कांग्रेस
प्रियंका गांधी वढेरा राज्य में पिछले एक बरस से काफी सक्रिय हैं। उन्होंने नया नुस्खा आजमा कर “ लड़की हूं, लड़ सकती हूं ” का चुनावी अभियान शुरू किया जिसमें उनके छोटे भाई और कांग्रेस नेता राहुल गांधी (रागा) ने अमेठी और रायबरेली में भाग लिया। अमेठी रागा की और रायबरेली सोनिया गांधी की “ परंपरागत “लोकसभा सीट है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनके नेता और पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री, आरपीएन सिंह बेहतर सियासी भविष्य के लिए हाल में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। पूर्वाञ्चल में ही भाजपा के एक नेता स्वामी प्रसाद मौर्य , सपा में चले गए। कुछ वक्त पहले राहुल गांधी ने खुलकर कहा था कि जो डरपोक हैं वो कांग्रेस से चले जाएं। उन्होंने कांग्रेस में अपने जो करीबी साथी चुने थे उनमें से मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद पहले ही भाजपा में चले गए। 2017 के विधान सभा चुनाव में जीते कांग्रेस के सात विधायकों में से प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और पार्टी विधायक दल कि नेता आराधना मिश्रा के सिवा सभी ने कांग्रेस छोड़ दी है।
बसपा
इस बार के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती की सक्रियता कम ही नजर आई। उन्होंने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वो इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी। मायावती ने इसी बरस 15 जनवरी को उनके जन्मदिवस के मौके पर बसपा द्वारा आयोजित ‘ लोक कल्याणकारी दिवस ‘ समारोह में दावा किया कि विपक्षी दल साम ,दाम, दण्ड, भेद से बसपा को सत्ता मे आने से रोकने में लगे हैं।इस मौके पर उनकी जीवनी ” मेरे संघर्षमय जीवन एवं बीएसपी मूवमेंट का सफरनामा “ के भाग17 का विमोचन भी किया। उन्होंने कहा वह चार बार लोकसभा, तीन बार राज्य सभा की सदस्य, दो बार विधानसभा और दो बार विधान परिषद की सदस्य रह चुकी हैं। लेकिन विरोधी दल और मीडिया उनके चुनाव नहीं लड़ने को मुद्दा बनाता है। बसपा का किसी से गठबंधन नहीं है। उन्होंने कहा उनका परिवार नहीं है पर मीडिया और विरोधी दल इसे मुद्दा बनाएंगे तो वह अपने भतीजा, आकाश आनंद को और बसपा महासचिव सतीश मिश्र के पुत्र कपिल को संगठन में अहम भूमिका देंगी। पिछले बरस आकाश को बसपा का नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया गया था।
मायावती ने कांग्रेस को ‘ वोटकटवा ’ पार्टी बताया और प्रियंका गांधी वाद्रा पर परोक्ष कटाक्ष कर कहा कांग्रेस की हालत इतनी खराब है कि ‘मुख्यमंत्री की उम्मीदवार ने कुछ ही घंटों में अपना इरादा बदल लिया.’ प्रियंका गांधी ने एक साक्षात्कार में बसपा प्रमुख पर चुनाव प्रचार में निष्क्रिय रहने का आरोप लगाते हुए कहा ‘मैं बहुत हैरान हूं कि चुनाव शुरू हो गया है और हम बीच चुनाव में हैं लेकिन उन्होंने (मायावती) चुप्पी साध रखी है। नई दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए घोषणा-पत्र जारी करने के दौरान पत्रकारों ने जब प्रियंका गांधी से पूछा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा तो उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ वह अपनी पार्टी का चेहरा नहीं हैं।
2017 का चुनाव
2017 में भी यूपी में सात चरणों में 27 दिनों में चुनाव सम्पन्न हुए थे। इस बार 25 दिनों में चुनाव निपटने है। ध्यान रहे यूपी का पिछला चुनाव मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के साए में हुआ था। सपा ही नहीं बसपा और कांग्रेस को भी नगदी की भारी किल्लत थी। विधान सभा की कुल 403 सीटों में से 312 पर भाजपा की जीत हुई। सपा को 47 और बसपा को केवल 19 सीट मिली। लेकिन बसपा का वोट शेयर सपा से ज्यादा था। पिछले चुनाव में 14.05 करोड़ वोटर थे जिनमें 6.3 करोड़ महिलायें थी।
पश्चिमी यूपी में पहले जाट, गुर्जर और मुसलमान आरएलडी के साथ थे। लेकिन 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे ने इन तीनों समुदाय को अलग कर दिया। तब राज्य में अखिलेश यादव की सरकार थी। इस दंगे से दोनों की पार्टियों को भारी नुकसान हुआ। 2017 के विधान सभा चुनाव में रालोद एक सीट ही जीत सकी और सपा 47 सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद भी सपा और बसपा के गठबंधन में शामिल था।रालोद को एक भी सीट नहीं मिली। अजीत सिंह और जयंत चौधरी भी चुनाव हार गये।
इस बार
इस बार का चुनाव कार्यक्रम घोषित होते ही योगी सरकार के मंत्रियों के मंत्रिमंडल से और भाजपा विधायकों के विधानसभा से इस्तीफे शुरू हो गए। करीब 22 विधायक भाजपा छोड़कर सपा में चले गए। कुछ संदेह उभरे कि मोदी जी और शाह जी की जोड़ी यूपी चुनाव जीतना ही नहीं चाहती है। ये बात लोगों को हजम नहीं हुई मोदी जी- शाह जी मर्जी के बगैर भाजपा का कोई विधायक पार्टी छोड़ दे। मोदी जी के सपनों के न्यू इंडिया में चुनावी चाणक्यगिरी में माहिर शाह जी ने यूपी में डैमेज कंट्रोल नहीं किया? उल्लेख किया गया कि 2024 में लोकसभा चुनाव के समय मोदी जी 73 बरस के हो चुके होंगे। लेकिन शाह जी सिर्फ 60 साल के और योगी जी केवल 52 साल की उम्र के होंगे।
तीसरी पीढ़ी का पहला चौधरी
सपा के पक्ष में अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की जातियों में सबसे मुखर यादव, मुस्लिम ही नहीं बल्कि अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अति मुखर जाट वोटर भी माने जाते हैं.चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह के निधन के बाद उनके पौत्र जयंत चौधरी बड़े सियासी नेता के रूप में उभर चुके है। वे तीसरी पीढ़ी का पहला चौधरी हैं। वे अभी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) यानि रालोद चला रहे है। वह अपने पिता अजीत सिंह के 6 मई 2021 को कोरोना महामारी से गुरुग्राम के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में निधन के बाद 25 मई को रालोद अध्यक्ष बने। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर जयंत आक्रामक रहे हैं। लखीमपुर हिंसा में किसानों की मौत के खिलाफ जयंत बहुत सक्रिय रहे। वह मोदी सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ़ आंदोलनरत किसानों के भी साथ रहे। इस चुनाव में आरएलडी का सपा से गठबंधन है। कहते हैं रालोद ने चुनाव लड़ने सपा से करीब 50 सीटें मांगी थी। सपा ने करीब 30 दे दी। जयंत, दोनों के गठबंधन की नई सरकार बनने पर उपमुख्यमंत्री पद के दावेदार भी है। बहरहाल तथ्य है कि चौधरी चरण सिंह के 1987 में निधन के समय यूपी में लोकदल के 84 विधायक थे पर अभी एक भी विधायक नहीं है.
चौधरी चरण सिंह के आख़िरी दिनों में अजीत सिंह लोकदल के अध्यक्ष रहे थे। अजीत सिंह ने कई दलों से गठबंधन किया। वे 1986 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने और सात बार लोकसभा सदस्य भी रहे। उन्होंने 1987 में लोकदल (अजीत) गुट बना लिया और अगले ही बरस उसका जनता पार्टी में विलय कर अध्यक्ष बन गए। जनता पार्टी, लोक दल और जनमोर्चा के विलय से जनता दल बना तो अजीत सिंह इसके महासचिव चुने गए। 1989 के चुनाव के बाद केंद्र में जनता दल की बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में अजीत सिंह उद्योग मंत्री रहे। वह 1991 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में शामिल होकर केंद्र की पीवी नरसिंह राव सरकार में खाद्य मंत्री भी रहे। उन्होंने 1996 का आम चुनाव कांग्रेस की टिकट पर जीतने के बरस भर के भीतर उस पार्टी और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। वह कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने के बाद उपचुनाव में किसान कामगार पार्टी प्रत्याशी बतौर बागपत से लड़े और जीते। पर वे 1988 में लोकसभा चुनाव हार गए। उन्होंने 1999 में राष्ट्रीय लोकदल गठित की। आरएलडी ने 2001 के आम चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन किया था। अजीत सिंह चुनाव जीते और अटल बिहारी वाजपेई सरकार में कृषि मंत्री रहे। अजीत सिंह ने अपनी पार्टी को भाजपा और बसपा के गठबंधन में शामिल कर लिया। जब 2003 में भाजपा और बसपा का