कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश के अनुसार, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने हाल ही में सरकारी कर्मचारियों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसकी गतिविधियों से जुड़ने पर दशकों पुराना प्रतिबंध हटा दिया है। एक्स पर एक पोस्ट में, रमेश ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा 9 जुलाई को जारी किए गए कथित आदेश को साझा किया, जिसमें कहा गया है कि आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर 1966 से लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है।
1948 में एक सदस्य नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के बाद इसकी गतिविधियों पर चिंताओं के कारण आरएसएस को शुरू में एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था।
जयराम रमेश ने कहा, “फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया। इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया। 1966 में RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था – और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है।”
आदेश में कहा गया है, “उपर्युक्त निर्देशों की समीक्षा की गई और यह निर्णय लिया गया है कि 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के संबंधित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख हटा दिया जाए।”
रमेश ने प्रतिबंध हटाने की आलोचना की और इस कदम के समय पर सवाल उठाते हुए कहा, “4 जून 2024 के बाद, स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और RSS के बीच संबंधों में कड़वाहट आई है। 9 जुलाई 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था। मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है।”
बीजेपी के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने भी आदेश का स्क्रीनशॉट साझा किया और इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, “58 साल पहले 1966 में जारी असंवैधानिक आदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था। मोदी सरकार द्वारा अब इसे वापस ले लिया गया है।”
दरअसल, 7 नवंबर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। यह आदेश दिल्ली में हुए गौ-रक्षा आंदोलन के दौरान हिंसा के बाद आया था, जिसमें कई संत और गौ-भक्त मारे गए थे। इस हिंसा के बाद सरकार ने निर्णय लिया कि सरकारी कर्मचारी RSS के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो सकते हैं। इस आदेश का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को किसी भी सांप्रदायिक या राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोकना था, जिससे सरकारी तंत्र की निष्पक्षता और समर्पण बनाए रखा जा सके। तत्कालीन सरकार का कहना था कि यह निर्णय इसलिए लिया गया ताकि सरकारी कर्मचारी किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक संगठन की गतिविधियों से दूर रहें और सरकारी प्रशासन में निष्पक्षता और स्वच्छता बनी रहे।
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘‘सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे और राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय है ताकि सरकारी नीतियों व इनके (भाजपा सरकार) अहंकारी रवैयों आदि को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो। सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियां राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं।”
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा, “मुझे ये RSS-BJP की जुगल बंदी लगती है। कुछ दिन पहले जो मोहन भागवत ने टिप्पणी कि उसको लेकर उनकी नाराजगी को खत्म करने के लिए आज भाजपा सरकार इस प्रकार का निर्णय ले रही है। आज UPSC , NTA की दुर्दशा इसलिए है क्योंकि RSS के लोग सरकार के हर वर्ग में घुस रहे हैं।”
वहीं शिवसेना(UBT) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “पहले ED, CBI, IT सब खाकी का काम कर रहे थे खाकी शॉर्ट्स पहन कर काम कर रहे थे। अब खुले आम बोल पाएंगे। कितनी शर्मनाक बात है कि आज हमारे नौकरशाह जिनको भारत माता के लिए काम करना चाहिए और सरकार को इसे बढ़ावा देना चाहिए अब वो अपने विचारधारा को आगे रख काम करेंगे ये शर्मनाक है।”
My brother suggested I might like this blog He was totally right This post actually made my day You can not imagine simply how much time I had spent for this info Thanks