वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र और ऊत्तरप्रदेश का सबसे चर्चित शहर बनारस। जब 2014 में भाजपा ने अपने प्रत्यासी की तौर पर नरेंद्र मोदी की घोषणा संसदीय क्षेत्र बनारस के लिए की तो लोगों का समर्थन और उत्साह का सैलाब अपने चरम पर था, मोदी ने भी बड़े जोर शोर से बनारस को क्योटो बनाने की घोषणा कर डाली। जापान के प्रधानमंत्री को बनारस बुलाकर महफ़िल खूब लूटी गई। जनता खुश की कोई तो आया है बनारस के उद्धार करने वाला पर उस उद्धार की हक़ीक़त आज कोविड की महामारी में उनको समझ में बखूबी आ रही है । कोविड एक बड़ा सवाल है, सिस्टम और केंद्र सरकार के साथ ऊत्तरप्रदेश में बैठी भाजपा पर !
रोज वाराणसी में कोरोना के केस बढ़ते जा रहे है, कल 1375 रिपोर्ट दर्ज हुई है, प्रधानमंत्री दवाई भी कड़ाई भी की खोखली दलील देखे खुद अति सुरक्षित सुरक्षा घेरे में घूमकर चुनाव प्रचार कर रहे है, देश में मौत का आंकड़ा शायद अब गिनती भी भूल चुका है कितनी बेसमय की मौत और क्षति हुई है इस महामारी में। अगर सिर्फ बनारस की बात की जाये तो आप को सच्चाई जानकर शर्म आ जायेगी।
बनारस में पूरा पूर्वांचल, बिहार और शहर के लोगों की भीड़ को ईलाज के लिए चयनित अस्पतालों की हालत और ICU बेड की हकीकत और नाकाफी बदइंतजामी इस कदर फैली है कि ना सही संख्या में टेस्ट किये जा रहे है, और ना ही उनकी कोई रिपोर्ट कहीं है जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार के खुद के आंकड़ो में कोई तालमेल नहीं। पिछले साल कोविड की पहली लहर के बाद भी ठोस और कदम नहीं उठाये गए है। कितनी गंभीर है सरकार ये पिछले दिनों BHU में टार्च की रोशनी में ऑपरेशन होते आपने तक्षकपोस्ट पर ही देखा। करोड़ों रुपये की बंदरबांट में आखिर पैसा किस बंदर के तराजू में गया ये बड़ा सवाल है?? मौत के मामले में जरूर भारत विश्वगुरु बनता जा रहा है।
ये सवाल क्यों कर रहा है तक्षकपोस्ट देखिये-
बनारस में कल शहर के बीचोंबीच कबीरचौड़ा स्थित शहर के सबसे पुराने सरकारी अस्पताल में एक गंभीर रूप से बीमार मरीज को उसके परिजन लाकर भर्ती करते है! मरीज के परिजनों के बार-बार कहने के बाद भी अस्पताल की तरफ से कोई चिकित्सा और दूसरे अस्पताल में रेफर करने व्यवस्था नहीं कि जाती , शिकायत पर मरीज को दो बोतल पानी चढ़ा दिया जाता है, पर मरीज की हालत शरीर में ऑक्सीजन की कमी और तत्काल चिकित्सा नहीं मिलने के कारण हो जाती है, मरीज की भतीजी के द्वारा खुद ऑनलाइन मरीज के शरीर से लिये आये सैम्पल की जांच रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि मरीज जिसकी मौत हुई है कोविड पॉजिटिव था।
आखिर ये मजाक क्या है-
कोविड पॉजिटिव मरीज की मौत हो जाने के बाद बाद उसको बेड से उतार कर जमीन पर रख दिया जाता है, ये मरीज कोविड19 पॉजिटिव था। तो इसको कोविड वार्ड या अन्य मरीजों से दूर रखने की जगह इसको सामान्य वार्ड में बाकी मरीजों की जान जोखिम में डालते हुये कैसे रखा गया। मौत के बाद लाश को बेड से उतार कर उसी कमरे में जमीन पर लिटा दिया गया। क्या ऐसे रोकथाम होगी कोरोना की ??
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकार की तरफ से क्या व्यवस्था की गई है, और कैसे अस्पताल इलाज कर रहे है, जिन मरीजों को कोविड के लक्षण है और जिनका टेस्ट रिपोर्ट ये पुष्टि करता है कि वो सामान्य बीमारी से नहीं कोविड से पीड़ित है के लिए क्या उपाय किये जा रहे है, नाईट कर्फ्यू का औचित्य क्या है जब दिनभर बनारस में सामान्य गतिविधियों में पूरे शहर में भीड़ इकट्ठी हो रही है।
योगी हर छोटे अंतराल पर क्या व्यवस्था देखने बनारस जाते रहते है,कहा है प्रदेश की आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था के इंतेजाम, क्या पूरे शहर में मात्र अगर सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की आपातकालीन व्यवस्था और एक अनुमानित 300 की ICU बेड काफी है, इस महामारी में लोगों की जान बचाने के लिए !
BHU में OPD बंद कर दी गई है। डॉ और स्टॉफ में करीब 50% कोविड पॉजिटिव है, भरपूर दवाई का स्टॉक नहीं शहर में, मामलें बढ़ते जा रहे है पर पुराने ढर्रे पर तैयारी चल रही है।
सरकार की मंशा साफ है टेस्टिंग नहीं होगी तो वास्तविक आंकड़े नहीं आएंगे सामने, दवाई नहीं है और कड़ाई सिर्फ आम जनता के पीठ पर लाठी बरसा कर पुलिस सिर्फ वसूली में लगी है। क्या इतने से इस महामारी को रोका जा सकता है। ऐसे कयोटो अगर बनाना है लाशों पर तो बनारस को पूरे स्वरूप में ही रहने दिया जाना चाहिए।