26 का मतलब भारत के इतिहास के सन्दर्भ में कुछ ख़ास है। यह तो पूरी दुनिया जानती है कि साल 1950 के जनवरी महीने की इसी 26 तारीख ( 26 जनवरी 1950 )को देश के अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के करीब ढाई साल बाद देश का अपना संविधान लागू हुआ था। जिसे हम हर साल गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।
देश का अपना संविधान लागू होने की इस महत्वपूर्ण घटना के बाद भी इस तारीख को समय – समय पर कुछ न कुछ ऐसा ख़ास होता रहा है जिसे खुशी और आठवा गम के किसी भी रूप में याद रखा जा सकता है। इसी सन्दर्भ में 26 नवम्बर की एक घटना अपने नकारात्मक कृत्य के लिए याद रखी जाती है। यह वही अशुभ घटना है जिसे इतिहास 26/11 यानी 26 नवम्बर की एक दर्दनाक घटना के रूप में याद रखा जाता है। आज से करीब साढ़े 12 साल पहले देश की राजधानी मुंबई में हुई आतंकी घटना ने इस तारीख को उसकी बर्बरता के लिए याद रखने को मजबूर कर दिया। इसी दिन पाकिस्तान के कराची से नाव में सवार होकर आतंकवादियों का एक जत्था रात 8 बजे के आसपास मुंबई के कोलाबा स्थित कैफ रोड के मछली बाजार में उतरा था और वहाँ से चार जत्थे बना कर चार अलग – अलग दिशाओं में आतंक फैलाने के लिए निकल गए थे।
इन आतंकियों ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेल टर्मिनल , ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल , ताज होटल , नरीमन हाउस और लियोपोल्ड कैफ़े समेत अनेक महत्वपूर्ण स्थलों और इमारतों को निशाना बना कर अंधा धुंद गोली बारी और बम बिस्फोट कर डेढ़ सौ से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। आतंक की यह वारदात तीन दिन तक चली थी और इसमें 300 से ज्यादा लोग घायल भी हो गए थे। 29 नवम्बर 2008 को तीन दिन तक चले संघर्ष के बाद सुरक्षाबलों ने पूरी तरह आतंकवादियों का सफाया कर दिया था और इसी संघर्ष में अजमल कसाब नाम का एक आतंकी जिन्दा पकड़ में भी आ गया था जिसे बाद में फांसी दे दी गई थी।
बहरहाल ! मौजूदा सन्दर्भ 26/11 के साढ़े 12 साल पुराने आतंकी हादसे को याद करने का नहीं बस उस 26 तारीख को याद करने का है जो समय – समय पर अलग – अलग कारणों से चर्चा में रही है। इसी महत्वपूर्ण तारीख पर एक महत्वपूर्ण काम आज से आठ महीने पहले 26 नवम्बर को तब हुआ था जब भारत सरकार द्वारा लागू किये गए तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ देशभर के किसानों ने देश की राजधानी दिल्ली में प्रवेश करने वाले तीन द्वार – गाजीपुर , सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर अपना अनंत कालीन धरना शुरू कर दिया था। यह एक संयोग ही है की 6 और 2 के अंकों का कुल योग 8 होता है और 26 जुलाई 2021 को इस किसान धरने के 8 महीने भी पूरे हो गए। किसानों के इस ऐतिहासिक धरने में में इस बार एक नया मोड़ तब आया जब आन्दोलनकारी किसानों ने पिछले सप्ताह से दिल्ली के जंतर – मंतर पर किसान संसद के आयोजन का सिलसिला शुरू किया।
