सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जांच की सुस्त गति और मणिपुर में मौजूदा कानून व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि जांच में प्रगति की कमी के कारण काफी समय बीत जाने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। शीर्ष अदालत ने पाया कि राज्य में कानून और व्यवस्था तंत्र पूरी तरह से चरमरा गई है और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को सोमवार दोपहर 2 बजे व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा।
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शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य पुलिस इस मामले की जांच करने में अक्षम है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि 6,000 एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक केवल सात गिरफ्तारियां क्यों हुई हैं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जांच उल्लेखनीय रूप से सुस्त रही है, गिरफ्तारी या ठोस नतीजों के मामले में बहुत कम या कोई प्रगति नहीं हुई है।
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सीजेआई ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, कानूनी प्रणाली की प्रभावकारिता में जनता के विश्वास में कमी आई है और संवैधानिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है, उन्होंने नियंत्रण खो दिया है। वहां कोई कानून-व्यवस्था नहीं है। अगर कानून-व्यवस्था मशीनरी लोगों की रक्षा नहीं कर सकती तो नागरिकों का क्या होगा?”
इस बीच, सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य सरकार और संबंधित अधिकारी इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील हैं और एफआईआर दर्ज की गई हैं। कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण शून्य एफआईआर में से अधिकांश का स्थानांतरण हो चुका है और कुछ स्थानांतरण की प्रक्रिया में हैं।
मेहता ने कहा कि हमने एक स्टेटस रिपोर्ट तैयार की है। ये तथ्यों पर है, भावनात्मक दलीलों पर नहीं है।सभी थानों को निर्देश दिया गया कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज कर तेज कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि 250 गिरफ्तारियां हुई हैं, लगभग 1200 को हिरासत में लिया गया है। राज्य पुलिस ने महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े वीडियो के मामले में एक नाबालिग समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया।
इसपर सीजेआई ने कहा कि आप कह रहे हैं कि 6500 एफआईआर हैं। लेकिन इनमें से कितने गंभीर अपराध के हैं? उनमें तेज कार्रवाई की जरूरत है। उसी से लोगों में विश्वास कायम होगा। अगर 6500 एफआईआर सीबीआई को दे दी गई, तो सीबीआई काम ही नहीं कर पाएगी। सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि हमें पहले मामलों का वर्गीकरण करना होगा तभी स्पष्टता मिलेगी। इसके लिए कुछ समय लगेगा।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार को एक बयान तैयार करने का भी निर्देश दिया जिसमें वह तारीख बताई जाए जब महिलाओं की मणिपुर में नग्न परेड कराई गई, शून्य एफआईआर दर्ज करने की तारीख, नियमित एफआईआर दर्ज करने की तारीख, दर्ज किए गए बयानों का विवरण और गिरफ़्तारियाँ का भी विवरण हो।
यह देखते हुए कि सभी 6500 एफआईआर का बोझ सीबीआई पर नहीं डाला जा सकता है, शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सरकार के काम, मुआवजे, काम की बहाली, जांच और बयानों की रिकॉर्डिंग की निगरानी के लिए छूट पर निर्णय लेने के लिए पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने पर विचार कर सकती है।