सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अंतरिम आदेश जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कांवर यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को अपना नाम प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था। कोर्ट ने कांवड़ियां यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम लिखने के लिए कहने वाले उनके निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों राज्य सरकारों से जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई 26 जुलाई को तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खाद्य विक्रेताओं को मालिकों और कर्मचारियों के नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
https://x.com/ANI/status/1815291349526315322
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को चुनौती देने वाले एक गैर सरकारी संगठन, एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा दायर मामले की सुनवाई की।
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मैं प्रेस रिलीज से पढ़ रहा हूं। इसमें लिखा हुआ है कि अतीत में कावंड़ यात्रियों को गलत चीजें खिला दी गई, इसलिए विक्रेता का नाम लिखना अनिवार्य किया जा रहा है। आप शाकाहारी, शुद्ध शाकाहारी, जैन आहार लिख सकते है, लेकिन विक्रेता का नाम लिखना क्यों जरूरी है?
जज ने कहा कि इसमें तो स्वैच्छिक लिखा है। इसपर दूसरी याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा यह स्वैच्छिक नही है। वकील सी यू सिंह ने कहा पुलिस को ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हरिद्वार पुलिस का आदेश देखिये, कठोर कार्रवाई की बात कही गई है। यह हजारो किलोमीटर का रास्ता है। लोगों की आजीविका को प्रभावित की जा रही है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि य़ह विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत को तरह है। वही महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा की इसमें विक्रेताओं को बड़े बोर्ड की जरूरत है। जिसमें सारी जानकारी साझा करनी होगी। अगर शुद्ध शाकाहारी होता तो बात समझ आती।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने इस बारे में कोई औपचारिक आदेश पास किया है? सिंघवी ने कहा सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इसे लागू रही है। पुलिस कमिश्नर ऐसे निर्देश जारी कर रहे है। सिंघवी ने कहा कि कावड़ यात्रा तो सदियों से चला आ रही है। पहले इस तरफ की बात नही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन आयाम हैं सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता है और तीनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
सिंघवी ने कहा पहले मेरठ पुलिस फिर मुज्जफरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कांवरिए भी यह उम्मीद करते हैं कि खाना किसी खास वर्ग के मालिक द्वारा पकाया जाए? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कावड़ियो क्या य़ह सोचते है कि उन्हें फूड किसी चुनिंदा दुकानदार से मिले? सिंघवी ने कहा कि कावड़िया पहली बार यात्रा तो नही कर रहे है, पहले से करते आए है।
जस्टिस SVN भट्टी ने व्यक्तिगत अनुभव का हवाला दिया, कहा- मैं एक मुस्लिम होटल में गया था। इसमें सेफ्टी, स्टैंडर्ड और हाईजीन के मानक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के थे। वहां साफ सफाई थी इसलिए मैं वहां गया था। ये पूरी तरह से आपकी पसंद का मामला है।
सिंघवी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम में भी केवल दो शर्तें हैं। जिसमें केवल कैलोरी और शाकाहारी या मांसाहारी भोजन को प्रदर्शित करना होगा। जस्टिस भट्टी ने कहा कि लाइसेंस भी तो प्रदर्शित करना होगा।
जस्टिस SVN भट्टी ने कहा कि मेरा भी अपना अनुभव है। केरल में एक शाकाहारी होटल था जो हिंदू का था, दूसरा मुस्लिम का था। मैं मुस्लिम वाले शाकाहारी होटल में जाता था। क्योंकि उसका मालिक दुबई से आया था और वह साफ सफाई के मामले में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड फॉलो करता था।
यह याचिका एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक आकर पटेल की ओर से दायर की गई है। महुआ मोइत्रा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के फैसले को चुनौती दी है।
मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि तीर्थ यात्रियों के खान-पान संबंधी प्राथमिकताओं का सम्मान करने और कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लक्ष्य के साथ जारी किया गया आदेश पूरी तरह से गलत है, मनमाना है। सरकार का ये आदेश संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। राज्य में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है।
महुआ मोइत्रा के अलावा प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक आकार पटेल ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है।
अपूर्वानंद और आकार पटेल ने अपनी याचिका में कहा है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य द्वारा जारी आदेश अनुच्छेद 14, 15 और 17 के तहत अधिकारों को प्रभावित करता है। यह मुस्लिम लोगों के अधिकारियों को भी प्रभावित करता है, जो अनुच्छेद 19(1)G का उल्लंघन है। इस आदेश से उनकी रोजी रोटी पर प्रभाव पड़ेगा।
इसके साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि यह आदेश अस्पृश्यता की प्रथा का समर्थन करता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत स्पष्ट रूप से किसी भी रूप में वर्जित है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 19 जुलाई को फैसला किया था कि जितने भी दुकानदार है खासकर खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ बेचने वाले दुकानदार है उन्हें कावंड़ यात्रा के दौरान कावंड़ रुट पर दुकानों में दुकान के मालिकों के नाम डिस्प्ले करना होगा। यूपी सरकार ने कहा है कि यह फैसला कानून व व्यवस्था के हित मे लिया गया है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर प्रशासन ने एक आदेश पारित किया था, जिसके अनुसार कांवड़ यात्रा के रूट पर पड़ने वाली सभी दुकानों और होटलों के लिए नेमप्लेट लगाना और दुकानदारों का नाम बताना जरूरी था। इसे लेकर विपक्ष ने खूब विरोध किया था। विपक्ष की आवाज को दरकिनार करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने यह व्यवस्था पूरे प्रदेश में लागू कर दी थी।
इसके बाद उत्तराखंड में भी ऐसे ही नियम लागू किए गए। हरिद्वार एसपी ने जानकारी देते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा के रूट पर स्थित सभी दुकानों को मालिक का नाम और मोबाइल नंबर लिखना अनिवार्य था।
इसी तरह की व्यवस्था मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी लागू कर दी गई। उज्जैन मेयर ने बताया कि इन नियमों का सख्ती से पालन कराया जाएगा।मेयर का कहना है कि इस नियम का उद्देश्य मुस्लिमों को टारगेट करना नही है।
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भोजनालयों पर आदेश “सांप्रदायिक और विभाजनकारी” है और इसका उद्देश्य मुसलमानों और अनुसूचित जातियों को अपनी पहचान उजागर करने के लिए मजबूर करके उन्हें निशाना बनाना है। हालांकि, बीजेपी का कहना है कि यह कदम कानून-व्यवस्था के मुद्दों और तीर्थयात्रियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
रविवार को सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस, डीएमके, एसपी और आप समेत कई विपक्षी दलों ने आदेश की आलोचना की और स्पष्ट किया कि वे इस मुद्दे को दोनों सदनों में उठाएंगे। उन्होंने मांग की कि सरकार इस पर संसद में चर्चा की इजाजत दे।
भाजपा के सहयोगी जदयू और रालोद भी विवादास्पद आदेश को वापस लेने की मांग में शामिल हो गए हैं।