अभी तक तो यही सुना था कि मनुवादी वर्ण व्यवस्था सिर्फ हिन्दू धर्म में ही अपनाई जाती है और समाज का जाति के नाम पर ब्राहमण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र ( दलित )में बंटवारा भी इसी धर्म में हुआ है। इसीलिये संकीर्ण जातिवादी व्यवस्था में यकीन न करने वाले असंख्य लोग धर्म परिवर्तन कर दूसरे धर्मों के अनुयायी बन जाते हैं। इसी कड़ी में सिख धर्म के बारे में भी यही कहा जाता है कि इसाई , बौद्ध और इस्लाम धर्म की तरह इस धर्म में भी किसी तरह की जातिगत व्यवस्था का विधान नहीं है।
ताजा उदाहरण चरणजीत सिंह चन्नी को कप्तान अमरिंदर सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में पंजाब का मुख्यमंत्री बनाए जाने के रूप में देखा जा सकता है। चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनाने के बाद यह कहा जा रहा है किअमरिंदर के विकल्प के रूप में उनकी खोज कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक है क्योंकि श्री चन्नी दलित समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं और इस देस्श में सबसे ज्यादा दलित वोटर पांजाब में ही हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ पंजाब में दालित मतदाताओं की संख्या करीब 34 – 35 फीसदी है।किसी भी इलाके में कुल मतदाताओं में किसी एक तबके की इस अनुपात में मौजूदगी वास्तव में पूरे चुनाव को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है लेकिन सवाल यह भी है की क्या किसी चुनाव में ऐसा भी होता है कि समाज का एक विशेष तबका केवल अपने तबके के ही पक्ष में करता हो ?
इस लिहाज से देखें तो एक सिख दलित के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी की पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी चौंकाने वाली भी लगती है , वो भी तब जब एक दिन पहले तक कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अम्बिका सोनी , खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू , अमरिंदर सिंह की केबिनेट के सहयोगी सुखजिंदर सिंह रंधावा , तृप्त राजिंदर सिंह , राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा , ब्रह्म मोहिन्द्रा, विजय इन्दर सिंगला , पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कुलजीत सिंह नागरा और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड जैसे नेताओं के नाम चर्चा में हों तब एक नए नाम पर इस तरह फैसला हो जाना आश्चर्जंक तो है ही। चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद पंजाब की जमीने राजनीति क्या गुल खिलायेगी यह तो वक़्त ही बतायेगा लेकिन एक बात तो तय है कि अगर श्री चन्नी की वजह से राज्य के दलित वोट बैंक का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने में कांग्रेस सफल रहती है तो फिर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित है।
कहा जा रहा है कि चन्नी के बहाने कांग्रेस ने पंजाब के दलित वोट बैंक पर निशाना साधा है। इसके अलावा अकाली दल के दलित डिप्टी सीएम बनाने के चुनावी वादे का भी तोड़ निकालने के साथ ही भाजपा के दलित CM बनाने और आम आदमी पार्टी द्वारा पंजाब विधानसभा में दलित नेता हरपाल चीमा को विपक्ष का नेता बनाए जाने की चालबाजी को भी ध्वस्त कर दिया है इसीलिए इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक भी कहा जा रहा है लेकिन जमीनी यथार्थ ऐसा नहीं है जैसा कांग्रेस के हवाले से समझा और समझाया जा रहा है। कांग्रेस ने नई सरकार में दो उप मुख्यमंत्री भी बनाए हैं। इस फ़ॉर्मूले को लागू करने का कारण यह बताया गया है ताकि पंजाब की राजनीति के तीन प्रमुख जातीय समीकरणों को साधा जा सके। पंजाब में अगर हिन्दू मुख्यमंत्री बनाया जाता जैसी कि पहले चर्चा थी की सुनील जाखड को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता था , ऐसी स्थिति में एक जट सिख और एक दलित उप मुख्यमंत्री बनाया जाता। अब जब कांग्रेस ने दलित को मुख्यमंत्री बना दिया है लिहाजा दो उपमुख्यमंत्री हिन्दू और जट सिख ही बनाए जाते। प्रसंगवश यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि पंजाब में पहली बार किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाया गया है। चरणजीत सिंह चन्नी रामदासिया समुदाय (सिख दलित) से आते हैं। पूरे भारत में पंजाब में दलितों का प्रतिशत सबसे ज़्यादा है। पंजाब विधानसभा में कई सीट ऐसी हैं जहां दलितों की भूमिका निर्णायक होती है।