उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में बोलते हुए न्यायिक ‘अधिकारों के अतिक्रमण’ की आलोचना दोहराई और दोहराया कि “संसद सर्वोच्च है।”
न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका पर चल रही बहस के बीच उन्होंने कहा, “संविधान का सार, उसका महत्व, उसका अमृत – संविधान की प्रस्तावना में समाहित है। और यह क्या कहता है? “हम, भारत के लोग।” सर्वोच्च शक्ति उनके पास है। भारत के लोगों से ऊपर कोई नहीं है। और हम, भारत के लोग, संविधान के तहत, अपने जन प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी आकांक्षाओं, अपनी इच्छाओं, अपनी इच्छा को प्रतिबिंबित करने का विकल्प चुनते हैं। चुनावों के माध्यम से प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराते हैं। 1977 में ‘आपातकाल’ लगाने वाले एक प्रधानमंत्री को जवाबदेह ठहराया गया था और इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। संविधान लोगों के लिए है और इसकी सुरक्षा का भंडार निर्वाचित प्रतिनिधियों का है।”
उपराष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय के दो विरोधाभासी बयानों का भी हवाला दिया।
उन्होंने कहा, “एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है (गोरकानाथ मामला) और दूसरे मामले में उसने कहा कि यह संविधान का हिस्सा है (केशवानंद भारती मामला)।”
उन्होंने लोकतंत्र में बातचीत के महत्व पर जोर दिया और कहा कि लोकतंत्र को बाधित नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, “हमारी चुप्पी बहुत ख़तरनाक हो सकती है। हमारी विरासत को सुरक्षित रखने के लिए विचारशील दिमाग़ों को योगदान देना होगा। हम खस्ताहाल संस्थाओं या कलंकित व्यक्तियों को अनुमति नहीं दे सकते। संवैधानिक प्राधिकारी का हर शब्द संविधान द्वारा निर्देशित होता है।”
उन्होंने कहा, “हमें अपनी भारतीयता पर गर्व होना चाहिए। हमारा लोकतंत्र व्यवधान को कैसे बर्दाश्त कर सकता है। सार्वजनिक संपत्ति को जलाया जाना। सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित किया जाना। हमें इन ताकतों को बेअसर करना होगा। सबसे पहले परामर्श के जरिए और फिर चाहे इसके लिए कड़वी गोली ही क्यों न लेनी पड़े।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेताओं और उपराष्ट्रपति ने हाल ही में शीर्ष अदालत पर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने का आरोप लगाया था। धनखड़ की ताजा आलोचना शीर्ष अदालत द्वारा हिंसा प्रभावित पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए भाजपा नेताओं के एक वर्ग द्वारा न्यायिक अतिक्रमण के आरोपों पर एक टिप्पणी के ठीक एक दिन बाद आई है।
बंगाल में राष्ट्रपति शासन और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा, “आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करें? वैसे भी, हम कार्यपालिका (क्षेत्र) में अतिक्रमण करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं।”
इससे पहले गुरुवार को उपराष्ट्रपति ने राज्य द्वारा पारित विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए समयसीमा निर्धारित करने पर सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना की थी।
न्यायपालिका के लिए जवाबदेही का आह्वान करते हुए धनखड़ ने कहा था, “इसलिए, हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।”
उन्होंने कहा कि यह ‘‘असंवैधानिक’’ है।