साथ टूटा और यूपी में मायावती सरकार गिर गई तो अजित सिंह इस गठजोड़ से अलग हो चुके थे। वो गठबंधन टूटने से बसपा सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. बाद में सपा को रालोद का भी साथ मिला और मुलायम सिंह यादव की सरकार बन गई। रालोद की सपा के साथ संगत 2007 तक चली। लोकसभा चुनाव में रालोद का भाजपा के साथ गठबंधन हुआ। अजीत सिंह 2009 के आम चुनाव में भाजपा के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के दल के तौर पर लड़े और फिर सांसद बने। पर 2011 में रालोद कांग्रेस के यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाएंस (यूपीए ) गठबंधन और यूपीए-1 की मनमोहन सिंह सरकार में शामिल हो गया। अजीत सिंह को दिसंबर 2011 में मंत्री बना दिया गया। वे मई 2014 तक मंत्री रहे। 2014 में अजीत सिंह को राजनीतिक जीवन की दूसरी हार मिली। बागपत बाशिंदे और जाट समाज के ही सत्यपाल सिंह ने अजीत सिंह को वहाँ चुनाव में हरा दिया। 2013 के जाट-मुस्लिम दंगों के बाद जाटों का झुकाव भाजपा की तरफ हो गया था। 2019 में अजीत सिंह ने बागपत छोड़ मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ा। पर वह भाजपा के संजीव बालियान से हार गए। बागपत से जयंत ही चुनाव लड़े पर वह भाजपा के सत्यपाल सिंह से हार गए।
29 मई को चौधरी चरण सिंह ने आख़िरी सांस ली तो और भारतीय लोक दल की विरासत को लेकर घमासान शुरू हो गया. एक वक़्त तक देवी लाल, नीतीश कुमार, उड़ीसा के बीजू पटनायक ही नहीं शरद यादव और मुलायम सिंह यादव इसी लोकदल के नेता हुआ करते थे। 1984 के लोक सभा चुनाव में भाजपा के सिर्फ दो और लोकदल के चार सांसद थे। चौधरी चरण सिंह के देहांत के बाद कुछ दिनों तक हेमवती नंदन बहुगुणा इसके अध्यक्ष रहे। पार्टी पर प्रभुत्व लड़ाई चुनाव आयोग पहुंची. पार्टी पर दावा करने वालों में चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह भी थे। लेकिन चुनाव आयोग ने फैसला उनके खिलाफ़ सुनाया. चुनाव आयोग ने कहा अजीत सिंह, चरण सिंह की संपत्ति के वारिस तो हो सकते हैं, मगर पार्टी की विरासत उन्हें नहीं मिल सकती। तब अजीत सिंह ने अलग राष्ट्रीय लोक दल पार्टी बना ली जिसे उनके निधन के बाद जयंत सिंह चला रहे हैं।
भागीदारी परिवर्तन मोर्चा
उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटी इंप्लाई फेडरेशन के अध्यक्ष वामन मेश्राम के साथ मिलकर नया गठबंधन ‘ भागीदारी परिवर्तन मोर्चा’ बनाने का ऐलान किया। तीनों नेताओं ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा ये नया गठबंधन सभी 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के उत्तर प्रदेश चुनाव में अकेले लड़ने के फैसले का बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन ने कहा कि पार्टी ने कई राज्यों में भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ा है। उनके मुताबिक जेडीयू ने अकेले लड़ने का निर्णय इसलिए लिया कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ गठबंधन करने का प्रयास व्यर्थ रहा. हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने इस दिशा में प्रयास किया।
बहरहाल , कोलकाता के राजनीतिक चिंतक अरुण माहेश्वरी के मुताबिक बंगाल चुनाव में भाजपा की हार के बाद मोदी सरकार हर मामले में पंगु साबित हुई है। उसके नख-दंत टूट चुके हैं। कृषि बिलों की वापसी मोदी-शाह युग के अंत की शुरुआत का पुख़्ता प्रमाण है।यूपी में भाजपा का सांप्रदायिक कार्ड का नही चल पाना उसकी संभावना के अंत का संकेत है। मोदी-शाह की दीन हीन दशा का सबसे अधिक लाभ इनके व्यापारी मित्रों ने उठाया है। कोरोना काल इनके मुनाफ़े का स्वर्णिम काल साबित हुआ है। आरएसएस कार्यकर्ता भी सत्ता की लूट में लगे हैं । उन सबने अयोध्या और अन्य तीर्थ-स्थानों पर अपने धंधों के लिए डेरा डाल रखा है। विदेशों में मोदी जी की पहचान विभाजनकारी और जनसंहार के पक्षधर नेता की बन गई है। भाजपा के नेताओं को खदेड़े जाने के दृश्य यूपी से पहले बंगाल में उभरे थे। वहाँ भाजपा का अस्तित्व खतरे में है।