100 वर्षों के इतिहास में पहली बार होगा दीक्षांत समारोह बंद कमरे में
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास में पहली बार होगा कि छात्र नेताओं के डर से बंद कोठरी में 3 जनवरी 2022 को दीक्षांत समारोह गांधी अध्ययन पीठ में मनाया जायेगा।
सूत्रों के हिसाब से कुलपति आनंद त्यागी और कुलसचिव ठीक तरह से प्रशासन को नहीं संभाल पा रहे हैं। विद्यापीठ को संघ की प्रयोगशाला बनाने में जो योगदान पूर्व कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह की तरफ से बढ़ाया गया था। उसे इस बार आनंद त्यागी पूरे करते हुए चल रहे है। इसी मंशा के तहत छात्रसंघ में सत्तारूढ़ पार्टी के छात्रसंघ निकाय अखिल विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी ना मिल पाने की दशा में राजभवन के इशारे पर छात्रसंघ चुनाव टालने की कोशिश हुई। इसके विरोध में छात्रों का दल कोर्ट में चला गया हैं। जिसमे कोर्ट ने विश्विद्यालय को जनवरी के पहले हफ्ते में पेश होने को कहा हैं।
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सूत्रों के अनुसार महात्मा गा गांधी काशी विद्यापीठ के 100 वर्ष के इतिहास में छात्र नेताओं के डर से दीक्षांत समारोह 3 जनवरी 2021को गांधी अध्ययन पीठ में कराने की तैयारी चल रही है।परिसर में छात्र संघ चुनाव को लेकर चल रहे बवाल के डर से विश्वविद्यालय प्रशासन डरा हुआ है। छात्र नेता कोर्ट की शरण में है। विश्वविद्यालय में हर दिन छात्र संघ चुनाव कराने को लेकर बवाल चल रहा है।
इसी कारण विश्वविद्यालय प्रशासन 43 वां दीक्षांत समारोह 3 जनवरी 2022 को गांधी अध्ययन पीठ के सभागार में गुपचुप ढंग से कराने की तैयारी कर रहा हैं। जबकि ये समारोह छात्रों के लिए जीवन का सबसे बड़ा अवसर होता हैं। दूसरी तरफ गांधी अध्ययन पीठ में बैठने की क्षमता लगभग 500 सीटे है।
आयोजकों के सामने समस्या खड़ी हो गई है कि 375 महाविद्यालय विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रतिनिधि, गोल्ड मेंडलिस्ट,प्रेस प्रतिनिधि,प्रेस छायाकार,विश्वविद्यालय के संकायप्रमुख,विभागाध्यक्ष,शिक्षक कर्मचारी एवं विशिष्टअतिथि कहां बैठेंगे, यह सोचने की बात है।
विश्वविद्यालय के मुखिया प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी एवं विश्वविद्यालय प्रशासन के पास इच्छाशक्ति की कमी, लचर व्यवस्था का परिणाम है, कि छात्र नेताओं के डर से बंद कमरे में दीक्षांत कराने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यह प्रशासनिक व्यवस्था का नाकाबिल व्यक्ति के हाथों में होने का परिणाम और लचर रणनीति का हिस्सा माना जायेगा। साथ ही संवाद और सेतु की कमी है, छात्र-प्रशासन के बीच। छात्रों को प्रशासन का पाठ पढ़ाने का पहला काम चीफ प्राक्टर का होता है, लेकिन चीफ प्रॉक्टर को आला अधिकारियों को मक्खन लगाने से फुर्सत ही नहीं है, कि छात्रों से संवाद कर अनुशासन का पाठ पढ़ाएं? किसी भी विश्वविद्यालय के छात्र बुरे नहीं होते छात्र से संवाद की कमी महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में दिखाई दे रही है।
कुलपति साफतौर पर केवल और केवल अपने कुलपति बनने के लिए दिये गए पैसों की भरपाई में लगे हैं, और किसी भी तरह अपना 3 साल का कार्यकाल चुपचाप बिना किसी एक्शन के पूरा करने में लगे है। बात चाहे घोटालों की हो, सख्ती की हो, या फिर भ्रस्टाचार पर रोक की हर मोर्चे पर फेल हैं। वरना एक कुलपति की सख्ती के आगे किसी भी तरह के माफिया हो अक्ल ठिकाने लगाने के लिये चंद मिनटों से ज्यादा समय नहीं लगता।
कुलपति के साथ पूरी टीम बेहद लचर और कमजोर होने के साथ डरपोक है-
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी के टीम पर प्रश्न चिन्ह लगा है। प्रो. त्यागी के टीम में डरपोक लोगों की फौज खड़ी है। ऐसे फौज की आवश्यकता क्या है ? की आप खुले मैदान में दीक्षांत ना करा सके।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार विश्वविद्यालय में पूर्व कुलपति प्रोफेसर टी.एन.सिंह की टीम है जो वर्तमान कुलपति को पंगु बना रही हैं। कुलपति के आदेश को विभागाध्यक्ष मान नहीं रहे हैं, और उनके आदेश को ठेंगा दिखा रहे हैं। यह सोचने का विषय है। समझने का विषय है,कि आज विश्वविद्यालय में अराजकता की स्थिति बनी है कहीं ना कहीं इन लोगों का भी हाथ है। जरूरत है विश्वविद्यालय में बदलाव की और ठोस कदम उठाने की।
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जानकारी के अनुसार विश्वविद्यालय के मुखिया वर्तमान कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी चाहते हैं कि विश्वविद्यालय की गरिमा को देखते हुए दीक्षांत की अनौपचारिकता पूर्ण कर दी जाये। दीक्षांत तो किसी तरह हो जाएगा लेकिन इतिहास के पन्नों में ये भी दर्ज हो जाएगा कि छात्रों के डर से बंद कोठरी में दीक्षांत हुआ और कुलपति और कुलसचिव निहायत अक्षम साबित हुये।