मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने पिछले साल मई में दिए आदेश में संशोधन किया है। उच्च न्यायालय ने अब मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में शामिल करने पर विचार करने के लिए राज्य सरकार को दिया अपना निर्देश हटा दिया है। उच्च न्यायालय ने अपने विवादास्पद 27 मार्च 2023 के आदेश से एक पैराग्राफ हटा दिया है जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे पर एक सिफारिश भेजने का निर्देश दिया गया था।
इस आदेश के कारण मणिपुर में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा हुई थी। आदिवासी कुकी समुदाय ने अदालत के निर्देश का विरोध किया था।
चीफ जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति गोलमेई गाइफुलशिलु की पीठ ने कहा कि 27 मार्च 2023 को पारित आदेश का पैराग्राफ 17 (iii) हटाया जा रहा है।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में संशोधन का निर्देश देते हुए न्यायमूर्ति गाइफुलशिलु ने कहा कि अनुसूचित जनजाति सूची में संशोधन के लिए भारत सरकार ने प्रक्रिया निर्धारित की है। उन्होंने लगभग 11 महीने पहले पारित आदेश के पैरा 17 (iii) में निहित हाईकोर्ट के निर्देश को हटाने पर जोर दिया। अदालत ने साल 2013-14 में जारी जनजातीय मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट में शामिल विस्तृत संवैधानिक प्रोटोकॉल का उल्लेख भी किया।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ अपने 19 पेज के फैसले में कहा, एकल न्यायाधीश के फैसले में पैरा 17(iii) सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में की गई टिप्पणी के खिलाफ है। अदालत ने अनुसूचित जनजाति वर्गीकरण के संबंध में न्यायिक हस्तक्षेप पर विधायी सीमाओं को भी रेखांकित किया। बता दें कि नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साफ किया था कि अधिकार क्षेत्र का विस्तार नहीं किया जा सकता।
मार्च 2023 में मणिपुर हाईकोर्ट के तत्कालीन कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन की पीठ ने सरकार को निर्देश दिया था। अप्रैल में आदेश की प्रति सार्वजनिक होने के बाद मणिपुर के कई हिस्सों में जमकर हिंसा भड़की थी। हाईकोर्ट के फैसले को संशोधित करने का आदेश देते हुए चीफ जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की पीठ ने बुधवार, 21 फरवरी को पारित आदेश में कहा, ‘अदालत इस बात से संतुष्ट है कि एकल न्यायाधीश की पीठ में 27 मार्च, 2023 को पारित आदेश के पैराग्राफ 17 (iii) में दिए गिए निर्देशों की समीक्षा जरूरी है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने साफ किया कि एकल पीठ के निर्देश सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ है।’
पिछले साल पारित फैसले के जिस विवादित पैराग्राफ को हटाया गया है उसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने पर विचार करने की प्रक्रिया तेज करने को कहा गया था। 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने कहा था कि आदेश की प्रति मिलने के चार हफ्ते के भीतर राज्य सरकार मीतेई / मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किए जाने के मामले पर विचार करेगी।
मालूम हो कि पिछले साल अक्टूबर में उच्च न्यायालय ने मणिपुर में आदिवासी संगठनों को 27 मार्च के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी थी। इसके बाद ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन द्वारा एक अपील दायर की गई थी।
इस साल 20 जनवरी को मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने 27 मार्च के आदेश को संशोधित करने की मांग वाली एक समीक्षा याचिका स्वीकार कर ली और केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी।