दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर दी गई तलाक की डिक्री को बरकरार रखते हुए कहा है कि किसी से ये उम्मीद नहीं की जा सकती है कि लगातार दुर्व्यवहार सहते हुए वो रहे। हर व्यक्ति सम्मान और सम्मान के साथ जीने का हकदार है।
हाई कोर्ट ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली महिला की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि निचली अदालत के इस निष्कर्ष में कोई दोष नहीं है कि पुरुष के साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और विकास महाजन की पीठ ने कहा- “हम इस बात से संतुष्ट हैं कि रिकॉर्ड पर पत्नी की जो क्रूरता साबित हुई है वह पर्याप्त है। पत्नी का व्यवहार हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-ए) के तहत क्रूरता के समान है। इसलिए हम याचिका की अनुमति देने और क्रूरता के आधार पर तलाक देने के फैसले में कोई कमी नहीं पाते हैं। तदनुसार, हम अपील में कोई योग्यता नहीं पाते हैं और अपील खारिज की जाती है”।
हाई कोर्ट ने कहा कि पत्नी का आचरण जो रिकॉर्ड में साबित हो चुका है, वह ऐसा है जिससे कि इनके पति को नियमित और निरंतर मानसिक पीड़ा, दर्द, गुस्सा और पीड़ा होती है और ये क्रूरता है।
कोर्ट ने कहा- ‘हर व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। यदि उक्त शब्दों का प्रयोग किसी व्यक्ति के लिए किया जाता है, तो यह उस व्यक्ति के लिए बहुत ही अपमानजनक है। पति का तर्क है कि जब भी झगड़ा होता तो पत्नी अपशब्दों का इस्तेमाल कर उसे और उसके परिवार को अपमानित करती है’।
पीठ ने कहा कि, ‘इस तरह के शब्दों का बार-बार उपयोग स्पष्ट रूप से अपमानजनक है और निश्चित रूप से क्रूरता की श्रेणी में आएगा। किसी व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह उस पर लगातार गाली-गलौज करता रहे।’
कोर्ट ने महिला के वकील की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया कि कथित क्रूरता कब हुई, इसकी विशिष्ट तारीख और समय का उल्लेख नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि पति ने अपने साक्ष्य में कहा है कि जब भी कोई झगड़ा होता है तो महिला उसके और उसके परिवार के खिलाफ उन शब्दों का इस्तेमाल करती है, जिसका अर्थ है कि जब वे साथ थे तो उन शब्दों का बार-बार उपयोग किया गया।
बता दें कि महिला ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि क्रूरता के आरोप निराधार हैं और कथित क्रूरता कब हुई थी, इसकी कोई तारीख नहीं बताई गई है। जुलाई 2022 के अपने आदेश में फैमिली कोर्ट ने कहा था कि पुरुष ने क्रूरता के आरोपों को साबित कर दिया है और साथ ही ये भी कहा था कि महिला का व्यवहार अपने ससुराल वालों और पति के प्रति सौहार्दपूर्ण नहीं था और वह उनके साथ दुर्व्यवहार करती थी।