सत्ता के नेतृत्व में बदलाव के साथ ही बहुत सारे बदलाव होते हैं। राजनीति में ये बदलाव सिर्फ उस समय नहीं आते जब सत्ता परिवर्तन के बाद कोई नई पार्टी वजूद में आती है, बल्कि कई बार तो एक ही पार्टी के दोबारा सत्ता में आने पर भी अगर सत्ता के नेतृत्व में ही बदलाव हो जाए और पहले व्यक्ति के स्थान पर पार्टी किसी नए व्यक्ति को सत्ता संचालन के अधिकार दे देती है तब भी इस तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
सत्ता में नेतृत्व परिवर्तन के साथ जब कभी अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे परिवर्तान देखने को मिलते हैं तब किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए जैसा भारत के लोगों को 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद पार्टी के स्तर पर हुए बदलावों को देख कर हो रहा है। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है की इस देश में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी को भी जब कभी किसी वजह से अपने प्रधानमंत्री बदलने पड़े तब भी इसी तरह के बदलाव पार्टी और सरकार के स्तर पर हुए थे। लेकिन इस तरह का आश्चर्य व्यक्त नहीं किया गया था जिस तरह का आश्चर्य प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी के बाद हुए बदलावों के सन्दर्भ में किया जा रहा है।
इस तरह का बदलाव स्वाभाविक है, और इसके मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी ऊँचे पद पर पहुँचता है तो अपने अनुरूप कार्य सम्पादन के लिए वह अपने आसपास अपने विश्वासपात्र लोगों को ही जोड़ना पसंद करता है। लिहाजा सरकार से लेकर संगठन तक ऐसे लोगों की ही भरमार होती है जो उसके अपने होते हैं। जाहिर है जब अपने लोग आगे आयेंगे तो पार्टी और सरकार के उन लोगों को पीछे हटना ही पड़ेगा जो नए नेतृत्व के करीबी नहीं समझे जाते। इस लिहाज से देखें तो नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भाजपा के कई वरिष्ठ नेता सत्ता के आभा मंडल से दूर हुए हैं जो भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में शक्तिशाली समझे जाते हैं। अटल जी के बाद नरेन्द्र मोदी भाजपा के दूसरे ही प्रधानमंत्री हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने के महत्वपूर्ण और शक्तिशाली नेताओं में सबसे पहला नाम अटल मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य और देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का आता है। जो आजकल परामर्श मंडल का सदस्य बना कर पार्टी में हाशिए पर कर दिए गए हैं। इनके साथ ही पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पूर्व पार्टी अध्यक्ष डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी भी परामर्श मंडल की शोभा बढ़ा रहे हैं।
परामर्श मंडल के अलावा भी भाजपा के ऐसे अनेक नेता हैं जो भाजपा की पिछली सत्ता में तो बहुत ताकतवर हुआ करते थे पर नई सत्ता में उनकी उपस्थिति पहचान का संकट बन गई है।
भाजपा के ऐसे नेताओं में भाजपा के थिंक टैंक समझे जाने वाले विद्वान् गोविन्दाचार्य, उनके संसर्ग में विदुषी बनी पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्य मंत्री उमा भारती के साथ ही पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा , जसवंत सिंह , अरुण शौरी , पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेनका गाँधी , पूर्व केन्द्रीय मंत्री और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज , छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य मंत्री रमण सिंह ,राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया,
जम्मू – कश्मीर के वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ,पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कर्णाटक के वरिष्ठ भाजपा नेता अनंत कुमार ,गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मनोहर पर्रीकर , और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली के नाम मुख्य रूप से शामिल हैं।
सत्ता के केन्द्रीय नेताओं के रूप में भाजपा के ऐसे जिन नेताओं की आजकल चर्चा नहीं होती उनमें कई तो अब इस दुनिया में ही नहीं हैं। ऐसे नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ही सुषमा स्वराज , अरुण जेटली , मनोहर पर्रीकर , अनंत कुमार और जसवंत सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं। हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल से अलग किये गए पूर्व केन्द्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद , प्रकाश जावडेकर और रमेश पोखरियाल निशंक सरीखे नेताओं को भी हाशिये पर भेज दिए गए नेताओं की श्रेणी में ही शामिल किया जा सकता है।
प्रसंगवश यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा किसत्ता के आभामंडल से दूर कर दिए गए भाजपा नेताओं में एक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। वह तीन बार भाजपा के अध्यक्ष भी चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे श्री आडवानी ने साल 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा भी निकाली थी। साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल था। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में श्री आडवानी के अलावा भाजपा के मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सरीखे अन्य अनेक नेताओं को भी अभियुक्त बनाया गया था। विचित्र संयोग है कि इनमें से कोई भी नेता आज सता के आभामंडल के इर्द गिर्द भी नहीं है इसी तरह डॉ॰ मुरली मनोहर जोशी भी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता हैं। राजग के शासनकाल में वे भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री थे और बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं बाद में वह भाजपा के अध्यक्ष भी बने। 1996 की तेरह दिनी अटल सरकार में वो केन्द्रीय गृह मंत्री रहे थे। इसके अलावा 15वीं लोकसभा में उन्हें पीएसी का चेयरमैन भी बनाया गया था।
मुरली मनोहर जोशी जी का जन्म 5 जनवरी सन् 1934 को दिल्ली में हुआ था। उनका पैतृक निवास-स्थान वर्तमान उत्तराखण्ड के कुमायूँ क्षेत्र में है। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम॰एस॰सी॰ किया था , यहीं से उन्होंने अपनी डॉक्टोरेट की उपाधि भी अर्जित की थी । उनका शोधपत्र स्पेक्ट्रोस्कोपी पर था। अपना शोधपत्र हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया था . विज्ञानं विषय में हिंदी में शोध करने वाले वे प्रथम शोधार्थी थे । बाद में वे राष्ट्रीय राजनीति में आ गए ।