हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल के इस आशायर को उनसे मुआफी अर्ज कर आज यूं लिखें तो हर्ज नहीं ; हज़ारों साल दुनिया अपनी बे-नूरी पे रोती हैं बड़ी मुश्किल से होती है ईरान में नरगिस मोहम्मदी पैदा
ईरान की महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद करने वाली मानवाधिकार एक्टिविस्ट और अभी वहां एवान की जेल में बंद नरगिस मोहम्मदी को आज नोबेल शांति पुरस्कार 2023 घोषित कर दिया गया। पेशे से इंजीनियर ,नरगिस मोहम्मदी ने ईरान में औरतों के हक और बुनियादी मानवाधिकारों की मांग पर 1990 के दशक से अपने कार्यों और लेखन के साथ ही सबके लिए आजादी की मांग का समर्थन किया है। ईरान सरकार द्वारा एक नहीं 13 बार गिरफ्तार कर 31 साल कैद में रखी गईं और 154 कोड़ों की बर्बर सजा भुगत चुकी 52 बरस की नरगिस मोहम्मदी को नार्वे की नोबल शांति पुरस्कार निर्णायक कमेटी ने यह पुरस्कार देने की घोषण की। कमेटी ने अपनी घोषणा में ईरान की महिलाओं के ‘ नारे जन- जिंदगी-
आजादी ‘ का उल्लेख किया-
नरगिस विवाहित हैं। उनकी दो जुड़वा बेटियां, आली और कियाना उनके पति और एक्टिविस्ट ,तागी रहमानी के साथ अभी फ्रांस में रह रही हैं। नोबेल पुरस्कार के साथ नरगिस को 8.33 करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम और एक गोल्ड मेडल भी दिया जाएगा।
नरगिस जीवन परिचय-
नरगिस का जन्म ईरान में कुर्दिस्तान के जंजन शहर में 21 अप्रैल 1972 में हुआ था। उन्होंने फिजिक्स की पढ़ाई की पूरी करने के बाद बतौर अभियंता काम किया। वह कई अखबारों के लिए कॉलमनिस्ट भी रहीं। उन्होंने 2003 में तेहरान के ‘ डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट सेंटर ‘ में काम शुरू किया और जेल में बंद कार्यकर्ताओं एवं उनके परिवारों की मदद का काम शुरू किया। इसी आरोप में उन्हें 2011 में पहली बार गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कैद की सजा से उनको दो साल बाद जमानत मिल गई। लेकिन उन्हें 2015 में फिर गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। नरगिस ने इसी बरस जून में न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू में बताया था कि वह आठ बरस से अपने बच्चों से नहीं मिली है। उन्होंने आखिरी बार अपनी बेटियों की आवाज एक साल पहले फोन पर सुनी थी जो उनके पति के साथ फ्रांस में रहती हैं। तागी को भी ईरान की सरकार ने 14 साल के कारावास की सजा दी थी। नरगिस की ‘ व्हाइट टॉर्चर ‘ नाम की किताब के मुताबिक ईरानी हुकूमत की तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी और उनके शोहर की आवाज दबाई नहीं जा सकी। जेल में उन्होंने साथी कैदियों की तकलीफ को कलमबंद किया। उन्हें 2022 में ‘ रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ‘ के साहस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
महात्मा गांधी-
विश्व शांति के लिए नोबेल पुरस्कार देने का सिलसिला 1901 में शुरू हुआ था और यह 111 लोगों और 30 संस्थाओं को मिल चुका है। भारत के राष्ट्रपिता और अहिंसा, सत्य एवं शांति के विश्वविख्यात प्रेमी, महात्मा गांधी को इसके लिए उनके जीवनकाल में ही पाँच बार नामित किए जाने के बावजूद पुरस्कार नहीं मिलने पर सवाल उठे थे। इस पर 1937 में नोबेल पुरस्कार कमेटी के सलाहकार रहे जेकब वॉर्म-मुलर ने लिखा था, ” गांधी स्वतंत्रता सेनानी, आदर्शवादी, राष्ट्रवादी और तानाशाह हैं। वो कभी मसीहा लगते हैं, लेकिन फिर अचानक आम नेता बन जाते हैं। वो हमेशा शांति के पक्ष लेने वालों में नहीं रहे। उन्हें पता होना चाहिए था कि अंग्रेजों के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक अभियान, हिंसा और आतंक में बदल जाएंगे। जेकब की रिपोर्ट के बाद कमेटी ने महात्मा गांधी को शांति नोबेल प्राइज नहीं देने का फैसला किया। गांधी जी को 1938, 1939, 1947 और 1948 में भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया। एक बार उनका नाम नामित लोगों की लिस्ट से हटा दिया गया था। बापू को 1937 से 1939 तक नॉर्वे के ही सांसद ,ओले कॉल्बजॉर्नसेन ने नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया था। जब हिंदुस्तान ब्रिटिश हुक्मरानी के शासन से आजाद हुआ तो गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग फिर उठी। उन्हें 1947 में तीन लोगों ने मिलकर नामित किया। तब नोबेल कमेटी के सलाहकार ,जेन्स आरुप सेइप की रिपोर्ट में गांधी जी की सराहना की गई पर उन्हे भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण पुरस्कार का हकदार नहीं माना गया।
उस कमेटी के पाँच में से तीन का तर्क था हिंदुस्तान के विभाजन और उसके बाद हिन्दु-मुस्लिम सामरदायिक दंगों में करीब 10 लाख लोगों के मारे जाने के चलते उन्हें अवॉर्ड नहीं दिया जा सकता है। गांधी जी को 1948 में भी छह लोगों ने इस पुरस्कार के लिए नामित किया था जिनमें से दो ,क्वेकर संस्था को 1946 में और एमिली ग्रीन बाल्च को 1947 का यह पुरस्कार मिला था। भारत की आजादी के बाद भी गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार देने की कोशिश हुई थी पर उसके नामांकन की तय अंतिम तारीख के दो दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई। ऐसे में पुरस्कार कमेटी ने 1948 में किसी को भी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं देने का फैसला किया। बहरहाल , नोबेल शांति पुरस्कार कमेटी ने अंततः ईरान में कठमुल्ले शासकों के राज से लोहा लेने वाली नरगिस मोहम्मदी को 2023 में यह पुरस्कार देने का निर्णय से गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं देने अपने फैसले का एक तरह से प्रायश्चित ही किया है। इसका सर्वत्र स्वागत किया जाना चाहिए।
*लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और बिहार के अपने गाँव में खेती बड़ी स्कूल चलाने म किताबें लिखने के काम से अवकाश लेकर इन दिनों दिल्ली आए हुए है।