भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासन के खिलाफ आरोप लगाने में गैर-जिम्मेदार होना हमेशा आसान होता है, लेकिन न्यायाधीशों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय कुछ अनुशासन का पालन करना पड़ता है। तमिलनाडु के एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले को दो अलग-अलग पीठों के समक्ष सूचीबद्ध करने पर विवाद को लेकर CJI ने ये बात कही।
सीजेआई, जो रोस्टर के मास्टर भी हैं और शीर्ष अदालत में प्रशासन के प्रमुख हैं, इस बात पर जोर देते रहे कि अदालत की रजिस्ट्री कुछ निर्धारित मानदंडों का पालन करती है और वो वकीलों और वादियों द्वारा प्रासंगिक शिकायतों को उनके संज्ञान में लाने पर गौर करेंगे।
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि अदालत की रजिस्ट्री को मामलों को सूचीबद्ध करने में नियमों का पालन करना चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा: ‘मिस्टर दवे, रजिस्ट्री के खिलाफ आपके आरोपों में गैर-जिम्मेदार होना हमेशा आसान होता है। आपके पास सूर्य के नीचे हर किसी की आलोचना करने की स्वतंत्रता है। लेकिन इस अदालत के जज के तौर पर हमें कुछ अनुशासन का पालन करना होता है। मैं इस मामले को देखते हुए ये कर रहा हूँ’।
दरअसल ये विवाद तमिलनाडु के एक भ्रष्टाचार के मामले से संबंधित है, जिसमें डीएमके के नेतृत्व वाली सरकार में बिजली, शराबबंदी और उत्पाद शुल्क मंत्री वी सेंथिल बालाजी का भी नाम शामिल है। पिछली AIADMK सरकार में 2011-15 में परिवहन मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान बालाजी के खिलाफ नौकरी घोटाले के संबंध में कई शिकायतें दर्ज की गई थीं। बालाजी और कुछ अन्य पर मेट्रो ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (एमटीसी) में नियुक्ति के झूठे वादे पर नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।
इस मामले में 2018 में तीन प्राथमिकी दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी बालाजी और अन्य के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया। जुलाई 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने इनमें से एक प्राथमिकी को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि शिकायतकर्ता पीड़ितों और बालाजी और अन्य के बीच समझौता हो गया था।
हालांकि सितंबर 2022 में जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और वी रामासुब्रमण्यन की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस आदेश को रद्द कर दिया और DMK नेता और सह-अभियुक्तों के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने का आदेश दिया। पीठ के लिए निर्णय लिखने वाले न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यम ने राज्य सरकार को संबंधित मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेशों को हटाने के लिए प्रभावी कदम उठाने का भी निर्देश दिया ताकि अभियोजन कानून के अनुसार आगे बढ़ सके।
इसी मामले में अब दो अलग अलग याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। सर्वोच्च न्यायलय की रजिस्ट्री ने इन दोनों याचिकाओं को अलग अलग पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लिस्ट कर दिया। लेकर दवे ने अदालत में सवाल उठाया था जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने तीखी टिपण्णी की।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के यह कहने के बाद कि एक वकील के रूप में उनके लिए किसी की भी आलोचना करना आसान है, दवे ने जवाब दिया कि खुद जज के बेटे होने के नाते, वह न्यायपालिका का सम्मान करते हैं और उनकी आलोचना हमेशा वस्तुनिष्ठ होती है। इस पर सीजेआई ने कहा: “श्री दवे, आपका आकलन कि आपकी आलोचना हमेशा वस्तुनिष्ठ होती है, अपने आप में व्यक्तिपरक हो सकती है।”
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह कहते हुए मामले को समाप्त कर दिया कि वह इस मामले को देखेंगे और पीठ पर फैसला लेंगे जहां सभी संबंधित मामलों को लिस्ट किया जाना चाहिए।