सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी शहरों और ऐतिहासिक स्थानों का नाम बदलने की मांग करने वाली याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया, जिनका नाम कथित तौर पर “आक्रमणकारियों” के नाम पर रखा गया है। ये याचिका भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में ‘बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों’ के नाम पर रखे गए ‘प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों’ के मूल नामों का पता लगाने के लिए ‘नामकरण आयोग’ बनाने मांग रखी थी।
जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका के मकसद पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह उन मुद्दों को जीवंत करेगा जो “देश को उबाल पर लाकर खड़ा कर देंगे”। फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा कि देश के इतिहास को उसकी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को परेशान नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह तो भारतीय इतिहास है। आप उसे अपने हिसाब से तब्दील नहीं कर सकते और आज भारत में लोकतंत्र कायम है। आप भूतकाल के लिए वर्तमान में बदलाव की मांग कर रहे हैं। देश में पहले ही बहुत से मुद्दे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है, जिसके कारण भारत ने सभी को आत्मसात कर लिया है। उसी के कारण हम साथ रह पाते हैं। अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति ने हमारे समाज में फूट डाल दी। आइए हम वापस आएं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “हिंदू धर्म एक धर्म नहीं है बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। हिंदू धर्म जीवन का एक तरीका है और हिंदू धर्म में कोई कट्टरता नहीं है। अतीत को मत खोदो जो केवल वैमनस्य पैदा करेगा। देश को उबाल पर नहीं रख सकते।”
उपाध्याय ने अपनी याचिका में प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के “मूल” नामों को पुनर्स्थापित करने के लिए केंद्र को एक ‘पुनर्नामकरण आयोग’ गठित करने का निर्देश देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि विदेशी आक्रमणकारियों ने इन जगहों का नाम बदला था।
याचिका में कहा गया है कि जबकि मुगल गार्डन का नाम हाल ही में अमृत उद्यान रखा गया है। सरकार ने आक्रमणकारियों के नाम पर सड़कों का नाम बदलने के लिए कुछ नहीं किया। याचिका में कहा गया है कि इन नामों को जारी रखना संविधान के तहत गारंटीकृत संप्रभुता और अन्य नागरिक अधिकारों के खिलाफ है।