वाराणसी डेस्क/ प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में पकड़ में आया ये मामला वाकई हैरान कर देने वाला हैं, क्योंकि जिलाधिकारी की।अच्छी छवि मीडिया के माध्यम से लगातार सामने आती रहती है, पर दूसरी तरफ उनके नाम से फर्जीवाड़ा बदस्तूर जारी है, ये हम नहीं कह रहे हमारे हाथ लगे का RTI के दस्तावेज और सूत्रों कह रहे हैं। फिर कैसे तहसील से नकली कागज़ बनाकर उसपर जिलाधिकारी की चिड़िया बिठाकर उड़ाया जा रहा हैं। क्योंकि अगर ये कागज़ वास्तव में बनाया गया होता जिलाधिकारी के आदेश पर तो इसके अंदर सरकारी दस्तावेजों में उपलब्ध साक्ष्य का जिक्र होता लेकिन ऐसा लगता है की खुद जिलाधिकारी के कर्मचारी चंद पैसों के लिए उनकी लुटिया डुबोने पर आमादा हैं। ये जमीन से जुड़ा बड़ा घोटाला हैं। जब प्रधानमंत्री के अपने गृह क्षेत्र में ये हाल है तो बाकी जिलों का भगवान मालिक है।
क्या घर पर बैठकर कागज़ बना कर राजस्व विभाग को चूना लगाना जायज़ है ?
2002 से 2005 तक बिना जमीन के एक कॉलेज खोल देना वाकई अली बाबा चालीस चोर वाली बात को सही साबित करता हैं। क्योंकि कॉलेज खोलने के लिए कुछ जरूरी NOC राज्य सरकार से मिलनी जरूरी होती है इसके अंतर्गत जमीन भी आती है। इसी जमीन की शिकायत DM को मिलने पर 2019 में जिलाधिकारी ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ को पत्र लिखकर पूछा था कि कैसे ये आपने चलाने का लाइसेंस दिया। DM के इस लेटर और जांच को तत्कालीन कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह और रजिस्ट्रार साहेब मौर्य ने दबा कर जिलाधिकारी को गलत जबाव और इस कॉलेज से पैसे लेकर फ़र्ज़ी कागज़ दिये।
इसी बात की शिकायत साल भर पहले बोधिसत्व फाउंडेशन के द्वारा केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री कार्यालय, राज्य सरकार, मुख्यमंत्री कार्यालय, विश्विद्यालय प्रशासन, जिलाधिकारी, और स्थानीय पुलिस प्रशासन को मेल और फ़ोन के माध्यम से दी गई थी।
ये मामला वाकई फिल्मी हैं, इसमें पहली पटकथा लिखी गई 2008 में , इस कॉलेज के पास जमीन ही नहीं थीं, लेकिन 2008 में खतौनी बनाई गई। इस खतौनी में फ़र्ज़ी CLU आदेश अलग से डाला गया जो सरकारी दस्तावेजों में उपलब्ध ही नहीं हैं। लेकिन इस फ़र्ज़ी आदेश को जो गैरकानूनी तरीके से इस खतौनी में अलग से जोड़ा गया इनपर तहसीलदार की सरकारी मुहर के साथ कंप्यूटर प्रभारी की भी मुहर कैसे लग गई ये बड़ा सवाल हैं!
इस मामलें से संबंधित ये भी पढ़ें-
या तो इस धोखाधड़ी में तहसीलदार की भी मिलीभगत थी, या ये कॉलेज के प्रबंधक के द्वारा किया गया गैरकानूनी तरीके से किया गया काम हैं ये जांच का विषय हैं।
खुद जिलाधिकारी स्वीकार कर चुके हैं की ये कॉलेज बिना जमीन के चल रहा था, इसके संबंध में उन्होंने पत्र लिखकर विश्विद्यालय के पास भी जबाव जानने के लिए भेजा हमारे पास वो चिट्ठी की कॉपी उपलब्ध है। हमारी जांच में भी ये पाया गया कि ये फ़र्ज़ी खतौनी है, ये फ़र्ज़ी इसलिए है क्योंकि इसमें कुछ पन्ने अलग से जोड़े गए जो सरकारी राजस्व की फाइलों में कभी थे नहीं। ये केवल व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के लिए तहसील से जारी किया गया है, किसके कहने से तहसील से सरकार के नियमों के विपरीत ऐसे गलत दस्तावेज बने ये जांच का विषय हैं !
वर्तमान में भी ये जमीन मुकदमे के विवाद में फसी हुई हैं, क्योंकि 2005 में महादेव का नाम चढ़ाया गया, लेकिन 2006 में जमीन के वास्तविक मालिकों को कोर्ट के जरिये इन जमीनों पर व्यक्तिगत लोगों का नाम चढ़ाने का आदेश पारित हुआ। जो सरकारी रिकार्ड्स में अंकित है , 2006 के बाद चढ़ाये गये नामों में कही भी इस महादेव महाविधालय का नाम इन जमीनों पर नहीं हैं। इससे साफ होता है कि ये जमीन कब्ज़े की नीयत से सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ और राजस्व की चोरी की नियत से फ़र्ज़ी CLU आदेश इस खतौनी में अलग से डाला गया।
ये सरकार राज्य सरकार के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला हैं-
इस फ़र्ज़ी खतौनी CLU आदेश जो 2008 में बनी के आधार पर दिल्ली से बीएड की मान्यता शिक्षा मंत्रालय से ली गई। फ़र्ज़ी खतौनी की प्रामाणिक कॉपी हमारे पास उपलब्ध है जो भारत सरकार ने उपलब्ध करवाया हैं। अब संस्था की शिकायत के बाद मामला सही पाये जाने के बाद NCTE ने विवाद के निपटारे तक इस कॉलेज को बीएड के एडमिशन लेने पर रोक लगाते हुए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ को भी पत्र जारी करके उचित कारवाई का निर्देश दिया हैं।
NCTE की कारवाई भी देखें-
आखिर इसे क्यों फर्ज़ीवाड़े का नाम दिया जा रहा है-
क्यों हम कह रहे हैं ये कागज़ फर्जीवाड़ा कर के बनाई गई है, क्योंकि जिस जमीन का उल्लेख इस फ़र्ज़ी खतौनी में किया गया है, वो जमीन हमें जांच में विवादित मिली, इसके मालिकान को लेकिन न्यायालय में मामला लंबित हैं। अब पेंच यही है एक जमीन के दो मालिक कैसे हो सकते है। ये है धोखाधड़ी और भू माफियाओं का बुना जाल है। जिसे तहसील से संरक्षण मिला हुआ हैं। तो कोई भी किसी की जमीन कब्ज़ा कर ले !
क्यों हम कह रहे है DM के नाक के नीचे खेल-
अब देखिए कैसे DM के नाम पर खेल हो रहा है जिसमें राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाते हुये, नकली कागज़ और उगाही का खेल चल रहा हैं, 2019 में जिलाधिकारी ने खुद पाया कि इस कॉलेज की मिली शिकायत सही है , ये उनके पत्र से साबित होता है।
अब 3 जून को जिलाधिकारी के नाम से एक पत्र बनाया गया जिसमें सिर्फ संबंधित कॉलेज के तरफ से एकतरफा जबाव तैयार करके पत्र दिल्ली भेजा गया, आखिर किसके इशारे पर तहसीलदार और कानूनगों गलत कागज़ बनाकर जिलाधिकारी की साख को बट्टा लगा रहे हैं।
बार-बार शिकायत मिलने पर क्यों उचित कारवाई नहीं होती इस अजय सिंह के खिलाफ सामान्य तौर पर सरकारी कामकाज में बाधा उत्पन्न करने नकली कागज़ बनाने पर 420 का केस और सीधा जेल भेजने का प्रावधान हैं। आरोपी का एक भाई पहले ही बलिया में नकली कागज़ों पर सरकार को चूना लगा कर नौकरी करता पाया गया था, इस मामलें में उसके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी है, सरकार ने उस फर्ज़ीवाड़े में लागत समय की राशि की वसूली भी की है।
सवाल जिलाधिकारी से है, की उनकी नाक के नीचे ऐसे फर्ज़ीवाड़े को संरक्षण कौन दे रहा है, पिछले साथ राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी के PR के लिए उन्होंने ऑफिसियल ट्विटर एकाउंट का इस्तेमाल किया , पर इस तरह से फर्ज़ीवाड़े पर क्या किया, कौशल राज बातये क्या उन्होंने इस महाविद्यालय में जाकर कमरे और भवन का जायजा लिया ! बिना गये उनके नाम से कैसे जाली चिट्ठी बन गई। 3 जून के चिट्ठी में लिखा गया है, साथ ही कोर्ट में पड़े लंबित मामलों को किसके कहने पर जिलाधिकारी ने निराधार और बेबुनियाद बता डाला। हम जानना चाहते है कि आखिर ये चिट्टी उनके कार्यालय से कैसे जारी हुई!!
संस्था से संपर्क करने पर हमें पता चला कि उनके द्वारा इस मामलें की जानकारी कई बार ऑफिसियल मेल के द्वारा DM सहित पुलिस के अधिकारियों को भेजी गई, लेकिन संस्था की जानकारी आरोपी अजय सिंह को जिलाधिकारी के कार्यालय या पुलिस विभाग के अलावा तहसील से दे दी, इसके बाद संस्था की पदाधिकारी को धमकी दी गई, इसकी भी शिकायत तत्तकालीन IG मीना के कार्यालय में दर्ज है। देखना ये है कि प्रशासन अपनी साख में बट्टा लगाने के एवज में, सरकारी दस्तावेजों के साथ हुई इस छेड़छाड़ के आरोप में क्या कारवाई करती हैं। साथ ही स्थानीय तहसील और लेखपालों पर क्या शिकंजा कसा जाता है, जो इस घटना में शामिल है ताकि प्रशासन की गिरती साख को बचाया जा सके। अभी कुछ दिन पहले ऐसा ही एक मामल सामने आने पर लेखपाल और कानूनगों को 420 और अन्य धाराओं में जेल भेजा गया है आरोपी के साथ।
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के निर्देश पर 2017 में सभी तालुकाओ के अंश निर्धारित का काम अब तक पूरा हो जाना चाहिए था। पर इस फर्ज़ीवाड़े के कारण इस क्षेत्र का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ। जिसका फायदा आरोपी उठा रहा है। खुद जिलाधिकारी सख्त है भू माफ़ियाओं के खिलाफ फिर ये मामला तो उनके खुद की प्रतिष्ठा पर एक भद्दा दाग है। कैसे उनके नाम पर जाली चिट्ठी बन जाती है।