सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास सरकार की सहमति के बिना दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में सदस्यों (मनोनीत पार्षदों) को नियुक्त करने की शक्ति है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि शक्ति दिल्ली नगर निगम अधिनियम से आती है, इसलिए उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह मानने की जरूरत नहीं है। चूंकि यह एक वैधानिक शक्ति है न कि कार्यकारी, इसलिए उपराज्यपाल को वैधानिक जनादेश का पालन करना होगा, न कि दिल्ली सरकार की सलाह के अनुसार काम करना होगा।
अदालत ने यह भी कहा कि एल्डरमैन की नियुक्ति के लिए दिल्ली सरकार से सलाह लेने की आवश्यकता नही है।
एमसीडी के 10 एल्डरमैन को एलजी द्वारा नॉमिनेट करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा था कि क्या स्थानीय निकाय में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले लोगों का नामांकन केंद्र सरकार के लिए इतनी बड़ी चिंता है?
कोर्ट ने यह भी सवाल किया था कि क्या एलजी दिल्ली की चुनी हुई सरकार के सलाह के बगैर एल्डरमैन को नॉमिनेट कर सकती है। सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि एलजी के एमसीडी के सदस्य को नॉमिनेट करने का अधिकार लोकतांत्रिक तौर पर चुनी हुई एमसीडी को अस्थिर कर सकता है।
कोर्ट ने कहा था ये मामला निगम एक्ट के तहत आता है, इसमें अनुच्छेद 239 AA के तहत कैबिनेट की सलाह की जरूरत नही। इस मामले में संविधान का अनुच्छेद 243 लागू होता है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि नॉमिनेट मेंबर, एमसीडी की वार्ड कमिटी बनाने में वोटिंग करते है, जहां बीजेपी कमजोर है।
सिंघवी ने कहा था कि पिछले 30 साल से एल्डरमैन को दिल्ली सरकार नियुक्त करती रही है। एलजी सिर्फ सलाहकार की भूमिका में थे। पहली बार एलजी ने एल्डरमैन नियुक्त किया है जो नियम के खिलाफ है। यह पहला ऐसा मौका है जब सीधे एलजी ने नॉमिनेट किया है।
सिंघवी ने कहा था कि पहले भी कई बार दिल्ली और केंद्र में अलग सरकार रही है, लेकिन तब भी एलजी ने दिल्ली सरकार की सलाह को माना था। वही एएसजी संजय जैन ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकार के काम अलग-अलग है, एडमिनिस्ट्रेटर को कुछ अधिकार विधान से मिले हुए है।
मालूम हो कि सीजेआई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने 17 मई 2023 को इस मामले के संबंध में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार की उस याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें उन अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसके माध्यम से उपराज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बजाय अपनी पहल पर एमसीडी में 10 सदस्यों को नामित किया था।
दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को दरकिनार नहीं कर सकते और एमसीडी में अपनी मर्जी से नियुक्तियां नहीं कर सकते।