ये अक्टूबर का महीना और बेमौसमी बारिश। आम तौर पर ऐसा होता नहीं है। बारिश का ऐसा कहर वो भी आश्विन माह की नौ दिनी नवरात्रि पूजा और रामलीला के मंचन के बाद यह तो कभी भी नहीं सुना था, अलबत्ता 60 साल पहले की किसी घटना का जिक्र जरूर किया जाता है जब अक्टूबर के महीने में बारिश हुई थी, लेकिन तब बारिश की रफ़्तार इतनी तेज नहीं थी। रिमझिम बारिश का नजारा जरूर था पर कहर बरपाने वाली ऐसी मूसलाधार बारिश तब नहीं हुई थी।
इस बार अक्टूबर बारिश ने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं। यह बारिश देश के किसी एक इलाके में ही नहीं हुई बल्कि समुद्र तटीय केरल से लेकर हिमाच्छादित उत्तराखण्ड तक देश के कमोबेश हर इलाके में इसका असर हुआ है। देश के उत्तराखण्ड और केरल ये दो राज्य ऐसे हैं जहां इस विभीषिका का सबसे ज्यादा असर हुआ है। उत्तराखण्ड की स्थिति तो इस आपदा से और भी बदतर हो गई है। बारिश के कहर ने इस सीमान्त पर्वतीय राज्य के कई इलाकों में सड़कें और पुल ही गायब कर दिए हैं तो नैनीताल जैसे झील के शहरों में झील का पानी सड़क और सड़क के किनारे बने भवनों से मिल गया है। ऐसी हालत में झील और जमीन का फर्क कर पाना भी मुश्किल काम हो गया है। केरल में पानी की विपदा की वजह से दूल्हा – दुल्हन के एक जोड़े को खाना पकाने वाले एक विशालकाय भगोने में बैठा कर विवाह स्थल तक ले जाना पड़ा था तो उत्तराखंड के नैनीताल में झील के किनारे स्थित नैना देवी का का मंदिर ही पानी में डूब गया।
कहा जाता है कि ढलवां इलाका होने के कारण पहाड़ी इलाकों में कभी बाढ़ का पानी ठहर नहीं सकता लेकिन इस बार इसी पहाडी राज्य के कई होटलों के बाहर खड़ी की गई सैलानियों की कारें पूरी तरह बाढ़ के पानी में डूब गई थीं। इतना पानी वो भी अक्टूबर के इस महीने उत्तराखंड के कुमायूं क्षेत्र के लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था।
इसका असर इस रूप में भी देखा गया कि हरिद्वार में गंगा से लेकर टनकपुर में शारदा, हल्द्वानी में गौला और रामनगर में कोसी से लेकर रामगंगा कई दिन तक खतरे के निशान से ऊपर बहती देखी गई। मौसम विभाग के अनुसार पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर के चक्रवाती तूफानों के संगम से यह अप्रत्याशित बारिश हुई है। एक तरह से इसे भूमंडलीय गर्मी बढ़ने की वजह से वैश्विक स्तर पर हुए जलवायु परिवर्तन का कारण भी माना जा सकता है। उत्तराखंड और देश के पर्वतीय इलाकों में होने वाली इस तरह की प्राकृतिक विपदा को महज जलवायु परिवर्तन का कारण नहीं माना जा सकता। जलवायु परिवर्तन के अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के नाम पर किये जा रहे प्राकृतिक सम्पदा के अंधाधुंध दोहन से भी विपदा की गतिविधियों में आश्चर्यजनक तरीके से वृद्धि हो रही है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उत्तराखंड में बेमौसम की इस बारिश में 60 से ज्यादा लोगों की मौत के समाचार चर्चा में थे। मौत का यह सिलसिला आगे भी जारी था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले दिनों हल्द्वानी में भारी बारिश के मद्देनजर शहर और राज्य की स्थिति की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने जनहानि, संपत्ति, सड़क, बचाव अभियान, सड़कों को फिर से शुरू करने पर विचार-विमर्श किया।
अधिकारियों को भूस्खलन से मलबा हटाने का निर्देश दिया है, ताकि सड़क संपर्क बहाल किया जा सके। पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि गढ़वाल में स्थिति लगभग नियंत्रण में है, मार्गों को फिर से खोल दिया गया है। राज्य सरकार ने विपदा में मारे गए लोगों के परिजन को 4 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की है इसके अलावा सरकार की तरफ से इस विपदा में घर गंवाने वालों को 1 लाख 9 हजार रुपए दिए जाने का ऐलान भी किया गया है। जिन लोगों ने अपना पशुधन खो दिया है, उन्हें भी सरकार की तरफ से हर संभव मदद दी जाएगी। उत्तराखंड के रामगढ़ ब्लॉक में बादल फटने के बाद भारी तबाही आई। नैनीताल में तो भारी बारिश के बाद सड़कों पर झील बहने लगी।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उत्तराखंड के लोगों ने ऐसी खतरनाक बारिश पहले कभी नहीं देखी थी, इस बरसात का पानी 24 घंटे लगातार बहता ही रहा। जिसकी वजह से राज्य के पहाड़ी इलाकों के साथ ही मैदानी इलाके भी परेशानी का सामना करते रहे। नैनीताल में झील के पानी ने सड़कों को जलमग्न कर दिया था तो हल्द्वानी जैसे अर्ध मैदानी इलाके में रेल की एक किलोमीटर पटरी ही बैठ गई थी। यही हालत इस इलाके के भाबर कहे जाने वाले दूसरे इलाकों रामनगर और टनकपुर की भी थी। इस कहर बरपाने वाली बारिश ने अक्टूबर में नैनी झील के जलस्तर के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले।
यह वृत्तांत लिखे जाने तक नैनीताल में 200 मिमी से ज्यादा की बारिश दर्ज हो चुकी थी, जिसकी वजह से झील का जलस्तर 12.2 फीट के ऑल टाइम हाई रिकॉर्ड को पार कर गया। झील का पानी ओवरफ्लो होकर माल रोड तक पहुंच गया। नैनीताल के कई इलाकों में भू-स्खलन की घटनाएं भी हुई हैं। राज्य के पहाड़ी और भाबर के अर्ध पहाडी इलाकों के साथ ही तराई वाले काशीपुर , बाजपुर और रूद्रपुर जैसे मैदानी इलाकों की हालत भी खराब ही है। इसी क्षेत्र के उधमसिंह नगर जिले के मुख्यालय शहर रुद्रपुर की तो ऐसी हालत हो गयी है कि यहां के बाजार और कई मोहल्लों में उपर तक पानी भर गया। इस शहर के लोगों ने पहली बार एनडीआरऍफ़ की टीम को बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद करते हुए देखा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मुताबिक़ राज्य की विपदा की स्थिति से केंद्र सरकार को अवगत करा दिया गया है। उत्तराखंड में तबाही वाली इस बारिश से चंपावत जिले में एक घर गिरने से दो अन्य लोगों की मौत हो गई, जहां जल स्तर में वृद्धि के कारण चल्थी नदी पर एक निर्माणाधीन पुल बह गया है,नैनीताल में नैनी झील ओवरफ्लो, मंदिर में पानी आ गया, रामगढ़ में बादल फटा, मुक्तेश्वर में मकान गिरा और हल्द्वानी में रेल की पटरियां बही जिससे जान और माल का काफी नुकसान भी हुआ।