इस संसद की अनेक खासियतें हैं। सबसे बड़ी खासियत यह है किसंसद भवन के मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जंतर मंतर धरना स्थल पर यह संसद हर रोज उसी वक़्त पर आयोजित की जाती है जिस समय संसद का सत्र चल रहा होता है। संसद सत्र के दौरान सदन की बैठक का समय आम तौर पर सुबह 11 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक होता है। इसी आधार पर जंतर मंतर की किसान संसद भी अधिकतम दो सौ किसानों की भागीदारी के साथ 11 बजे से शाम के 5 बजे तक ही आयोजित होती है। संसद में भाग लेने वाले किसान भी सिंघु, टिकरी और गाजीपुर धरना स्थल से ही बसों में सवार होकर आते हैं और शाम को फिर वहीं वापस चले जाते हैं। किसान संसद में केवल खेती – किसानी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती है और अलग – अलग क्षेत्र और अलग – अलग पहचान के किसान अलग – अलग दिनों में संसद की बैठक का आयोजन करते हैं।
इस लिहाज से सोमवार 26 जुलाई 2021 का दिन किसान संसद के सन्दर्भ में इसलिए ख़ास था क्योंकि इस दिन किसान संसद की पूरी कमान महिलाओं को सौंपीं गई थी। किसान आन्दोलन के सन्दर्भ में किसान संसद की यह तारीख इसलिए भी ख़ास हो गई थी क्योंकि देश की मुख्य प्रतिपक्षी पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गाँधी भी किसान आन्दोलन के समर्थन में खुल कर सामने आ गए थे। राहुल गाँधी किसान के सबसे करीबी समझे जाने वाले वाहन ट्रेक्टर से संसद भवन के करीब विजय चौक तक पहुँच गए थे। राहुल खुद ट्रेक्टर चला कर वहाँ पहुंचे थे .कहना गलत नहीं होगा की कांग्रेस किसान आंदोलन के समर्थन में सरकार को घेरने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहती। इसलिए किसान आन्दोलन के सन्दर्भ में किसी न किसी बहाने कांग्रेस संसद से लेकर सड़क तक सरकार का घेराव करने की कोशिश में ही दिखाई देती है। इसी रणनीति के तहत राहुल गाँधी ने सोमवार 26 जुलाई 2021 को ट्रैक्टर की सवारी करते हुए संसद भवन के आसपास तक जाने की रणनीति बनाई थी .राहुल को तो सुरक्षा बालों ने विजय चौक तक पहुँचने दिया लेकिन कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला समेत कई पार्टी नेताओं को दिल्ली पुलिस ने उससे पहले ही हिरासत में ले लिया। इस मौके पर राहुल गांधी ने कहा कि सरकार कह रही है कि किसान खुश हैं लेकिन हकीकत है कि किसानों के अधिकारों को छीना जा रहा है, उनकी आवाज को दबाया जा रहा है।
किसान संसद में शामिल होने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों से महिला किसान मोर्चे पर पहुंची हैं और संसद के तीन सत्र के दौरान इन महिलाओं ने कृषि कानून, खासकर मंडी एक्ट तथा इससे जुड़े अनेक मुद्दों पर बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखते हुए केंद्र सरकार से किसान विरोधी काले कानूनों को अविलम्ब वापस लेने की मांग भी की। तय कार्यक्रम के मुताबिक़ तीन अलग – अलग सत्रों में जिन मुद्दों पर महिला किसान संसद में चर्चा हुई उन्हीं विषयों पर 27 जुलाई को प्रस्ताव पारित किए गए। महिला किसान संसद में शामिल होने वाली 200 किसान महिलाओं में आधी पंजाब से थीं और आधी देश के शेष राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहीं थीं। किसान आन्दोलन का एक सार यही है की संसद और संसद के बाहर जो भी नेता किसान समस्याओं को लेकर आवाज नहीं उठा रहे हैं उनका खुल कर विरोध किया जाए। इसी नीति के तहत पंजाब में भाजपा नेता बलभद्र सेन दुग्गल को फगवाड़ा में किसानों के काले झंडे दिखाए गए। हरियाणा के भाजपा राज्य इकाई के अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ को बादली में विरोध का सामना करना पड़ा। हरियाणा के हिसार गांव में भाजपा नेता सोनाली फोगट को किसानों ने काले झंडे दिखाए तो एक दिन पहले रुद्रपुर में भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा।