देश की सुरक्षा में हमारे सेना के जवान दिनरात अपनी जान की बाजी लगा कर माइनस डिग्री में रहकर काम करते है, सरकार की जिम्मेदारी है सेना को आधुनिक तकनीक और जरूरतों के हिसाब से लैस करने की इसी जरूरत को देखते हुए UPA सरकार में 2011 सेना के लिए इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) का प्रॉजेक्ट अस्तित्व में आया। पिछले अंक में 7900 करोड़ के घोटालें की बात तक्षकपोस्ट ने की थी।
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देश की सेना की सुरक्षा में घपले और सेंधमारी पर बड़ी खबर
क्या है ये मामला क्यों जरूरी है –
(IACCS वायु रक्षा संचालन के लिए एक स्वचालित कमान और नियंत्रण प्रणाली है जो सभी जमीन-आधारित और हवाई सेंसर को एक समय में कंट्रोल करके काम करती है।)
ये परियोजना अति संवेदनशील थी, जिसमें देश के अलग अलग 10 स्थानों पर ऐसे अत्याधुनिक तकनीक से लैस बंकर का निर्माण किया जाना था, जिसमें सेना के अधिकारी और सैनिक बैठकर दुश्मनों पर नजर रख सकें। इस परियोजना की कुल लागत 7900 करोड़ रुपये थी। लेकिन आगे चल कर इस परियोजना में भारी अनियमित गड़बड़ी और बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार निकल कर सामने आया जिसका खुलासा 2019 में एक खबर के माध्यम से हुआ। इस पूरे मामले के तह तक जाने के लिए पिछले पार्ट में वाराणसी स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मौजूदा कुलपति की चर्चा की गई थी क्योंकि इस पूरी परियोजना में सबसे गंभीर और आपराधिक दृष्टि से उनकी ही भागीदारी है। देश के सेना से जुड़े रक्षा मामलों में आपराधिक मंशा से किया गया उनका काम देश के साथ गद्दारी से कम नहीं माना जाना चाहिए।
इस पूरे प्रकरण का खुलासा DRDO के एक (Whistleblower) के आधार पर हुआ है जिसकी पहचान 2014 whistleblower एक्ट के अंदर हम नहीं कर सकते सुरक्षा की दृष्टि से। लेकिन तक्षकपोस्ट के पास खबर लिखने से संबंधित सारे साक्ष्य मौजूद है। जिसमें त्रिलोकीनाथ सिंह की भूमिका पर विस्तार से आपको जानकारी मिलेगी। त्रिलोकीनाथ सिंह उस समय बॉम्बे IIT में नौकरी कर रहे थे और बॉम्बे IIT के साथ जुड़े होने के नाते इस भ्रस्टाचार में शामिल हुये।
कुछ सवाल बेहद जरूरी और गम्भीर है –
गांधी काशी विद्यापीठ के मौजूदा कुलपति त्रिलोकी नाथ सिंह नियुक्ति इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि देश के साथ सुरक्षा की दृष्टि से अपराध करना वो भी जानबूझ करना क्या अपराध की श्रेणी में नहीं आता??
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में आता है।
इस 7900 करोड़ की परियोजना के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को चुना गया 2011 में भारतीय वायु सेना इस अति-संवेदनशील काम को करने के लिए उपयुक्त माना गया और टेंडर अलॉट किया गया। जिसमें बनने वाले बंकर की डिज़ाइन भी शामिल था। लेकिन बीईएल ने इस काम के लिए एक निजी डिज़ाइन फर्म जिसका अस्तित्व ही मात्र डेढ़ साल पुराना था उसका अस्तित्व 2010 में बना को चुना जो सवालों के घेरे में है। क्योंकि ये राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामला है।
मामला 2011 में उठा जब बीईएल की एक आंतरिक जांच रिपोर्ट में अनुबंधों से सम्मानित किए जाने के तरीके और देश भर के 10 स्थानों पर एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण की समीक्षा की गई। इस जांच रिपोर्ट में ये पाया गया, बीईएल के अधिकारी इस पूरे भ्रस्टाचार में शामिल थे और सारे नियमों को दरकिनार करके एक निजी कंपनी को इस प्रोजेक्ट में लेकर जिसे, कोडेड प्रणाली की प्रारंभिक परियोजना रिपोर्ट (पीपीआर) बनाने का काम दिया गया।
इस कंपनी का नाम था RD Konsultants, जांच रिपोर्ट के अनुसार, बीईएल ने सितंबर 2011 में IACCS के लिए PPR तैयार करने के लिए सबसे पहले RD Konsultants को नियुक्त किया। रिपोर्ट में पाया गया कि रूबी कांत और सुरेश कुमार आनंद के बीच 50-50 की पार्टनरशिप पर RD Konsultants बनाई गई 1 अप्रैल 2010 को फर्म मुश्किल से डेढ़ साल पुरानी थी जब इसे बीईएल के अधिकारियों ने 6 सितंबर, 2011 को कंपनी को अनुबंध देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी, एक नोट के साथ, जो स्पष्ट रूप से स्पष्ट करता है कि “कॉर्पोरेट सतर्कता दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि ‘ मेंबर्स RD Konsultants’ को एक सलाहकार के रूप में काम पर रखा गया है। जिसमें पीपीआर तैयार करना। नोट में ये भी लिखा गया RD Konsultants सेना के इस परियोजना के बाद और कोई काम नहीं कर सकती। IACCS परियोजना के लिए, BEL को “कंसल्टेंसी की लिए अपने विंडो खुले रखने होंगे।
जांच रिपोर्ट में ये पाया गया कि RD Konsultants को PPR तैयार करने के लिए काम पर रखा गया था। “… प्रस्ताव या निविदा के लिए कोई मानदंडों का पालन नहीं किया गया था, लेकिन इसे डीआरडीओ से किसी लिखित पत्राचार के साथ रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की सिफारिश के आधार पर चुना गया था।”
आरके हांडा, जो उस समय NCS के महाप्रबंधक थे, उस समिति का हिस्सा थे जिसने 2011 में विक्रेताओं का चयन किया और RD Konsultants को नियुक्त किया।
वास्तव में मामला अक्टूबर 2012 में उठाया गया फ़ाइल 28 जुलाई, 2011 को शुरू की गई फ़ाइल की निरंतरता में होना चाहिए था। यह सलाहकारों की भर्ती के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के इरादे से निगरानी में जब आई तो पूछा गया क्यों इसमें विस्तृत जांच की आवश्यकता क्यों नहीं थी, ” यह जोड़ा गया। “दूसरी बार भी मेसर्स आरडी कोंसुल्लंट्स के चयन में, निर्धारित मानदंडों से बहुत गलत दस्तावेज पाये गये।
M / s RD Konsultants की स्थापना अप्रैल 2010 में हुई थी, लेकिन पिछले तीन वर्षों में आवश्यकतानुसार टर्नओवर दिखाने के लिए, उन्होंने 2009-10 में एक टर्नओवर दिखाया, जो एक चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा सत्यापित भी था। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि झूठी जानकारी प्रदान की गई थी। साथ ही, अप्रैल 2010 को अस्तित्व में आई एक कंपनी ने दिखाया कि उसके कर्मचारियों को 2013 में पांच साल का अनुभव था। यह फिर से गलत जानकारी है। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि एक अन्य कंपनी, मेसर्स सिस्टम्स डायनेमिक्स, को उस कसौटी पर समिति ने खारिज कर दिया था जिसमें उसने केवल दो साल (2010-11 और 2011-12) के लिए कारोबार दिखाया था। ऐसी कंपनी जिसका पता ही वास्तविक नहीं था, इसने ही 10 जगहों के लिए PPR पर काम किया
इस कंपनी के साथ त्रिलोकीनाथ सिंह के गहरे संबंध है, कैसे व्व आरोपी है, जांच अधिकारी ने क्या पाया अपनी रिपोर्ट में , क्यों CBI जांच की मांग की गई, खुलासा अगले पार्ट में…….।
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