचौरा स्थित एसएसपीजी मंडलीय अस्पताल का दौरा कर जमीनी हालात पड़ताल की, पेश है रिपोर्ट।
अस्पताल परिसर में भीड़ और भागदौड़ का नजारा
मंडलीय अस्पताल के डेंगू वार्ड में डेंगू मरीज अपने बेड पर कराहते मिले। वहीं, कुछ तीमारदार अपने पेशेंट को भर्ती और दावा के लिए अस्पताल परिसर में भागदौड़ करते नजर आए। समय सुबह के दस-साढे दस बजे का, पर्ची काउंटर महिला, पुरुष, बुजुर्ग और अपने बच्चों को लिए अभिभावक सैकड़ों की तादात में पर्ची काउंटर पर अपनी बारी के इंतज़ार में थे। ब्लड जांच सेंटर में इनदिनों में जांच के लिए एकदिन का इंतज़ार करना पड़ रहा है। ऐसे मुश्किल घड़ी और वायरल रोगों की बाढ़ के समय जनपद के प्रमुख चिकित्सालयों में डॉक्टरों की कमी मरीज और तीमारदारों को भारी पड़ रही है।
नर्स की लापरवाही से डर गया पेशेंट परिवार-
डेंगू वार्ड में दस दिनों से अपने बेटे सैफ को लेकर भर्ती गंगापुर टाउन निवासी फिरोज कहते हैं हैं कि “जब मेरे बेटे की तबियत ज्यादा ख़राब हो गई थी। अपने आसपास के अस्पतालों में दिखाकर थक गया तो स्थानीय चिकित्सक ने सैफ को कबीरचौरा के लिए रेफर कर दिया। उसका प्लेटलेट्स 10 हजार पर आ गया था। जब मैं पत्नी के साथ बेटे को लेकर मंडलीय अस्पताल आया तो एक महिला नर्स ने बताया कि यहां बेड खाली नहीं है। किसी और अस्पताल में चले जाइये। यह सुनकर हमलोगों के मन में नाउम्मीदी घर करने लगी थी। फिर मैं कबीरचौरा के पास रहने वाले एक परिचित को अपनी समस्या और परेशानियों से अपवगत कराया और मदद मांगी। उन्होंने अस्पताल पहुंचकर कई घंटों की मशक्कत के बेटे को बेड पर भर्ती कराया। लगातार कई दिनों तक चला। बेटे को दवा के साथ खून भी चढ़ाना पड़ा। अब वह अच्छा महसूस कर रहा है।”
सफाईकर्मी की मनमानी और मच्छरों की भरमार-
फिरोज आगे जोड़ते हैं ” मेरे मोहल्ले के पास सड़क है। इनदिनों सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है। निर्माण के दौरान विभाग ने पूरी सड़क को कई स्थानों पर गहराई से खोद दिया है। पूरे बारिश के सीजन में इन गड्ढों में पानी जमता और धूप में सड़ता रहा। इनमें मच्छरों की भरमार है, सफाईकर्मी भी मनमानी करते हैं। यदि इन गड्ढो को सही समय पर भर दिया गया होता हो शायद मेरे बेटे को डेंगू नहीं हुआ होता और दस हजार से अधिक रुपए भी बच गए होते।”
डेंगू के कहर के बीच डॉक्टरों की कमी बनी आफत-
बहरहाल, स्मार्ट सिटी वाराणसी जिले के सरकारी अस्पतालों में 40 फीसदी डॉक्टरों की कमी है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों के वार्डों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की 24 घंटे तैनाती के फरमान को अमलीजमा पहनाना बड़ी चुनौती बनी हुई है। जिला अस्पताल से लेकर मंडलीय अस्पताल और शास्त्री अस्पताल रामनगर में जहां एक भी हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं हैं, वहीं इन अस्पतालों में फिजिशियन से लेकर सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट सहित कई अन्य विशेषज्ञ भी नहीं है। अस्पतालों में चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ की कमी का खामियाजा सीधे तौर पर मरीज व उनके तीमारदारों को भुगतना पड़ रहा है। जबकि, चुनावों में सत्तापक्ष इसी काशी मॉडल की चर्चा कर चुनावों में वोट बटोरने की जुगत में लग जाता है. क्या ऐसे लोग यह समझने को तैयार नहीं कि स्वास्थ्य\इलाज जैसे बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए कम से कम अस्पतालों में चिकित्साकर्मियों की नियुक्ति जनसंख्या के अनुपात में की जाए। ताकि नागरिकों को उनकी सुविधानुसार गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधा मयस्सर हो।
‘मेरी बीमारी के जिम्मेदार नगर निगम और स्वास्थ्य महकमा’
लंका-छित्तूपुर में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले 20 वर्षीय अजय इनदिनों बुखार की चपेट में है। शहर की अस्पतालों में भीड़भाड़ होने के चलते वे मुगलसराय जाकर अपना इलाज कराने को विवश हैं। जिनमें उन्हें काफी पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। अजय ‘तक्षक पोस्ट’ को बताते हैं ” मेरी बीमारी का जिम्मेदार सीधे तौर पर वाराणसी नगर निगम और स्वास्थ्य महकमा है। हमलोग जहां रहते हैं। वहां कूड़े का ढेर लगा रहता है। उसे हटाने को छोड़िये, इधर झांकने तक नगर निगम का कोई सफाई कर्मी नहीं आता है। जल जमाव और रास्ते की बदहाली से पनप रहे मच्छर पढ़ाई के दौरान डंक मारते हैं।
छात्र- छात्राओं में डेंगू को लेकर दहशत-
वह आगे कहते हैं “शहर में बढ़ते डेंगू के मामलों के दरमियान स्वास्थ्य महकमे का कोई भी कर्मी फॉगिंग, एंटी लार्वा दवा का छिड़काव, सैम्पलिंग आदि करना भी उचित नहीं समझा है। क्या हमलोग बनारस में नहीं रहते हैं? मुझे तो ऐसा लगता है कि सम्बंधित विभागों की लापरवाहियों से डेंगू के मच्छर लोगों को डंक मार रहे हैं। और सिर्फ दिखावे के लिए कागजी खानापूर्ति हो रही है। इधर हजारों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र- छात्राओं में डेंगू को लेकर दहशत है।”
बनारस ने डेंगू समेत वायरल पेशेंट की बाढ़-
मरीजों की तेजी से बढ़ती तादात का आलम यह है कि मंगलवार को जनपद के सिर्फ दो बड़े अस्पतालों में साढ़े तीन हजार पर्चे कटे तो वहीं डेढ हजार से अधिक मरीज अपने तीमारदारों के साथ फॉलोअप के लिए डॉक्टरों की ओपीडी तक भागदौड़ करनी पड़ी। इसमें मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा में लगभग 1500 नए पर्चे के अलावा 600 मरीज पुराने पर्चे के साथ इलाज करने पहुंचे। पांडेयपुर स्थित डीडीयू जिला अस्पताल में 1965 नए पर्चे बने तो वहीं 800 मरीज पुराने पर्चे के साथ अपने मर्ज के उपचार के लिए अस्पताल पहुंचे। इनमें से अधिकतर को जांच और दवा के बाद घर पर एहतियात के आराम करने की सलाह दी गई। तो कई गंभीर रोगियों को खाली बेड पर भर्ती कर इलाज किया जा रहा है।
सकते में स्वयं महकमा-
गांव से लेकर शहर तक जल जमाव समेत बिगड़े हालात ने डेंगू के संक्रमण को तेज कर दिया है। मंगलवार तक डेंगू मरीजों का आंकड़ा 125 को पार कर गया है। स्थिति यह है कि स्वास्थ्य महकमे द्वारा चिन्हित हॉटस्पॉट से इतर भी संक्रमित पाए जा रहे हैं। मच्छर कंट्रोल और जागरुकता से सभी प्रयास धराशाई होते दिख रहे हैं। अभी शुरुआती दौर में इस हाल से खुद स्वास्थ्य महकमा ही सकते में है। ताजा मिले चार नए केसेज में गौतम गार्डेन शिवपुर, आईआईटी बीएचयू, लंका और चन्द्रिका नगर कॉलोनी से मिले हैं। मलेरिया विभाग द्वार डेंगू पीड़ितों के संपर्क में आये नागरिकों की जांच कराई जा रही है। साथ ही जागरुकता के लिए घरों में पर्चे बांटे जा रहे हैं। नालियों में एंटी लार्वा दवा का छिड़काव और फॉगिंग कराई जा रही है। बतौर मलेरिया अधिकारी एससी पांडेय “40145 घरों में जांच की गई है। 22 घरों में लार्वा पाया गया है। इनका निराकरण कराकर चेतावनी जारी की गई है।”
चिढ़ा रहे अस्पतालों में खाली चिकित्सकों के खाली पद-
रामनगर स्थित शास्त्री अस्पताल रामनगर में चिकित्सकों के कुल 32 पद हैं, इसमें वर्तमान समय में 16 खाली चल रहे हैं। अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, प्लास्टिक सर्जन, न्यूरो सर्जन ही नहीं है। इस वजह से ओपीडी में आने वाले मरीजों को परेशानी का सामना होता है। सबसे अधिक संकट इमरजेंसी में आने वाले मरीजों के लिए हैं। इसमें ईएमओ के चार स्वीकृत पद में सभी खाली चल रहे हैं। अस्पताल में सर्जन के दो स्वीकृत पद में से एक खाली, रेडियोलॉजी और एनीसथीसिया में तीन-तीन में दो-दो पद खाली है।
मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा में कुल 41 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 30 चिकित्सक हैं। इसमें हृदय रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, चेस्ट फिजिशियन है ही नहीं जबकि कई पदों में भी संख्या स्वीकृत के अनुसार कम हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ के दो पद में एक खाली, एनीस्थीसिया के तीन में एक खाली जबकि रेडियोलॉजिस्ट में तीन स्वीकृत पदों में कोई डॉक्टर नहीं है। पांडेयपुर के दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल में भी चिकित्सा कर्मियों के दर्जनभर से अधिक पद रिक्त हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी-
वाराणसी जिला मलेरिया अधिकारी डॉ एससी पांडेय ने “तक्षकपोस्ट” को बताया कि वर्तमान में डेंगू मरीजों की संख्या 107 हो चुकी है। डेंगू के हाटस्पॉट पर नजर रखी जा रही है। डेंगू प्रभावित इलाकों में वाहक मच्छरों का सफाया किया जा रहा है, ताकि अगले साल डेंगू के केसेज न के बराबर हों। शहर में कंजेस्टेड मानव सेटलमेंट, वेस्टेज, खाली प्लॉट और वाटर लागिंग के चलते शहरी इलाकों में अधिक केस मिले। रोकथाम अभियान और अवेयरनेस से डेंगू को कंट्रोल किया जा रहा है।
वाराणसी में पांच साल के डेंगू मरीजों का डाटा-
वर्ष डेंगू मरीज
2018 881
2019 522
2020 13 कोविडकाल
2021 458
2022 562
2023 125 अबतक
पूर्वांचल में भी डेंगू की दस्तक, बड़ी चुनौती-
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सत्ताधारी दल जिस काशी मॉडल और स्मार्ट सिटी की बात कहते अघाते नहीं है। क्या वे काशी मॉडल की इन खामियों को भी संजीदगी से लेंगे। या फिर सिर्फ चुनावों में ही ध्रुवीकरण के लिए मॉडल और स्मार्ट शहर के मुद्दे उछाले जाएंगे ? पूर्वांचल के जनपदों का विकास का इंजन कहा जाने वाला बनारस, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है, जब इस जिले का यह हाल तो आसपास के सुदूर चंदौली, आजमगढ़, मिर्जापुर, सोनभद्र, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ, बलिया समेत दर्जनों जनपदों में स्थिति क्या होगी ? इसका अंदाजा लगना कोई मुश्किल काम नहीं है। पूर्चान्चल के चंदौली में 03, आजमगढ़ में 14, मिर्जापुर में 35 डेंगू के बढ़ते मामले ने तैयारियों की पोल खोलकर रख दी है।
आंकड़ों में यूपी में डेंगू का टेरर-
अबतक उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जनपद में डेंगू के सर्वाधिक 482 मरीजों की पुष्टि हुई है। गाजियाबाद में 404, लखनऊ में 334, कानपुर नगर में 289, मेरठ में 231, मुरादाबाद में 158, अलीगढ़ में 129 व वाराणसी में 125 मरीज़ मिले हैं। अन्य जिलों में मरीज़ों की संख्या 100 से कम है। डेंगू से गौतमबुद्ध नगर में तीन और गाजियाबाद व फिरोजाबाद में एक-एक मरीज़ की मौत हुई है। वहीं, हरदोई में 4,998, बरेली में 1,481, बदायूं में 805, शाहजहांपुर में 309, सीतापुर में 259, पीलीभीत में 189, संभल में 139 और कानपुर देहात में 102 मलेरिया के मरीज़ मिले हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मलेरिया के पिछले साल 2,149 मरीज़ों के सापेक्ष इस साल 4,990 मरीज़ मिले हैं। चिकनगुनिया के 192, कालाजार के आठ, जापानी इन्सेफेलाइटिस के 22 और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के 495 मरीज़ मिले हैं। जबकि पिछले साल 11 सितंबर तक एईएस के 511 मरीज़ मिले थे और 12 की मौत हुई थी। इस वर्ष अभी तक सिर्फ दो मरीज़ों की मौत हुई है।
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