टाटा की चर्चा केवल इस औद्योगिक घराने के ऐश्वर्य- वैभव, व्यावसायिक सफलता, उनके दान -धर्म या उनके कला प्रेम की वजह से नहीं होती। उनके श्वान प्रेम को लेकर भी होती है। आज टाटा के इस अनछुए राज से पर्दा उठाते है जिसके बारे में लोग कम ही जानते है।
छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के सामने कैपिटॉल सिनेमा के बगल से हजारीमल सोमानी मार्ग चर्चगेट की ओर जा रहा है। इस मार्ग की राह आप अनेक बार टाटा पैलेस और एस्प्लेनेड हाउस से होकर गुजरे होंगे। अपने लैंडस्केप गार्डंस के लिए मशहूर टाटा पैलेस – जिसे लोग डॉएच्च बैंक के मुख्यालय के नाम से ही जानते रहे और अब जहां कैथेड्रल ऐंड जॉन कॉनन स्कूल का आई. बी. सेक्शन है आधुनिक भारत के निर्माता जमशेदजी टाटा छोटे पुत्र सर रतन टाटा का आवास रहा है। हजारीमल सोमानी मार्ग की इससे भी बड़ी शान है एस्प्लेनेड हाउस जहां जमशेदजी टाटा परिवार सहित स्वयं रहते थे। तीन मंजिला महलनुमा यह आवास उस जमाने में समुद्र की ओर से चारों तरफ से खुला फोर्ट क्षेत्र की एकमात्र रिहायशी इमारत होता था। जमशेदजी ने फर्नीचर और डेकोरेशन के तमाम सामान यूरोप से लाकर एस्प्लेनेड हाउस को पूरी तबीयत से सजाया था। टाटा ग्रुप का मुख्यालय ‘बॉम्बे हाउस’ – जहां पहले जे. आर. डी. टाटा और फिर रतन टाटा उठते – बैठते रहे – इन दोनों जगहों से ज्यादा दूर नहीं है।
टाटा घराने की इन भव्य इमारतों की चर्चा यहां उनके ऐश्वर्य- वैभव, उनके व्यावसायिक सफलता, उनके दान -धर्म या उनके कला प्रेम की वजह से नहीं है। इसकी वजह है टाटा का श्वान प्रेम। अगली बार एस्प्लेनेड हाउस से गुजरते समय दाईं तरफ के प्रवेश द्वार के पास गौर से देखें – आपको टेराकोटा से बना एक छोटा-सा स्मारक दिखेगा। यह स्मारक है ‘सेंट बर्नार्ड’ नामक जमशेदजी टाटा के स्वामिभक्त कुत्ते का। उस जमाने के चलन के अनुसार धन्नासेठों के घरों में कुत्ताघर होना असामान्य नहीं था। एस्प्लेनेड हाउस का कुत्ताघर इनमें सबसे आलीशान था।
टाटा समूह के हेडक्वार्टर बॉम्बे हाउस में आज भी एक कुत्ता घर है। बॉम्बे हाउस चार वर्ष पहले रिनोवेशन के लिए लगभग एक वर्ष बंद रहा। जब तक यहां नया स्थायी कुत्ताघर बन नहीं गया तब तक यहां के कुत्ते इधर – उधर उचकते – फुदकते, लुकते – छिपते और धमा – चौकड़ी मनाते रहे। 29 जुलाई, 2018 को टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा की मौजूदगी में बॉम्बे हाउस जब अपने अत्याधुनिक अवतार में दोबारा खुला तो यहां काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों ने वहां की पहली चीज जो जाकर देखी वह था निचली मंजिल का नया कुत्ताघर।
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भीतर जाकर उन्होंने जो नजारा देखा उनके कौतुक की सीमा नहीं रही। खुली – खुली सी रोशनदार जगह। जहां देखो वहां ‘शीबा’, ‘जूली’, ‘मुन्नी’, ‘छोटू’, ‘स्वीटी’, ‘जैकल’ और ‘सिंबा’ जैसे नामधारी कुत्ते और कुतिया। अपने लिए बनाए गए गद्दों पर आराम फरमाते हुए। नियत जगहों पर रखे स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों का आनंद उठाते हुए। खास तौर पर अपने लिए बने खिलौनों से खेलते हुए। गले में बेल्ट जरूर थी, पर इनमें कोई भी जंजीर या सींखचों में नहीं बंधा था। सच, पूछें तो बॉम्बे हाउस में 24 घंटे रहने वाले असली निवासी यही कुत्ते हैं। इन्हें जरूरी निगरानी के साथ यहां पूरी आजादी ही हासिल नहीं, यहां उनके लिए विशेष स्टॉफ और सुरक्षाकर्मी हैं। कहा यहां जाता है कि उनके लिए विशेष खाना होटल ताजमहल के किचन से ही नहीं, विदेशों तक से मंगाया जाता है।
टाटा खानदान का कुत्ता प्रेम शुरू से प्रसिद्ध है। बॉम्बे हाउस में जे. आर. डी. टाटा के जमाने से ही कुत्तों को अभय हासिल है। उनके निधन के बाद 1991 में रतन नवल टाटा ने जबसे टाटा संस के चेयरमैन का पद संभाला तब से तो कुत्तों के ठाठ ही हो गए हैं। इन्हें वही दर्जा हासिल है, जैसा किसी कर्मचारी को। समय – समय पर उनके मेडिकल चेक – अप और चिकित्सा के लिए पशु चिकित्सक नियत हैं। इन्हें साफ – सफाई और अच्छे व्यवहार की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है।
यहां आने वाले मेहमान भले उनसे डरें, पर ये कुत्ते उनके साथ पूरे अदब से पेश आते हैं और मेहमान उनसे। रतन टाटा का स्टॉफ को स्पष्ट निर्देश है – ‘कुत्तों को हर समय सुरक्षित और खतरों से बचाकर रखना है।’
ये लेख साभार “हिंदी सामना” से लेखक की रजामंदी के बाद लिया गया है।