NCERT की इस कविता में जिस तरह के शब्दों का चयन किया गया है, वो छोटे बच्चों के बालमन के हिसाब से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। इस कविता के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है और किस असंवेदनशील एडिटर ने इसका चयन किया है ये तो NCERT ही बता सकता है। किसी भी मनोवैज्ञानिक से अगर आप पूछे जो बालमन पर काम करते है , तो आसानी से जान सकते है कि छोटे बच्चें गीली मिट्टी के जैसे होते है उन्हें किसी भी सांचे में ढाला जा सकता है। ऐसे में अगर इस तरह की कविता और शब्दों का चयन किया जा रहा है तो ये बेहद आलोचनात्मक है।
हालांकि बच्चों के लिए पढ़ने और सिखाने के लिए ये इस तरह की कविता का पाया जाना नया नहीं है, पर अब तरीके बदल गए है , पठन पाठन का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है । सूत्रों के हवाले से आरोप है मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन और आरएसएस का पूरा दबाव है सामग्री तैयार करने में। और उनके चहेतों से काम लेने का स्पष्ट निर्देश है। अगर इस दावे की पुष्टि की जाये तो आप घटिया कंटेंट और प्रस्तुतिकरण से देख सकते है किस तरह की प्रतिभाओं का चयन किया जा रहा है।
सवाल ये है क्यों मंत्रालय ऐसे घटिया कंटेंट को पास करता है-
2019 से शिक्षा मंत्रालय डॉ रमेश निशंक पोखरियाल के पास है। शिक्षा मंत्री की मास्टर की डिग्री विवादित है, इसके अलावा मंत्रालय में काम के नाम पर, ठोस कार्यक्रम से ज्यादा सोशल मीडिया पर प्रचार करते ज्यादा देखे जाते है। मंत्रालय में आरएसएस का दखल इस कदर है कि मंत्रालय के अधीन आने वाले सभी प्रमुख संस्थानों पर राजनीति हावी है। अधिकारी और विभाग शिक्षा के काम के अलावा हमेशा विवादों में रहता है आजकल NEP पर सक्रिय है। इसलिए इस तरह के घटिया कंटेंट और मनमानी बड़ी आसानी से अब बच्चों की पाठ्यक्रम में जगह पा रहे है। ये भी जानना आवश्यक है कि पहली क्लास में देश भर में पढ़ाई जाने वाली NCERT की इस किताब को मंज़ूर करने वाली समिति के अध्यक्ष कौन हैं।
बच्चों के लिए सालों पहले भी के कंटेंट लिखे जाते थे
एक चिड़िया अनेक चिड़िया 1974 में आई ये कविता बच्चों के साथ-साथ बड़ों को आज भी लुभाती हैं। संदेश भी देती है कि पंछियों का शिकार गलत बात है। आम के माध्यम से गिनती और पहाड़ा भी सिखाती है। तकनीक उस दौर में बहुत उन्नत नहीं थी, पर कंटेंट और उसके साथ सामंजस्य बेजोड़ है।
“आम की टोकरी” में अशुद्धियों की भरमार है साथ ही ये बाल मजदूरी को प्रस्तुत करती है। आपका बच्चा स्कूल बेहतर भविष्य के लिए जाता है, अगर इस तरह का कंटेंट उसे परोसा जाता है अभिनय करवाया जाता है तो उसके बालमन पर क्या असर होगा और वो कैसा नागरिक बनेगा। इस कविता में निम्नलिखित समस्याएँ हैं-
1. जो किताब पूरे भारत में जाएगी, उसके हिसाब से “छोकरी” शब्द के प्रयोग से बचना चाहिये। छोकरी शब्द देश के कई हिस्से में अपमानजनक अर्थों में प्रयुक्त होता है। पाठ्यपुस्तक सलाहकार समिति में इसी वजह से देश भर के विद्वान रखे जाते हैं।
2. आम की टोकरी को छह साल की बच्ची के माथे पर रखवाने से बचना चाहिए। बाल श्रम की अवधारणा समझ पाने के लिए कक्षा 1 के स्टूडेंट्स समर्थ नहीं हैं। ये कविता दरअसल बाल श्रम का सामान्यीकरण करती है।
3. जिन वाक्यों या वाक्यांशों के एक से अधिक अर्थ निकल सकते हैं, और दूसरे अर्थ अशोभनीय हो सकते हैं, उनसे बचना चाहिए। खासकर बच्चों की किताबों में इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।भाषा विज्ञानियों को इसका ख़्याल रखना चाहिए।
4. भाषा सिर्फ संप्रेषण करने वाले की नहीं होती है। भाषा जहां पहुँच रही है और जिन लोगों तक पहुँच रही है, वह भी महत्वपूर्ण हैं। अगर एक भी व्यक्ति शब्दों का वह अर्थ लगा रहा है, जो आप कहना नहीं चाहते तो भाषा संचार ने अपना उद्देश्य पूरा नहीं किया है।
5. हिंदी का भौगोलिक क्षेत्र व्यापक है। शब्दों की व्याप्ति और अर्थों का ध्यान रखना चाहिये। आप ये नहीं कह सकते कि हमारे इलाक़े में ये मतलब है और आपको भी वही मतलब समझना होगा।
चयन समिति और मंत्रलाय को इस तरह के कंटेंट को रखना है पाठ्यक्रम में या नहीं ये विचार जरूर होना चाहिए। इस कविता के कारण हिंदी पट्टी के पढ़े लिखे लोगों और भाषा के जानकारों में एक बहस जरूर चल पड़ी है। और ये हिंदी और बालमन के लिए अच्छी भी है क्योंकि बच्ची हो या बच्चा सभी एक बराबर है और आने वाले युवा जिनके कंधों पर इस देश का भविष्य ऐसे में ये विरोध उचित भी है।