नई दिल्ली: एअर इंडिया (Air India) के निजीकरण को लेकर आज पटाक्षेप हो ही गया। कर्ज में जूझ रही एअर इंडिया को बेचने की सरकार की कोशिश और इसी बहाने निजीकरण के प्रयासों को आखिरकार कामयाब मिल गई। सरकार जिस तरह से भारत को अमेरिका बनाने पर आमादा है एक दिन ऐसा भी आयेगा जब देश के पास सरकारी के नाम पर अपना कुछ नहीं बचेगा। बम्पर सेल में मोदी जी अपने लिए विशेष विमान खरीद लाये पर अपनी सरकार को बिना सरकार के कर गये।
सरकार ने एअर इंडिया के लिए बोली के लिए आई निवेदा में से टाटा को चुना है। एअर इंडिया की कमान अब टाटा ग्रुप (Tata group) ही संभालेगी। टाटा ने एअर इंडिया के लिए 18,000 करोड़ की बोली लगाई। इसी के साथ सबसे बड़ी बोली लगाकर टाटा ग्रुप एक बार फिर एअर इंडिया का कमान अपने हाथों ले लिया। डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट यानी दीपम (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) ने प्रेस काॅन्फ्रेंस करके इसकी जानकारी दी है।
DIPM के सेक्रेटरी तुहीन कांत ने कहा कि Air India के लिए टाटा ग्रुप ने 18,000 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। Air India का 15300 करोड़ रुपए का कर्ज टाटा चुकाएगी। एअर इंडिया पर 31 अगस्त तक 61,560 करोड़ रुपए का कर्ज था। इसमें 15300 करोड़ रुपए टाटा संस चुकाएगी जबकि बाकी के 46,262 करोड़ रुपए AIAHL (Air India asset holding company) भरेगी।
दीपम के सचिव तुहिन कांत पांडेय बोलते हुए कहा कि एअर इंडिया स्पेसिफिक अल्टरनेटिव मैकेनिज्म (AISAM) पैनल ने एअर इंडिया की फाइनेंशियल बोली पर फैसला लिया है। इस पैनल में गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत कई महत्वपूर्ण मंत्री और अधिकारी शामिल हैं। कई बार बोली के लिए आवेदन मांगे गए, लेकिन फाइनली सितंबर में दो बिडर के नाम फाइनल हुए। एअर इंडिया के सभी कर्मचारियों का ध्यान रखा जाएगा। उन पर इसका असर नहीं होगा।
एअर इंडिया के लिए टाटा ग्रुप (Tata Group) और स्पाइसजेट (SpiceJet) के अजय सिंह (ajay singh) ने बोली लगाई थी। जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयरलाइंस (Tata airlines) की स्थापना की। अब 68 साल बाद वापस एअर इंडिया को टाटा ग्रुप ने सबसे अधिक बोली लगाकर खरीद लिया है।
क्यों बिक गई एअर इंडिया-
इसकी कहानी शुरू होती है साल 2007 से 2007 में सरकार ने एअर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस (Indian airlines) का मर्जर कर दिया था। मर्जर के पीछे सरकार ने फ्यूल की बढ़ती कीमत, प्राइवेट एयरलाइन कंपनियों से मिल रहे कॉम्पिटीशन को वजह बताया था। हालांकि, साल 2000 से लेकर 2006 तक एअर इंडिया मुनाफा कमा रही थी, लेकिन मर्जर के बाद परेशानी बढ़ गई। कंपनी पर कर्ज लगातार बढ़ता गया।कंपनी पर 31 मार्च 2019 तक 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान लगाया गया था कि एयरलाइन को 9 हजार करोड़ का घाटा हो सकता है।
सालों से चल रही कंपनी को बेचने की कोशिश-
बता दें कि इससे पहले 2018 में भी सरकार ने एअर इंडिया के विनिवेश की तैयारी की थी। उस समय सरकार ने एअर इंडिया में अपनी 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया था। इसके लिए कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) मंगवाए गए थे, जिसे सब्मिट करने की आखिरी तारीख 31 मार्च 2018 थी, लेकिन निर्धारित तारीख तक सरकार के पास एक भी कंपनी ने EOI सब्मिट नहीं किया था। इसके बाद जनवरी 2020 में नए सिरे से प्रक्रिया शुरू की गई. इस बार 76 फीसदी की जगह 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया गया। कंपनियों को 17 मार्च 2020 तक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट सब्मिट करने को कहा गया, लेकिन कोरोना की वजह से एविएशन इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई, इस वजह से कई बार तारीख को आगे बढ़ाया गया और 15 सितंबर 2021 आखिरी तारीख निर्धारित की गई।
साल 1932 में टाटा ने शुरू की थी एअर इंडिया-
एअर इंडिया को 1932 में टाटा ग्रुप ने ही शुरू किया था। टाटा समूह के जे.आर.डी. टाटा इसके फाउंडर थे। वे खुद पायलट थे। तब इसका नाम टाटा एअर सर्विस रखा गया। 1938 तक कंपनी ने अपनी घरेलू उड़ानें शुरू कर दी थीं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद इसे सरकारी कंपनी बना दिया गया। आजादी के बाद सरकार ने इसमें 49 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदी।