तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकारों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सांडों को वश में करने के पारंपरिक खेल ‘जल्लीकट्टू’ और बैलगाड़ी दौड़ की वैधता को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्यों के अधिनियम कानूनी रूप से मान्य हैं। कोर्ट ने राज्यों को कानून के तहत जानवरों की सुरक्षा और सुरक्षा को सख्ती से सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया।
Supreme Court upholds the Tamil Nadu law allowing bull-taming sport 'Jallikattu' in the State
Supreme Court says the Prevention of Cruelty to Animals (Tamil Nadu Amendment) Act, 2017, substantially minimises pain and suffering to animals. pic.twitter.com/DPWVNPaArs
— ANI (@ANI) May 18, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “सांस्कृतिक विरासत ग्रंथों और सबूतों से पैदा हुई है, अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।” यह आदेश जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु मे जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक में कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को सांस्कृतिक विरासत माना। कोर्ट ने कहा- तमिलनाडु द्वारा किया गया संशोधन अनुच्छेद 15 A का उल्लंघन नहीं करता। इस खेल को लेकर जो नियम बनाए गए हैं उसे प्रशासन सख्ती से लागू करे।
Supreme Court says 'Jallikattu' is a part of the cultural heritage of Tamil Nadu
— ANI (@ANI) May 18, 2023
तमिलनाडु के कानून मंत्री एस. रघुपति ने ‘जल्लीकट्टू’ की वैधता बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘ऐतिहासिक’ बताया। उन्होंने कहा कि “हमारी परंपरा और संस्कृति की रक्षा की गई है। ”
#WATCH | "Our tradition and culture has been protected," says Tamil Nadu Law Minister S. Regupathy as SC upholds validity of 'Jallikattu'. pic.twitter.com/Xen8MexYno
— ANI (@ANI) May 18, 2023
“जल्लीकट्टू”, जिसे “एरुथाझुवुथल” के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु में पोंगल फसल उत्सव के हिस्से के रूप में खेला जाने वाला- सांड को वश में करने वाला खेल है।
पशु अधिकार निकाय पेटा द्वारा दायर एक सहित याचिकाओं में उस कानून को चुनौती दी गई थी जिसने तमिलनाडु में सांडों को काबू करने के खेल की अनुमति दी थी। याचिकाकर्ताओं ने इन खेलों की अनुमति देने वाले राज्यों के क़ानूनों की वैधता को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि इन खेलों में पशुओं के साथ क्रूरता होती है। संविधान पीठ को ये तय करना था कि क्या राज्यों के पास इस तरह के कानून बनाने के लिए “विधायी क्षमता” है, जिसमें जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ अनुच्छेद 29 (1) के तहत सांस्कृतिक अधिकारों के तहत आते हैं और संवैधानिक रूप से संरक्षित किए जा सकते हैं। दरअसल 2014 मे सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया था लेकिन राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संशोधन कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 के खिलाफ याचिकाओं पर एक बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लेने की आवश्यकता है क्योंकि उनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित पर्याप्त प्रश्न शामिल हैं। पीठ ने बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लिए जाने वाले पांच प्रश्न तैयार किए थे।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि “जल्लीकट्टू” में शामिल क्रूरता के बावजूद इसे खून का खेल नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कोई भी किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं कर रहा है और खून केवल एक आकस्मिक चीज हो सकती है। इसने कहा था कि हालांकि खेल में क्रूरता शामिल हो सकती है, लोग जानवर को मारने के आयोजन में हिस्सा नहीं लेते हैं।
मालूम हो कि शीर्ष अदालत ने अपने 2014 के फैसले में कहा था कि सांडों को न तो “जल्लीकट्टू” कार्यक्रमों या बैलगाड़ी दौड़ के लिए प्रदर्शन करने वाले जानवरों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और देश भर में इन उद्देश्यों के लिए उनके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।