कर्नाटक कैबिनेट ने राज्य में पिछली भाजपा सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण विरोधी कानून को वापस लेने के फैसले की घोषणा की है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार जुलाई में आगामी विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक विधेयक पेश करेगी।
कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच के पाटिल ने कहा, “कैबिनेट ने धर्मांतरण विरोधी विधेयक पर चर्चा की। हमने 2022 में उनके (भाजपा सरकार) द्वारा लाए गए परिवर्तनों को रद्द करने के लिए विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसे 3 जुलाई से शुरू होने वाले सत्र के दौरान पेश किया जाएगा।”
इस पर पलटवार करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने कहा, ”तत्कालीन भाजपा सरकार जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए विधेयक लाई थी… आज कांग्रेस सरकार जबरन धर्मांतरण की सुविधा दे रही है और लोगों को धर्म परिवर्तन कराने का लालच देने वालों को लाइसेंस दे रही है। इसे रोकना होगा।इसलिए मैंने साधुओं से कहा है कि हिंदू समाज की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है। मैंने उनसे कांग्रेस के इस गलत फैसले के खिलाफ महापंचायत करने का आग्रह किया है। समाज की रक्षा के लिए सीधी कार्रवाई की जरूरत है।”
#WATCH | Karnataka Govt's decision to repeal the anti-conversion law introduced by the previous BJP Govt | BJP National General Secretary CT Ravi says, "The then BJP Govt had brought a Bill to stop forcible conversion…Today, Congress Govt is facilitating forcible conversion &… pic.twitter.com/tnmjpOObZQ
— ANI (@ANI) June 17, 2023
मौजूदा अधिनियम में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा के साथ ही बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण पर रोक का प्रावधान है। इसमें 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल की कैद का प्रावधान है जबकि नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर दोषियों को तीन से 10 साल की जेल और न्यूनतम 50,000 रुपये का देना जुर्माना होगा।
ये विधेयक दिसंबर 2021 में ‘लालच’, ‘जबरदस्ती’, ‘जबरदस्ती’, ‘धोखाधड़ी के तरीकों’ और ‘सामूहिक रूपांतरण’ के माध्यम से धर्मांतरण को रोकने के लिए लाया गया था। सरकार ने तब बिल को प्रभावी करने के लिए एक अध्यादेश लाने का फैसला किया था। अध्यादेश को कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 17 मई 2022 को मंजूरी दे दी थी।
विधेयक सितंबर में उस अध्यादेश को बदलने के लिए पेश किया गया था जो प्रभावी था और विधान परिषद द्वारा पारित किया गया था। इस कानून को ‘कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2022’ नाम दिया गया था।
इस बिल का कांग्रेस विधायकों के साथ-साथ ईसाई समुदाय के नेताओं ने भी कड़ा विरोध किया था। इस साल मई में बहुमत से राज्य की सत्ता में आई कांग्रेस ने अब धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने की घोषणा कर दी है।