राजस्थान के धौलपुर और मुरैना जिले में इन इंडियन स्कीमर्स का पूरा कुनबा प्रजनन के लिए हर साल ठहरता है। गुलाबी लंबी चोंच, सफेद गर्दन, गुलाबी पैर और काले रंग का धड़ इंडियन स्कीमर को अधिक आकर्षक बनाता है।
इंडियन स्कीमर को हिंदी में पनचीरा और राजस्थानी स्थानीय भाषा में पंछीडा कहा जाता है। इंडियन स्कीमर अपनी काली टोपी और चटक नारंगी रंग की चोंच की वजह से आसानी से पहचान में आ जाते हैं। खूबसूरत और आकर्षक लाल चोंच के इन पक्षियों को इन दिनों चंबल नदी में आसानी से देखा जा सकता है।
चंबल नदी के टापूओं पर इन इंडियन स्किमर्स का शोर और मछली पकडऩे का इनका अंदाज वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफरों और बर्ड वॉचर्स को खूब लुभा रहा है। इंडियन स्कीमर अपनी कलाबाजियों से सबको आकर्षित करती है। चोंच से पानी को चीरते हुए मछली का शिकार करना इस पंछी को एक अचूक और माहिर शिकारी सिद्ध करता है। इन पक्षियों के पंख लगभग 108 से.मी. होते हैं। मछलियों और कीट के शिकार के दौरान पंखों को अत्यंत तेजी से हिलाते हुए मुंह खोलकर नदी के पानी को चीरते हुए निकलने का दृश्य किसी रोमांच से कम नहीं होता।
एक जानकारी के अनुसार दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार में लुप्त स्थिति में पहुंची इंडियन स्कीमर पक्षी की संख्या चंबल में हर साल बढ़ती जा रही है। चंबल सेंचुरी में कार्यरत वन मंडल मुरैना के जानकार और काबिल कर्मचारी सोनू तोमर का कहना है कि इन पक्षियों का प्रजननकाल शुरू हो चुका है, मई तक अण्डों से चूजे बाहर निकल आते हैं। सोनू ने बताया कि इंडियन स्कीमर अपने चूजों की रक्षा के लिए बाज से भी भिड़ जाती है। बाज इनके चूजों का शिकार करने के लिए घोंसले पर हमला करते हैं। इंडियन स्कीमर अधिकांश हमलों में बचाव करने में सफल रहती है।
तीन राज्यों- मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सीमाओं के बीच से बहती चंबल नदी का विस्तार करीब 950 किलोमीटर का है जिसमें सैकड़ों प्रजाति के पक्षी देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं चंबल नदी को दुनियाभर में घड़ियालों के लिए भी जाना जाता है जिसमें घड़ियाल, मगरमच्छ और दुर्लभ कछुओं भी पाए जाते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक़ इंडियन स्कीमर की दुनियाभर में आबादी अब 3000 के ही करीब बची हुई है।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के जर्नल के अनुसार, भारतीय स्किमर्स नवंबर तक चंबल अभयारण्य में पहुंचना शुरू कर देते हैं और जल स्तर घटने और टापू और सैंडबार के निर्माण के साथ, पक्षी मार्च तक इकट्ठा होते हैं। घोंसला बनाना मार्च से जून तक होता है; कुछ देर से घोंसला बनाने वाले घोंसले बनाने की गतिविधि जुलाई तक जारी रखते हैं। मानसून के आने और नदी में बाढ़ आने के बाद ये पक्षी विदा होने लगते हैं; इस समय तक, चूजे स्थिर उड़ानें लेने में सक्षम होते हैं। अधिकांश वयस्क, साथ ही किशोर, अगस्त तक अपने गैर-प्रजनन स्थल पर जाने के लिए चंबल छोड़ देते हैं। गैर-प्रजनन के मौसम के दौरान, भारतीय स्किमर का व्यापक क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर में, पंजाब से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार से होते हुए पश्चिम बंगाल तक, ओडिशा (चिलिका) और ब्रह्मपुत्र तक फैला हुआ है।