प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (नई दिल्ली) के 2022 के चुनाव के परिणाम आज आधी रात तक जो भी निकले ये तय है कि उसे हिन्दुस्तानी मीडिया के पेशेवर नैतिक पतन रोकने की लंबी लड़ाई के लिए अपनी कमर अब और भी ज्यादा कसनी होगी। इस चुनाव के तहत इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों यानि ईवीएम के बजाय हमेशा की तरह इस बार भी शनिवार के ही सप्ताहांत दिन 21 मई को सुबह से लेकर शाम तक परंपरागत रूप से बैलेट पेपर से वोटिंग कराई गई। वोटों की गिनती रविवार पूर्वाह्न 11 बजे सुचारु रूप से शुरू हो गई जिसके परिणामों की आधिकारिक घोषणा आधी रात तक कर दिए जाने की संभावना है। ये चुनाव प्रेस क्लब के ही सीनियर मेंबरों के चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष लोकतांत्रिक रूप से कराये जाते है। उसमें सरकार और पुलिस-प्रशासन का कोई दखल नहीं होने दिया जाता है। क्लब के मौजूदा अध्यक्ष और इस पद के लिए लगातार दूसरी बार प्रत्याशी उमाकान्त लखेरा ने मुख्य चुनाव आयुक्त एमएमसी शर्मा से प्राप्त जानकारी के हवाले से इस स्तंभकार को बताया कि इस बार भी परिणाम करीब 12 घंटे की काउंटिंग पूरी होने के बद रात 11 बजे के बाद ही निकालने की संभावना नहीं है।
अंतिम खबर मिलने तक लखेड़ा पैनल कोषाध्यक्ष पद के सिवा 21 में से 20 पदों की काउंटिंग में अपराजेय बढ़त ले चुका था
इस चुनाव के मौके पर जो अपील आदि जारी हुई उनमें दो को हम ज्यों का त्यों पेश कर रहे हैं ताकि सनद रहे।
प्रिय मित्रों,
लेखकों, पत्रकारों, संस्कृति कर्मियों और कलाकारों के लिए यह एक चुनौती भरा समय है। ऐसे समय में जब अभिव्यक्ति को लेकर कई तरह के संकट राज्य और कुछ संस्थाओं द्वारा खड़े किए जा रहे हैं, ऐसे में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया जैसे संस्थान का लोकतांत्रिक और सेकुलर चरित्र बनाए रखना उन सब की जिम्मेदारी है जो इसके सदस्य और शुभचिंतक हैं। जो संविधान प्रदत्त आजादी हमें मिली है उसे बचाए और बनाए रखने के लिए मीडिया संस्थानों की स्वतंत्रता भी बची रहनी जरूरी है। आप सब जानते हैं कि दिल्ली का प्रेस क्लब पूरे देश के पत्रकारों और संस्कृति कर्मियों के साथ अभिव्यक्ति की आजादी के सवालों पर खड़ा रहा है और पिछले वर्षों में जब भी और जहां भी संवैधानिक मूल्यों पर आघात हुए हैं प्रेस क्लब ने एक सकारात्मक भूमिका अदा की है। आज हमें राज्य और सरकार की तरफ से भी चुनौतियां मिल रही है। देश में सांप्रदायिक सद्भाव भी बचाए रखना जरूरी है और इसके लिए यह जरूरी है कि प्रेस क्लब के चुनाव में ऐसे लोग चुनकर आयें जिनकी संविधान, धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की आजादी में आस्था हो। हम यह महसूस करते कि उमाकांत लखेडा – विनय कुमार – मनोरंजन भारती – चंद्रशेखर लूथरा- स्वाति माथुर का पैनल इस दायित्व को पूरा करने में है सक्षम है और पिछले साल भी उसने अपनी ये लोकतांत्रिक भूमिका निभाई है। हमारा निवेदन है कि इस बार, यानी 2022 के चुनाव में, इस पैनल को अपना वोट और समर्थन दें।
निवेदक : मृणाल पांडे, असगर वजाहत, गिरधर राठी, विभूति नारायण राय, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, लीलाधर मंडलोई, अजय सिंह, अजेय कुमार, रामशरण जोशी, पंकज बिष्ट, उमेश जोशी, राजेश बादल, विमल कुमार, मनोहर नायक, पुनीत निकोलस यादव, राजेश बादल, डॉ हर्ष भल्ला, प्रियदर्शन, डॉ अरुण, सुशील कुमार सिंह, संजय के झा, अनिल जैन, अनिल दुबे, आबिद शाह, अमित सेन गुप्ता, दिलीप खान, राजेश वर्मा, जितेंद्र चाहर, जितेंद्र कुमार, अनिल सिन्हा, सुरेश उनियाल, रवींद्र त्रिपाठी। दूसरी अपील बहुचर्चित उपन्यास लेकिन दरवाजा के लेखक और समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट ने जारी की जो निम्नवत है।
