केंद्र सरकार अगले महीने शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता लागू करने पर एक बिल पेश कर सकती है। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्र ने यह जानकारी दी है। सूत्रों ने कहा कि बिल को संसदीय स्थायी समिति को भेजा जा सकता है जो समान नागरिक संहिता पर विभिन्न हितधारकों की राय सुनेगी। ये जानकारी कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर हितधारकों के विचार मांगने के लिए कानून पैनल द्वारा जारी हालिया नोटिस पर 3 जुलाई को कानून आयोग और कानून मंत्रालय के प्रतिनिधियों को बुलाए जाने के बाद आई है।
समान नागरिक संहिता को लेकर सांसदों की राय जानने के लिए संसदीय स्थायी समिति की 3 जुलाई को बैठक बुलाई गई है। इस मुद्दे पर विधि आयोग, कानूनी मामलों के विभाग और विधायी विभाग के प्रतिनिधियों को बुलाया है। 14 जून को विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता पर आम लोगों से सुझाव मांगने के मुद्दे पर इन तीनों विभागों के प्रतिनिधियों को बुलाया गया है।
कानून और कार्मिक पर स्थायी समिति के कार्यक्रम के अनुसार, यह 14 जून 2023 को भारत के विधि आयोग द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस पर कानून पैनल और कानून मंत्रालय के कानूनी मामलों और विधायी विभागों के प्रतिनिधियों के विचारों को सुनेगी।
पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि मानसून सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह में शुरू होने की संभावना है, जिसमें पुराने संसद भवन में बैठकें शुरू होंगी और बीच में नई इमारत में चलेंगी।
इससे पहले मंगलवार को पीएम मोदी ने सभी समुदायों के लोगों के लिए समान कानूनों की जोरदार वकालत की और दावा किया था कि संवेदनशील मुद्दे पर मुसलमानों को उकसाया जा रहा है।
उन्होंने कहा था कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी यूसीसी की वकालत की है, लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वाले इसका विरोध कर रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा और पूछा कि देश में दो प्रणालियां कैसे हो सकती हैं?
पीएम मोदी के बयान से देश भर में बहस छिड़ गई क्योंकि कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि वह कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी मुद्दा उठा रहे हैं।
तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी ने कानून व्यवस्था की स्थिति को पूरी तरह से बाधित करने और ‘धार्मिक हिंसा’ भड़काने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लोग इन्हें 2024 के चुनाव में जवाब देंगे। स्टालिन ने आगे कहा कि हमारे पीएम मोदी कहते हैं कि एक देश में दो तरह के कानून नहीं होने चाहिए। वो देश में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काकर और भ्रम पैदा करके 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की सोच रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं आपको स्पष्ट रूप से बता रहा हूं कि आगामी लोकसभा चुनाव में लोग बीजेपी को सबक सिखाने के लिये तैयार हैं।
NCP प्रमुख शरद पवार ने कहा कि यूसीसी के बारे में चर्चा करने से पहले केंद्र सरकार को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करना चाहिए। यूसीसी मुद्दे को लेकर हो रही बहस पर उन्होंने कहा, ”एनसीपी विभिन्न समुदायों के सुझावों और मांगों पर गौर करने के बाद अपना रुख स्पष्ट करेगी।”
पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने पीएम मोदी से यूसीसी को लेकर तीन सवाल किए। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ”प्रधानमंत्री नरेंद्र ने समान नागरिक संहिता पर जोर दिया। विपक्ष पर मुसलमानों को भड़काने का आरोप लगाया। पहला सवाल, आखिर नौ साल बाद यह बात क्यों? 2024 (चुनाव के लिए)? दूसरा सवाल, आपका प्रस्ताव कितना ‘समान’ है, आदिवासी और पूर्वोत्तर सभी इसके दायरे में आते हैं? तीसरा सवाल, हर दिन आपकी पार्टी मुसलमानों को निशाना बनाती है. क्यों? अब आपको चिंता हो रही है।’’
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र सरकार को यूसीसी के मुद्दे को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए और इसे लागू करने के परिणामों पर पुनर्विचार करना चाहिए। अब्दुल्ला ने कहा, ‘’यह विविधताओं से भरा देश हैं। यहां विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग रहते हैं और मुसलमानों का अपना शरिया कानून है। उन्होंने आगे कहा कि (केंद्र सरकार को) इन सब पर विचार करना चाहिए और इसे आगे बढ़ाने के बजाय इसके परिणामों के बारे में सोचना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि तूफान आ जाए।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने कहा कि महज ‘शरिया’ का विरोध ही यूसीसी का आधार नहीं हो सकता। पार्टी के मुखपत्र सामना में इस बात पर भी जोर दिया कि यूसीसी का अर्थ कानून और न्याय की दृष्टि में सभी के लिए समानता भी है। शरिया, कुरान की शिक्षाओं तथा पैगंबर मोहम्मद के उपदेशों पर आधारित इस्लामिक धार्मिक कानून है, जिसका मुस्लिम समाज के लोग पालन करते हैं।
कांग्रेस नेताओं ने पीएम मोदी पर महंगाई, बेरोजगारी और मणिपुर की स्थिति जैसी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है।
मालूम हो कि समान नागरिक संहिता एक प्रस्ताव है जिसका उद्देश्य धर्मों, रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को धर्म, जाति, पंथ, यौन अभिविन्यास और लिंग के बावजूद सभी के लिए एक समान कानून से बदलना है।