लंबे समय से किताबों को लेकर बात नहीं हुई , मौसम में ठंड की बढ़ती दस्तक के बीच युवा लेखक अभिषेक शर्मा की खूबसूरत रचना है, ‘इश्क के अस्सी घाट’ में बनारस के इश्किया ठाट।
पुराणों से भी पुरानी नगरी बनारस, जहां इश्क का बारहों महीने एक सा मौसम रहता है। कभी सर्दियों में घाट पर ठिठुरता है, कभी बसंत में खिल उठता है, कभी गर्मियों में जेठ की दुपहरी में झुराता (सूखता) है तो सावन में हरा भरा हो उठता है। बनारस के घाट से लेकर गलियों तक इश्क के तमाम किस्से साहित्यकारों ने रचे और उनको रुपहले पर्दे पर भी किरदारों ने बखूबी जीवंत किया। एक लंबे समय के बाद बनारस में गंगा घाटों से लेकर गलियों और अड़ियों से लेकर मंदिरों तक मानो इश्क की कहानियों ने पंचक्रोशी यात्रा ‘इश्क के अस्सी घाट’ के जरिये की है। बनारस के पृष्ठभूमि और तानेबाने पर बुनी गई कुल 21 अप्रेक (अधूरी प्रेम कहानियां) कहानियों के माध्यम से पुराने शहर से निकलकर आधुनिक शहर के तौर पर बदलते काशी को स्थापित किया है। साहित्य जगत में पहली बार काशी यानी बनारस की छवि रांड -सांड- सीढ़ी- संन्यासी से इतर परोसी गई है। शब्दों में खांटी बनारसी वाली मिक्सचर काशिका बोली के अलावा भोजपुरी और अवधी के साथ खड़ी बोली भी किरदारों के साथ गढ़ी गई है। अमूमन सभी कहानियों में किरदार युवाओं के इर्द गिर्द ही बुने गए हैं।
21 कहानियों में 21 अलग किरदार हैं और 21 अलग हालात के साथ मुकम्मल न हो पाने वाले इश्क की वो कहानियां हैं जो आपको हंसाती भी हैं, गुदगुदाती भी हैं और आपको फ्लैश बैक में भी किसी न किसी जरिये से काशी की अल्हड़ता से जोड़ देती हैं। ड्रामा है, ट्रेजेडी है और उसपर से सबसे अधिक कहानियों की नवीनता और शब्दों का भदेस चयन भी है।
कहानियों में बनारसी चाय की अड़ी है तो मुम्बई की टपरी भी है। गंगा घाट की निर्मलता है तो मुम्बई एयरपोर्ट का सुलगता स्मॉग रूम भी है। दिल्ली की दिल्लगी पर बनारसी पान का रंग चढ़ जाता है तो लखनऊ की तहजीब भी किसी कहानी की रवानी में आपको जवानी की यादों के रस से सराबोर कर देता है।
लेखक और पत्रकार अभिषेक शर्मा की यह तीसरी किताब है। इससे पहले पत्रकारिता जीवन पर ‘इंडियन फ्रेम में ई दुनिया’ के जरिये आधुनिक पत्रकारिता तो ‘पत्रकारिता के गीत’ जैसे पत्रकारिता पर प्रथम काव्य संग्रह के रूप में संग्रहणीय साहित्य दे चुके हैं। इस बार उन्होंने ‘इश्क के अस्सी घाट’ के जरिये युवा होते मन को छुआ है तो अधेड़ होने जा रहे युवाओं को कहानियों से झिंझोड़ा है। इसके जरिये वो अप्रेक यानी अधूरी प्रेम कहानियों की पहली किताब के माध्यम से तमाम हादसे और टूटते -दरकते इश्किया रिश्तों की भी पड़ताल करा देते हैं। खबरी दुनिया से अलग इश्कियापे की दुनिया को अपनी पहली कहानी संग्रह में उन्होंने बखूबी रचा और तारतम्यता से सहेजा और संजोया है। एक पत्रकार किसी परिस्थिति को बखूबी समझता है और उसे शब्दों में उकेरता है। इस लिहाज से ‘इश्क के अस्सी घाट’ में अभिषेक शर्मा बतौर पत्रकार ही नहीं कहनीकार के तौर पर भी सफल नजर आ रहे हैं। युवाओं के बीच ‘इश्क के अस्सी घाट’ का क्रेज इतना है कि लिस्ट होने के बाद से ही उनकी रुचि चर्चा में आ गई है। अभिषेक शर्मा इसके पीछे कोविड काल के लंबे संघर्ष वाले समय से लोगों के मन मस्तिष्क को कुछ ऊर्जा भरने वाली सामग्री का होना बताते हैं। उनकी कहानी संग्रह में कोविड काल का बनारस में संघर्ष तो मानो काशी के एक युग को अंकवार इस किताब में भर लेता है।
लम्बे समय बाद बतौर पत्रकार और रचनाकार अभिषेक शर्मा की यह किताब चर्चा में है। अगर आपको इश्क की अधूरी कहानियों में रुचि है, अगर आपको इश्क की दुनिया का स्याह पहलू और खूबसूरती भी बनारस में गंगा की पवित्रता के बीच निहारना सुखद लगता है तो ‘इश्क के अस्सी घाट’ फुर्सत के पलों में पढ़ने योग्य और संग्रहणीय कहानी संग्रह है। लेखन शैली आपको गंगा घाटों से लेकर गलियों और अड़ियों से लेकर महानगरों तक की सैर कराती है और ‘इश्क के अस्सी घाट’ तक जीवंत चित्रण करने में सफल है।
चलो घुमा लाएं ‘इश्क के अस्सी घाट’ कैम्पेन के जरिये रचनाकार ने बनारस को ही नहीं पूरे देश के पाठकों को आकर्षित किया है। आप भी बनारस को लंबे समय बाद साहित्य की दुनिया में ‘इश्क के अस्सी घाट’ के जरिये तलाश सकते हैं।
किताब अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है, लिंक पर जाकर आप किताब खरीद सकते है।
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