साथियो, किसी भी लेखक, पत्रकार, कलाकार और बुद्धिजीवी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। दुर्भाग्य से हम आज ऐसे ही मोड़ पर हैं जब अभिव्यक्ति के मंच, चैपाल और आंगन बचाना किसी भी बुद्धिजीवी और विशेषकर पत्रकारों के लिए अस्तित्व और अभिव्यक्ति के लिए अनिवार्य हो गया है। प्रेस क्लब के चौपाल कहें या मंच या फिर माध्यम के वर्तमान रूप को बचाए रखने के लिए मेरे विचार में उमाकांत लखेड़ा का समर्थन जरूरी है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का हमेशा ये मानना रहा है कि उसके लोकतांत्रिक कामकाज की गारंटी के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव जरुरी है। भारत के 14 वें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह-राज्य गुजरात समेत विभिन्न राज्यों में इस बरस से लेकर 2025 में निर्धारित अगले लोकसभा चुनाव तक के अलावा तक्षक पोस्ट के इस नियमित स्तम्भ चुनाव चर्चा में हम विस्तृत जानकारी और विश्लेषण पेश कर चुके है। हम इसी बरस भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के निर्धारित चुनावों के अलावा राज्य सभा की 92 सीटों के जारी द्विवार्षिक चुनावों की भी चर्चा कर चुके है और आगे भी उसकी खोज खबर लेंगे।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के पिछले बरस के चुनाव के मौके पर हमने प्रेस क्लबों के बारे में तक्षक पोस्ट पर अंग्रेजी में रिपोर्ट दी थी जिसका इसी न्यूज पोर्टल पर अपनी पसंद की भाषा क्लिक पर अन्य भाषाओं में किया गया स्वतः अनुवाद पढ़ा जा सकता है। उस रिपोर्ट में इंगित ये बात अभी भी कायम है कि दुर्भाग्य से भारत भर में सत्ताधारी वर्ग द्वारा धारणा बना दी गई है कि प्रेस क्लब,दारुबाज पत्रकारों के अड्डे है। ये धारणा बिल्कुल ही गलत है। सत्य यह है कि प्रेस क्लब लोकतंत्र की हिफाजत करने के लिए बनाई संस्था है। प्रेस क्लब ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर मोदी जी तक की सरकारों के लोकतांत्रिक कार्यों का समर्थन और अलोकतांत्रिक कदमों का विरोध किया है।
भारत के संविधान में सलग्न राज्य के नीतिनिदेशक सिद्धांतों के मुताबिक यह जन-कल्याणकारी देश है। इसके तहत सरकारें प्रेस को कमजोर तबका मान कर प्रेस क्लबों को मुफ़्त या कम कीमत पर जमीन या भवन आवंटित करती है और उनकी सेवाओं पर बिक्री, आबकारी आदि करों में छूट देती है। भारत के सुप्रीम कोर्ट में नवंबर 2013 में चीफ जस्टिस पी सतशिवम की बेंच के सम्मुख जस्टिस मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को चुनौती देने वाले अखबार मालिकों की याचिका का विरोध करते हुए तत्कालीन सॉलिसीटर जनरल मोहन परासरण ने इंगित किया था कि 1956 का वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट जनकल्याणकारी राज्य के कार्यों का एक आदर्श उदाहरण है. जो बात उन्होंने नहीं कही वो ये है कि प्रेस क्लब के अधिकतर पत्रकार ही होते है। भारत के हर राज्य में प्रेस क्लब है। केरल जैसे राज्य में जिला स्तर पर भी प्रेस क्लब हैं जिन्हें वहां की सरकार ने भूखंड या भवन आवंटित किये है। उनकी आय का बड़ा हिस्सा उन भवनों में चलने वाले बुकशॉप आदि के व्यावसायिक कार्यों से मिलता है। प्रेस कांफ्रेस लगभग अनिवार्य रूप से प्रेस क्लबों में ही आयोजित किये जाते हैं जो उनके आयोजकों और पत्रकारों के लिए भी सुविधाजनक है। बिहार में शराबबंदी करने वाले मुख्यमंत्री नीतिश कुमार तक ने पटना में प्रेस क्लब भवन का उद्घाटन किया है। 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव सरकार ने लखनऊ में चाइना गेट पर यूपी प्रेस क्लब का पुनर्निर्माण कराया। चंडीगढ़ प्रेस क्लब का अपना स्वीमिंग पूल है। मुंबई प्रेस क्लब में हर शनिवार देशी-विदेशी किसी फिल्म का प्रदर्शन कर उस पर विचार-विमर्श किया जाता है।
इतिहास-
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन्स लैंडसीयर लूट्यन्स (1869-1944) के शिल्प पर बसाये नई दिल्ली नगर के बीचों बीच संसद भवन और कृषि , रेल आदि केन्द्रीय मंत्रालयों के भवनों के पास 1 रायसीना रोड पर एक पुरानी कोठी में स्थित है। इसकी स्थापना का सुझाव 1930 के दशक में असोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के संपादक रहे पत्रकार दुर्गा दास ने लंदन प्रेस क्लब को देख कर दिया था। 1947 में भारत की आजादी के बाद असोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया यानि पीटीआई न्यूज एजेंसी में परिणत हो गई। दुर्गा दास के मेमायर्स के मुताबिक 20 दिसंबर 1957 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना हुई और उसका एक कंपनी के रूप में 10 मार्च 1958 को पंजीकरण हुआ। उनके प्रयासों की ही बदौलत भारत में ब्रिटिश हुकमरानी के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने इसके लिए 1 रायसीना रोड का बंगला आवंटित किया। किन्ही कारणों से यह आवंटन रद्द कर दिया गया। लेकिन बाद में मौजूदा स्थल पर ही 2 फरवरी 1959 को तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का उद्घाटन किया। तब हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक दुर्गा दास इसके पहले अध्यक्ष और दिग्गज पत्रकार डीआर मानकेकर पहले
सेक्रेटरी जनरल बने। उस व्यक्त इसके सिर्फ 30 सदस्य थे। पिछले बरस के चुनाव के चीफ इलेक्शन कमिश्नर यानि सीईसी एमएमसी शर्मा के दस्तखत से इस स्तंभकार को जारी वोटर्स लिस्ट के मुताबिक तब इसके कुल 9130 सदस्य थे। इस बार के भी सीईसी एमएमसी शर्मा ही हैं। क्लब की सदस्यता के लिए पत्रकारों की ऑर्डिनेरी और अन्य के लिए असोसिएट 1 और असोसिएट 2 के अलावा कॉर्पोरेट केटेगरी भी है।
दिवंगत कवि, लेखक और संपादक रघुवीर सहाय ने 28 अप्रैल 1990 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (नई दिल्ली) में ‘ सत्ता और पत्रकारिता ‘ विषय पर दिल्ली यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (डीयूडब्ल्यूजे) की संगोष्ठी में कहा था कि नागरिक अपना अपना अधिकार किसी भी पत्रकार को उनके प्रतिनिधि के रूप में इसलिए सौंपते हैं कि वह सरकार के रूप में उन अधिकारों की रक्षा करे और नागरिकों के प्रति जवाबदेह रहे। पत्रकार उन नागरिकों के प्रतिरूप है जिनके प्रति सरकार जवाबदेह है. परंतु पत्रकार यह नहीं कह सकते कि नागरिक,सरकार से, जिसे उन्होने अपने अधिकार सौंप कर अस्तित्व प्रदान किया है बिना पत्रकार नामक बिचौलिये के जवाबतलब नहीं करेंगे. इसी संगोष्ठी में नवभारत टाइम्स के संपादक रहे दिवंगत राजेन्द्र माथुर ने कहा था कि आजकल संपादक से आशा की जाती है वह हर दिन राजा को शाप दे कि ‘ तू आदमी से चूहा हो जा, तू चूहे से गिरगिट हो जा, क्योंकि हिन्दुस्तानी मध्यवर्ग को राज्यहंता होने में बड़ा सुख मिलता है “। उपरोक्त संगोष्ठी को अभी नेशनल हेरल्ड की संपादक मृणाल पांडे ने भी संबोधित कर कहा था कि ‘ एक कुमायूनी मुहावरा के संदर्भ में सत्ता और पत्रकारिता का रिश्ता यूं है कि उसके साथ चल भी नहीं सकती और उसके बगैर रह भी नहीं सकती “। जनसत्ता के संपादक रहे दिवंगत प्रभाष जोशी ने कहा था कि “सत्ता और पत्रकारिता के चरित्र में आपसी संघर्ष अंतर्निहित है। पर यह संघर्ष तभी संभव है जब प्रेस ,सत्ता के निकट भी हो और दूरी भी बनाए रखे। राजसत्ता चाहे दमनकारी हो या उदार वह स्वतंत्र प्रेस को केवल बर्दाश्त करती है।
सत्ता के साथ पत्रकारों का संघर्ष जितना सांस्थानिक है उतना ही व्यक्तिगत है। इसलिए उसे सत्ता की बैसाखी से बचना चाहिए “। संगोष्ठी को मेनस्ट्रीम के संपादक और अतिवरीय पत्रकार निखिल चटर्जी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानि जेएनयू के सेंटर फॉर पॉलिटिकाल स्टडीज (सीपीएस) के प्रोफेसर अश्विनी के राय ने भी संबोधित कर पत्रकारों से भारत के संविधान के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कर सतत निर्भीक होकर जनपक्षीय पत्रकारिता करते रहने का आह्वान किया था,
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के 2021 के पिछले वार्षिक चुनाव में इसके प्रेसीडेंट पद पर वरीय पत्रकार आनंद के सहाय की जगह उमाकांत लखेडा निर्वाचित हुए थे। आनंद के सहाय ने युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने के लिए खुद चुनाव नहीं लड़ा था। लखेडा जी ने एशियन एज के संजय बसाक को करीब एक सौ वोटों के अंतर से हराया था। 2022 के चुनाव मैदान में इस पद के लिए उमाकांत लखेडा फिर उतरे हैं। इस बार के चुनाव मैदान में नई प्रबंधन कमेटी के प्रेसीडेंट समेत 21 पदों के लिए चार पैनल हैं। कुल मिलाकर एक सौ से अधिक उम्मीदवार हैं। कुछेक ऐसे भी हैं जो काका जोगिंदर सिंह धरतीपकड़ बरेली वाले की तरह एकसाथ कई पदों के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उमाकांत लखेडा के विरुद्ध पैनलों में से एक के अगुआ फिर संजय बसाक ही हैं।
पिछले बरस के चुनाव परिणाम-
अध्यक्ष:संजय बसाक 632 वोट उमाकांत लखेडा 729 वोट
उपाध्यक्ष:पल्लवी घोष 655 वोट शाहिद अब्बास 668 वोट
सेक्रेटरी जनरल: राहिल चोपडा 132 वोट, संतोष ठाकुर 576 वोट, विनय कुमार 635 वोट ज्वाइंट सेक्रेटरी : अंजलि भाटिया 226 वोट, चंद्रशेखर लूथरा 578 वोट, मानस प्रतिम गोहेन 470 वोट कोषाध्यक्ष: ज्योतिका ग्रोवर हल्लान 629 वोट , सुधिरंजन सेन 649 वोट निवर्तमान कार्यकारिणी के निर्वाचित 16 सदस्य
1 ए.यू. आसिफ 2 अमृता मधुकाल्या, 3 अनिन्द्य चट्टोपाध्याय, 4 अंजलि ओझा , 5 अतुल कुमार मिश्रा, 6 वसंत पी., 7 कल्याण बरुआ, 8 मृगांक प्रभाकर , 9 पूनम अग्रवाल, 10 प्रवीण जैन , 11 राकेश नेगी , 12 संजय चौधरी, 13 श्रीपर्णा चक्रवर्ती ,14 स्वाति माथुर ,15 वाल्सा विलियम्स और 16 विजय शंकर चतुर्वेदी
भविष्य-
तक्षक पोस्ट की संपादक श्वेता आर रश्मि ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के इस बार के चुनाव में विभिन्न पैनलों द्वारा अपने प्रचार के लिए भारी धन खर्च कर पीआर एजेंसियों के किये गए इस्तेमाल की भर्त्सना कर कहा है कि पत्रकारों को सियासी नेताओं के तौर तरीके अपनाने से बचना चाहिए। उन्होंने तो नहीं कहा पर कई सदस्यों ने बताया कि उनके मोबाइल फोन पर दिन भर अनगिनत सचित्र व्हाट्सअप संदेश आते रहते है। एक ही प्रत्याशी के कई व्हाट्सअप संदेश आते रहते है। सवाल है कि प्रेस क्लब सदस्यों की निजता का घोर उल्लंघन करके उनके मोबाइल फोन नंबर और ईमेल आईडी इन वेंडरों को किसने कैसे दिए?
यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) के विशेष संवाददाता रहे राजेश वर्मा का कहना है कि प्रेस क्लब चुनाव में आईटी वेंडरों के इस्तेमाल पर रोक लगाना लगभग असंभव है। लेकिन प्रेस क्लब चुनाव आयोग इस तरह की हरकतों के लिए विभिन्न पैनल और निर्गुट उम्मीदवारों से कैफियत तलब तो कर ही सकता है। क्योंकि प्रेस क्लब चुनाव में शराब बहे या ना बहे पैसा तो बह ही रहा है। ये दुखद स्थिति है। इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित विजुल में महान ब्रिटिश फिल्म अभिनेता और निर्माता सर चार्ल्स स्पेन्सर चैपलिन जूनियर (1889-1977) का स्केच भी शामिल है। इसे भारत के ही फिल्मकार और कलाकार सत्यजीत रे (1921-1992) ने तैयार किया था। चार्ली चैपलिन नाम से जग प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता को उनके नगर में कायम लंदन प्रेस क्लब की मानद सदस्यता प्रदान की गई थी। एक तस्वीर लंदन प्रेस क्लब के छायांकन की भी साथ लगी है। एक अन्य तस्वीर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (मध्य प्रदेश) के प्रो वाइसचांसलर रह चुके रामशरण जोशी के साथ इस स्तंभकार की भी है।