शीर्ष विपक्षी नेताओं ने सोमवार को सामाजिक न्याय पर एक सम्मेलन में जातिगत जनगणना की पैरवी की। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस सम्मलेन में पार्टियों ने अपने हितों को दरकिनार करते हुए, भाजपा से मुकाबला करने के लिए एकता बनाने के मुद्दे पर बल दिया। बैठक में कांग्रेस और राजद ने जाति आधारित जनगणना की मांग की। इस सामाजिक न्याय सम्मेलन की अगुवाई डीएमके ने की, जिसमें डीएमके के एमके स्टालिन, कांग्रेस के अशोक गहलोत, झामुमो के हेमंत सोरेन, राजद के तेजस्वी यादव और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव शामिल हुए।
इस समय इन विपक्षी दलों का बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार पर एक मंच से हमला करना मायने रखता है क्योंकि ये सभी पार्टियां राहुल गांधी की लोकसभा से अयोग्य होने को एक रूप में देखती है और इस मुद्दे पर ये सभी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ एकजुट हैं।
ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, एमके स्टालिन ने कर्नाटक में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा शुरू की गई नई आरक्षण नीति की आलोचना की। स्टालिन ने कहा कि वर्तमान आरक्षण इस आधार पर अधिक दिया जा रहा है कि कौन बीजेपी को वोट दे रहा है और कौन नहीं।
I express my gratitude to all the leaders, who took part in the first national conference of @aifsoj.
All journeys start with a single step and we have started ours today!
I also thank @PWilsonDMK who co-ordinated and organised this event successfully! pic.twitter.com/VGEznmt7KV
— M.K.Stalin (@mkstalin) April 3, 2023
जहां स्टालिन ने आरक्षण की बात की, वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव ने जातिगत जनगणना के लिए एक मजबूत मामला बनाया और कहा कि बिहार में ‘महागठबंधन’ सरकार पहले ही जाति आधारित सर्वेक्षण की घोषणा कर चुकी है। उन्होंने कहा कि यह एक चिंता का विषय है कि जब छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारें ओबीसी के लिए अधिक आरक्षण देना चाहती हैं, तो राज्यपालों ने इसे रोक दिया।
अशोक गहलोत ने सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा की वकालत की और कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर परिवारों के लिए उनकी जरूरतों के अनुसार सामाजिक सुरक्षा की मांग की है। उन्होंने कहा कि समान विचारधारा वाले दलों को जाति आधारित जनगणना के लिए आगे आना चाहिए और उन्होंने विपक्षी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इसके लिए केंद्र पर दबाव बनाने का भी आग्रह किया।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि जब तक सामाजिक न्याय नहीं होगा, तब तक आर्थिक समानता नहीं होगी। उन्होंने कहा, “सभी को समान अवसर और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। यह आवश्यक है कि हम सामाजिक न्याय के लिए लड़ने के लिए एक साथ आएं।”
झारखंड के मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि इस देश में किसी भी संस्थान में पिछड़े वर्गों की उपस्थिति नगण्य है। सोरेन ने कहा, ‘अगर हम अभी ठोस कदम नहीं उठाएंगे तो आने वाली पीढ़ियां बहुत दर्द सहेंगी।’
तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि अभी भी कुछ दल हैं जो बीजेपी से लड़ना नहीं चाहते हैं और जोर देकर कहा कि यह भूरे रंग में रहने का समय नहीं है, बल्कि यह सफेद या काले होने का समय है। उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मौजूदा सरकार से निपटने के प्रयासों में शामिल होने का आह्वान किया।
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने आरोप लगाया कि बीजेपी जातिगत जनगणना से इसलिए भाग रही है क्योंकि उसका वैचारिक संरक्षक आरएसएस चाहता है कि ‘वर्ण व्यवस्था’ बनी रहे।
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण उनके लिए अवसरों की खिड़कियां खोलने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, इसके साथ आर्थिक विकास भी होना चाहिए। उन्होंने कहा, “आर्थिक विकास को कुछ लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। पिछले दो वर्षों में, 40.5 प्रतिशत संपत्ति का सृजन एक प्रतिशत आबादी ने किया है। हमें कॉरपोरेट सांप्रदायिक गठजोड़ से लड़ना होगा।”
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि अगर भारत के भविष्य की कल्पना करनी है, तो जाति, वर्ग, धर्म और पंथ के बावजूद लोगों को साथ लेना होगा।
इस सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करने वाले दलों में द्रमुक, कांग्रेस, झामुमो, राजद, टीएमसी, आप, भाकपा, माकपा, समाजवादी पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, एनसीपी, IUML, भारत राष्ट्र समिति, MDMK, राष्ट्रीय समाज पक्ष, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी, VCK, मनिथनेय मक्कल काची, कोंगुनाडु मक्कल देसिया काची और द्रविड़ कज़गम शामिल थे। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और बीजू जनता दल इस सम्मेलन में शामिल नहीं थे।