असम और मिजोरम राज्यों के बीच हुआ हालिया सीमा विवाद बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। सोमवार 26 जुलाई 2021 को हुई यह घटना इसलिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि भूमि के टुकड़े को लेकर देश के दो राज्य आपस में इस तरह खूनी संघर्ष में शामिल हो गए जैसे दो देश आपस मे युद्ध करते हैं, असम पूर्वोत्तर भारत का एक ऐसा राज्य है जिसे इतिहास में अहोम राज्य कहा जाता था। सिक्किम को छोड़ कर एक तरह से आज का पूरा उत्तर पूर्वी क्षेत्र कभी इसी अहोम राज्य का हिस्सा हुआ करता था।
कालान्तर में राजनीतिक जरूरतों के मद्देनजर मेघालय, मणिपुर , मिजोरम , नागालैंड , त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश के नाम से अलग – अलग सीमान्त राज्य वजूद में आए थे। पूर्वोत्तर के इस पूरे क्षेत्र को विभाजन के बाद भी भारत की सात बहनों के रूप में मान्यता थी और कहा जाता था कि भाषाई , सांस्कृतिक , भोगोलिक और कई तरह की सामाजिक विविधताओं और भिन्नता के बावजूद पूर्वोत्तर का यह पूरा इलाका एक ही है और असाम से अलग होकर ये राज्य अलग – अलग नामों से पहचाने जरूर जाते हैं लेकिन इनकी पहचान सात बहनों के रूप में ही है।
इस सन्दर्भ में सिक्किम को आठवीं बहन कभी नहीं कहा गया क्योंकि वो कभी भी भारत के अहोम राज्य का हिस्सा नहीं था। नाम्ग्यालों का यह राज्य विश्व के मानचित्र में अलग देश के रूप में विराजमान था जिसने 1975 में स्वेच्छा से भारत का अंग होना स्वीकार किया था। इस पृष्ठभूमि में जब एक ही देश के दो राज्य जमीन के एक टुकड़े के लिए आपस में इस तरह लड़ते हुए दिखाई दें तो ऐसा आभास होता है कि सात बेटियों के एक पिता की दो बेटियाँ विवाह के बाद पिता की संपत्ति से मिले हिस्से को लेकर आपस में लड़ रही हो। दुर्भाग्यपूर्ण है किदेश के दो राज्यों की इस आपसी झड़प में दोनों राज्यों की पुलिस और जनता दोनों ही शामिल हो गईं और असम पुलिस के पांच जवान शहीद भी हो गए। इस विवाद में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 50 से ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं।
बात बस इतनी भर नहीं है किसंपत्ति विवाद के लिए हुए इस संघर्ष में इतने लोग मारे गए और इतने घायल हो गए। असल बात तो यह है कि अगर संपत्ति से जुड़े ऐसे किसी भी मुद्दे पर भारत के दो राज्य आपस में दो दुश्मन देशों की तरह लड़ते दिखाई दिए तो फिर देश में हर रोज ऐसे किसी मुद्दे को लेकर एक शीत युद्ध होगा।
नदी जल बंटवारे को लेकर तो उत्तर से लेकर दक्षिण तक देश के अनेक राज्य कई दशक से आपस में लड़ ही रहे हैं। अगर ये सब भी आमने – सामने आ गए तो उत्तर में पंजाब हरियाणा और दिल्ली सतलुज – यमुना जल बंटवारे को लेकर आपस में लट्ठ उठाये दिखाई देंगे तो दक्षिण में कावेरी जल विवाद को लेकर कर्णाटक और तमिलनाडु समेत कई राज्यों के बीच भी ऐसी ही जंग दिखाई देगी। दो राज्यों के बीच आपसी विवाद की इस तरह की तरह की परिस्थितियाँ तब और अजीब लगने लगती हैं जब दोनों राज्यों में उसी पार्टी या सहयोगी पार्टी की सरकार हो जिसकी केंद्र में भी सरकार हो।
ऐसे मामले आपसी बातचीत के जरिये आसानी से सुलझाए जा सकते हैं पर दुर्भाग्य से केंद्र की भाजपा सरकार असम की भजपा सरकार और मिजोरम की सहयोगी की की सस्र्कार को इस मसले के सामाधान के लिए बातचीत मेज तक नहीं ला सकी और यह दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हो गया। इस हादसे को लेकर जिस तरह की जानकारियाँ अभी तक सामने आयीं हैं उनके मुताबिक कथित तौर पर असम और मिजोरम दोनों ही राज्यों की पुलिस ने एक – दूसरे पर फायरिंग की। दोनों राज्यों के बीच संपत्ति का यह विवाद सीमावर्ती इलाके में अभी क्यों अचानक उठ गया , यह भी एक रहस्य ही बन कर रह गया है। दोनों राज्यों की सरकारों के साथ ही केंद्र की सरकार को भी यह पता है कि असम और मिजोरम के बीच अनुचित और अनियोजित तरीके से सीमा निर्धारण को लेकर एक भूमि विवाद कई दशक से चल रहा है।
इस विवाद की जड़ में ब्रिटिश शासन के दौरान सीमा निर्धारण को लेकर जारी किये गए वो दो नोटिफिकेशन हैं जिसके आधार पर असम और मिजोरम दोनों ही राज्य असम के कछार और मिजोरम के कोलासिब जिलों के बीच की धरती पर अपना – अपना दावा करते हैं और दोनों ही राज्य एक दूसरे पर अपनी जमीन के अतिक्रमण करने का आरोप भी लगाते रहते हैं। गौरतलब है कि 1972 में केंद्र शासित राआज्य के रूप में उभर कर सामने आने से पहले मिजोरम लुशाई हिल्स के नाम से असम राज्य का ही एक हिस्सा था। इन दोनों राज्यों के बीच करीमगंज-मामित और हैलाकांडी-कोलासिब बॉर्डर की सीमाओं को लेकर भी विवाद की स्थिति बनी हुई है।
मिजोरम की भोगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि उसे असम के साथ ही त्रिपुरा और एक अन्य राज्य के साथ भी सीमा साझा करनी पड़तीं हैं। असम की तरह त्रिपुरा के साथ भी मिजोरम का एक सीमा विवाद कई दशक से चल रहा है लेकिन वहाँ अभी तक किसी तरह के खूनी संघर्ष की स्थिति देखने को नहीं मिली है , इस लिहाज से असम सीमा पर यह खूनी संघर्ष चिंता का कारण भी बन जाता है। इस विवाद के बाद हालांकि केंद्र सरकार ने स्थिति नियंत्रण में रहने की बात की है लेकिन बुनियादी सवाल यही है कि एक तरफ चीन, दूसरी तरफ म्यामार और बांग्लादेश जैसे देशों से घिरा होने के बावजूद देश के इस इतने संवेदनशील इलाके में दो राज्यों के आपसी विवाद के स्थायी समाधान को लेकर केंद्र की सरकार गंभीर क्यों नहीं रही है ..मिजोरम के तीन जिले आईजोल, कोलासिब और मामित, असम के कोचर, हेलकांडी और करीममंग जिलों के साथ 164.6 किमी लंबी अंतर राज्यीय सीमा साझा करते हैं। मिजोरम के अलावा असम का मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के साथ भी सीमा विवाद है। हालिया विवाद तब गंभीर हुआ जब असम पुलिस ने कुछ लोगों को अतिक्रमण कारी बता कर वो इलाका खाली कराने को कहा जहां वो बसे हुए थे।
जिन लोगों को खदेड़ा गया था वो मिजोरम से थे, इसलिए इस कार्रवाई से खटास और बढ़ गई। सीमा के दौरे पर गई असम सरकार की टीम पर 10 जुलाई को एक आईईडी बम भी फेंका गया। 11 जुलाई की सुबह मिजोरम के इलाके से एक के बाद एक दो धमाकों की आवाज आई। बताया जा रहा है कि मिजोरम-असम की सीमा पर अज्ञात बदमाशों द्वारा आठ झोपड़ियां जला दिए जाने के बाद से तनाव पैदा हो गया था। असम – मिजोरम सीमा पर ऐसे विवाद आये दिन होते रहते हैं लेकिन 26 जुलाई का हादसा अपने आप में अकेला और अजूबा ही कहा जा सकता है ।