संसदीय लोकतंत्र में सरकार चलाने के लिए सरकार को नीतिगत मुद्दों पर विपक्ष की सलाह भी लेनी ही पड़ती है और कई बार ऐसा भी होता है कि जब किसी मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष अपनी ही बात पर अड़े रह जाते हैं तब लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही मतदान से फैसला भी लिया जाता है। लोकतंत्र में बहुमत का महत्व होता है इसलिए मतदान के बाद फैसला जिसके भी पक्ष में हो , दोनों पक्षों को उसे स्वीकार भी करना पड़ता है। आमतौर पर सत्ता पक्ष की ही जीत होती है क्योंकि संख्या बल के आधार पर सांसदों का बहुमत सत्ता पक्ष के पास ही होता है लेकिन कई बार ऐसा भी होता है जब ऐसे किसी मतदान के मौके पर सदन में सत्ता पक्ष के सांसद कम हों तो पासा पलट भी जाता है।
विपक्ष संख्या बल के आधार पर अल्पमत में होता है इसलिए अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए वो संसदीय कार्यवाही के दौरान हंगामा , शोर शराबा करता है और सदन के कामकाज में विघ्न डालने की कोशिश भी करता है। संसदीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इसे बुरा भी नहीं माना जाता क्योंकि लोकतंत्र में अपनी बात कहने का उसे भी पूरा हक है और उसे यह हक देश के संविधान ने दिया है। अपने – अपने समय में हर राजनीतिक दल यह सब काम करता है। संसद के मौजूदा सत्र को लेकर भी यही स्थिति बनी हुई है।
संसद के मॉनसून सत्र में पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच कुछ ऐसी ही तकरार जारी है। सरकार तो सत्र शुरू होने के दिन से लगातार इसी कोशिश में लगी रही है कि संसद के दोनों सदनों में सुचारू तरीके से काम हो लेकिन विपक्ष भी पेगासस जैसे कथित जासूसी मामले और किसान विरोधी क़ानून वापस लेने के मुद्दे पर सरकार को चैन से बैठने नहीं दे रहा है। यही कारण है कि विगत 19 जुलाई से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र में विपक्ष ने एक दिन भी संसद को सुचारू रूप से चलने नहीं दिया। ऐसे में पक्ष और प्रतिपक्ष एक दूसरे पर परस्पर विरोधी आरोप भी लगा रहे हैं।
विपक्ष जहां सरकार पर बिना चर्चा के संसद से विधेयक पारित कराने का आरोप लगा रहा है तो सरकार का आरोप है कि विपक्ष के हंगामे और शोर शराबे की वजह से संसद की कार्यवाही न चल पाने के कारण देश को हर रोज करोड़ों के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी के एक सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मंत्री ने कुछ दिन पूर्व अपने एक बयान में कहा था कि विपक्ष के हंगामे की वजह से सरकार को तब तक 130 करोड़ रुपये का नुकसान हो चूका था। पूर्व मंत्री ने जब यह बयान दिया था तब संसद के वास्तविक कार्य दिवसों की संख्या मुश्किल से 10 रही होगी। इस हिसाब से अंदाज लगाए तो प्रतिदिन करीब 13 करोड़ रुपये की दर से सरकार को आर्थिक घाटा हुआ है। सरकार के पास विपक्ष के बिना चर्चा के विधेयक पारित करने के आरोप का सीधा सा जवाब यह है की ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है जब संसद ने बिना चर्चा के विधेयक पास किये हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सरकार और विपक्ष दोनों ही चाहते हैं संसद का सत्र चले लेकिन सत्र चल भी रहा है और नहीं भी चल रहा है। विपक्ष इसलिए चाहता है कि संसद का सत्र चले ताकि उसमें कथित किसान विरोधी क़ानून और पेगासस जासूसी जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सके। इसलिए विपक्ष शोर शराबे में ही सही संसद के दोनों सदनों इन दोनों मुद्दों पर चर्चा कराने की मांग भी कर रहा है लेकिन सरकार, विपक्ष की मांग से जुड़े किसी भी विषय पर चर्चा कराने को तैयार नहीं है। उसे ऐसा लगता है कि अगर इन मुद्दों पर चर्चा हो गई तो कई ऐसी बातें ऑन रिकॉर्ड संसदीय कार्रवाई में दर्ज हो जाएंगी जिन्हें सरकार और उसके मंत्री किसी भी तरह से सार्वजनिक नहीं करना चाहेंगे। इन हालात में सरकार और विपक्ष दोनों ही अपने – अपने तरीकों से एक दूसरे को घेरने के काम में लग गए हैं। इसी का नतीजा है कि एक तरफ सरकार अपने मंत्रियों और घटक दलों के सांसदों के साथ मिलकर विपक्ष की रणनीति को फेल करने के लिए जुटे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों के सांसद सरकार की हर कोशिश को नाकाम करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. सत्ता और विपक्ष दोनों में से कोई भी पक्ष यह समझने को तैयार नहीं की उनकी इस रार – तकरार से नुकसान तो जनता का ही हो रहा है. क्योंकि संसद की कार्रवाई के न चलने से लोक महत्व के असंख्य मुद्दों पर संसद में चर्चा ही नहीं हो पा रही है . हंगामे के बीच संसद में विधेयक पारित करने के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है वो सब सिर्फ खानापूरी ही है और कुछ नहीं .संसद में बिना चर्चा के विधेयक पारित कराने के सन्दर्भ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह बयान उल्लेखनीय है जिसमें वो कहती हैं कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-यूपीए सरकार के कार्यकाल में इसी तरह से विधेयक पास कराये गये थे। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने 2007 में 11 महत्वपूर्ण विधेयक पास किये थे, जिसमें आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम भी शामिल था।2007 में कम से कम 11 बिल जल्दबाजी में पास करवा गए थे। वित्त मंत्री के इस वक्तव्य का मतलब तो यह हुआ कि पूर्ववर्ती सरकार ने अगर गलतियां और गलत काम किये थे तो इस सरकार को भी यह सब करने का पूरा हक है .
संसद के दोनों सदनों की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक के बाद संसदीय मंत्रालय ने संसद के मानसून सत्र में चर्चा और पारित कराने की गरज से जो विधेयक कार्यसूची में शामिल किए थे उनमें अध्यादेश की जगह लेने वाले अधिकरण सुधार (सेवा का युक्तिकरण और शर्तें) विधेयक, 2021, दिवालाअक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021 , राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग विधेयक, 2021 , आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021, भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2021 और होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2021 के साथ ही कई नए विधेयक के साथ कई अन्य महत्वपूर्ण विधेयक भी शामिल हैं . इन महत्वपूर्ण विधेयकों में – डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019। फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक, 2020। अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक देखरेख एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 के नाम उल्लेखनीय हैं .इस सत्र में लोकसभा के कामकाज के लिए कुछ ऐसे विधेयक भी कार्यसूची में रखे गए जो राज्य सभा पहले ही पारित कर चुकी है . ऐसे विधेयकों में – में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान विधेयक, 2019, और नौवहन के लिए समुद्री सहायता विधेयक, 2021जैसे विधेयक शामिल हैं . इसी तरह राज्यसभा की कार्यवाही के लिए कुछ ऐसे विधेयक शामिल किये गए जिनको लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है ऐसे विधेयकों में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021, सरोगेसी (विनियमन) विधे यक, 2019। कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) संशोधन विधेयक, 2021। चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, कॉस्ट और वर्क्स अकाउंटेंट्स तथा कंपनी सेक्रेटरीज (संशोधन) विधेयक, 2021 सीमित दायित्व भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2021 , कैंटोनमेंट विधेयक, 2021, भारतीय अंटार्कटिका विधेयक, 2021,केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक,
2021 भारतीय वन प्रबंधन संस्थान विधेयक,
2021, पेंशन कोष विनियामक एवं विकास प्राधिकरण
(संशोधन) विधेयक,
2021,जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआईसीजीसी)
विधेयक,
2021,भारतीय समुद्री मात्स्यिकी विधेयक,
2021 पेट्रोलियम और खनिज पाइपलाइन (संशोधन) विधेयक, 2021। अंतर्देशीय पोत विधेयक, 2021 विद्युत (संशोधन) विधेयक