इंडिया और पाकिस्तान के बीच में खेले गए हाल के मैच में पाकिस्तान की जीत और भारत की हार होने के बाद खेल प्रेमियों में मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। खेल में हार जीत और अपने खिलाड़ियों को देखने का रोमांच अलग ही होता है। पर जब खेल भावना पर राजनीति और कारवाई की इबादत लिखी जाए तो दुःखद है। आज हमारे इस विषय को।उठाने का मकसद साफ है कि देश का कानून और विशेषज्ञों का क्या कहना है, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के उस बयान पर जिसमें पाकिस्तान की जीत मनाने पर देशद्रोह तहत कारवाई की बात की गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने हालिया एक इंटरव्यू में कहा है कि, क्रिकेट में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाना, निश्चित रूप से देशद्रोह नहीं है।
जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा, “यह निश्चित रूप से देशद्रोह नहीं है, लेकिन यह सोचना निश्चित रूप से हास्यास्पद है कि यह देशद्रोह के बराबर है … इन लोगों पर सेडिशन के आरोप कभी भी अदालत में नहीं टिकेंगे। यह सार्वजनिक धन और समय की बर्बादी है। जश्न मनाने की कार्रवाई कुछ लोगों के लिए अपमानजनक लग सकती है, लेकिन यह कोई ऐसा अपराध नहीं है, कि इसपर देशद्रोह की धारा लगाई जाय ।”
” एक चीज है कानूनन अपराध, और दूसरी चीज है अपमानजनक औऱ अनैतिक। सभी कानूनी कार्य जरूरी नहीं कि, वे समाज के मानदंडों के अनुरूप, अच्छे भी हों, और सभी अनैतिक या बुरे समझे जाने वाले कार्य, कानूनन दंडनीय अपराध भी हों। शुक्र है, हम कानून के शासन द्वारा शासित हैं और न कि, नैतिकता के नियमों से। अलग अलग समाज, अलग-अलग धर्म और अलग-अलग समय में नैतिकता के अलग-अलग अर्थ और मापदंड होते हैं…”
कानून की नजर में आईपीसी की धारा 124ए के तहत देशद्रोह दंडनीय है।
जस्टिस गुप्ता ने बलवंत सिंह और एनआरवी के मामले का हवाला दिया। यह केस, पंजाब राज्य, से सम्बंधित है। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “खालिस्तान जिंदाबाद” का नारा देशद्रोह नहीं है क्योंकि हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था का कोई आह्वान इस नारे के अतिरिक्त नहीं है।”
इस पृष्ठभूमि में, उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा पोस्ट किया गया ट्वीट-
” आगरा में कश्मीरी छात्र, जिसने भारत पर पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाया, पर देशद्रोह का आरोप लगाया जाएगा- “निश्चित रूप से देश के कानून के खिलाफ है” और “एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।”
“अगर वे (मुख्यमंत्री कार्यालय) देशद्रोह पर अदालतों द्वारा, समय समय पर दिए गए विभिन्न फैसलों का अध्ययन करते, तो मुख्यमंत्री को इस तरह का बयान जारी न करने की सलाह दी जाती। मुझे नहीं पता कि क्या वे उस प्रसिद्ध मामले (बलवंत सिंह का मामला ) से अवगत हैं।”
पाकिस्तान की जीत पर मनाए जा रहे जश्न पर पूर्व न्यायाधीश ने कहा, “मैं इस कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकता। लेकिन, खेल में आप दूसरे पक्ष का समर्थन क्यों नहीं कर सकते … बहुत सारे ब्रिटेन के नागरिक या भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिक, जब एक मैच लॉर्ड्स (क्रिकेट के मैदान) में खेला जाता है, तो भारत की तरफ से खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाते हैं और भारत की जीत पर जश्न मनाते हैं। पर क्या वहां की सरकारें, इस पर आपत्ति करती हैं ? क्या उन पर अपने-अपने देशों में राजद्रोह का आरोप लगाया जाता है?”
देशद्रोह के अपराध की आवश्यकता पर फिर से विचार करने की आवश्यकता
यह बताए जाने पर कि राजनेताओं और पुलिस द्वारा देशद्रोह के आरोप का दुरुपयोग जारी है, न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा-
“अब समय आ गया है, जब देशद्रोह की इस धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी जा रही है, तो, सर्वोच्च न्यायालय को इस पर विचार कर कदम उठाना चाहिए और बिना किसी अनिश्चित शर्तों के यह तय करना चाहिए कि यह कानून संवैधानिकता रूप वैध है या नहीं।”
इससे पहले भी कई मौकों पर जस्टिस गुप्ता ने सभ्य लोकतंत्र में इस प्रावधान के अस्तित्व पर अपनी आपत्ति व्यक्त की है। उनका दृढ़ मत है कि इस प्रावधान को समाप्त किया जाना चाहिए। “प्रश्न का अधिकार, संवैधानिक लोकतंत्र का सार है, राजद्रोह कानून के बढ़ते दुरुपयोग पर विचार आवश्यक है।”
इस साल जुलाई में, भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी प्रावधान के उपयोग को जारी रखने पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा था कि स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए औपनिवेशिक युग के दौरान पेश किया गया कानून वर्तमान संदर्भ में आवश्यक नहीं हो सकता है।
बाद में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने यूएपीए के अन्य हिस्सों के अलावा, देशद्रोह के दंडात्मक प्रावधान को खत्म करने के लिए शीर्ष अदालत में सुनवाई की। इस कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाये सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट उनकी “जितनी जल्दी हो सकेगा, इस पर सुनवाई करेगा।”
आगरा में पाकिस्तान की जीत का जश्न मना रहे कश्मीरी छात्रों के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया टिकाऊ नहीं हैं। पूर्व न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया, यूपी में कश्मीरी छात्रों के खिलाफ लगाए गए अन्य आरोप अस्थिर प्रतीत होते हैं।
न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि वह पाकिस्तान की जीत के किसी भी उत्सव के बारे में बात नहीं कर रहे थे जो जम्मू-कश्मीर में हुआ हो। वे उत्तर प्रदेश में, दर्ज मामलो पर अपनी बात कह रहे थे। उन्होंने कहा, ” उन पर आईपीसी की धारा 153 ए (धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 505 (1) (बी) (ऐसे बयान देना जो दूसरों को राज्य या सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं) और धारा 66 एफ (साइबर-आतंकवाद) के तहत मामला दर्ज किया गया है। आईटी अधिनियम के दर्ज हैं।”
“यह एक हास्यास्पद आरोप है … क्या उन्होंने हिंदू धर्म के खिलाफ कुछ कहा है?”
धारा 153ए के आरोप पर जस्टिस गुप्ता ने कहा।
“इन छात्रों के खिलाफ आईपीसी की धारा 505 (1) (बी) लागू करना भी अनुचित है क्योंकि वे केवल जश्न मना रहे थे, किसी को उकसा नहीं रहे थे।”
साइबर-आतंकवाद के आरोप पर, न्यायाधीश ने कहा कि पाकिस्तान की जीत के जश्न में कोई ट्वीट या किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का उपयोग नहीं किया गया था। न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, “मैं इस तरह की जीत का जश्न मनाने में उनके साथ सहमत नहीं हो सकता। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को देखते हुए, यह कोई बुद्धिमानी नहीं है। लेकिन यह कोई दंडनीय अपराध नहीं है।”
राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के विवादित दंडात्मक कानून के तहत 2014 से 2019 के बीच 326 मामले दर्ज किए गए। अब कुछ राज्यो के आंकड़े देखते हैं। असम में दर्ज किए गए 56 मामलों में से 26 में आरोपपत्र दाखिल किए गए और 25 मामलों में मुकदमे की सुनवाई पूरी हुई। हालांकि, राज्य में 2014 और 2019 के बीच एक भी मामले में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।