27 मार्च 2023 के अखबारों में छपी खबर के अनुसार – सरकार ने कहा है कि उसके पास भारतीयों के स्वामित्व वाली विदेशी शेल कंपनियों की कोई जानकारी नहीं है। यह खबर वैसे नहीं छपी है जैसे छपनी चाहिए थी। आइए, बताता हूं क्यों और कैसे यह खबर महत्वपूर्ण है?
इस संबंध में द टेलीग्राफ में छपी खबर के अनुसार, यह स्वीकारोक्ति राहुल गांधी द्वारा अदानी समूह में कथित शेल कंपनियों के माध्यम से भारी निवेश किए जाने से संबंधित सवाल किए जाने से सिर्फ चार दिन पहले की है। राहुल गांधी ने पूछा है कि यह पैसा किसका है और यह भी कहा है यह अदानी का नहीं हो सकता है। वे ऐसा पैसा नहीं कमाते हैं।
माकपा के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास के एक सवाल का जवाब देते हुए, सरकार ने 21 मार्च को एक लिखित उत्तर में कहा, “भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली अपतटीय शेल कंपनियों के बारे में डेटा/विवरण उपलब्ध नहीं है।” यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार ने ऐसी अपतटीय शेल कंपनियों का विवरण एकत्र करने के लिए काम किया है, जिसका “अंतिम लाभकारी स्वामित्व” भारतीय नागरिकों के पास था? सरकार ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई का “प्रश्न नहीं उठता” क्योंकि “अपतटीय शेल कंपनी वित्त मंत्रालय द्वारा प्रशासित अधिनियमों में परिभाषित नहीं है।”
25 मार्च को एक प्रेस कांफ्रेंस में, राहुल गांधी ने कहा था कि “किसी ने शेल कंपनियों के माध्यम से अदानी समूह में 20,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है।” उन्होंने जानना चाहा कि सरकार “यह क्यों नहीं पूछ रही है कि किसका पैसा आ रहा है।” राहुल ने कहा, ‘मैं यह सवाल पूछता रहूंगा।’ उन्होंने इस मुद्दे के राजनीतिक महत्व पर जोर देते हुए आरोप लगाया कि उनकी लोकसभा सदस्यता की अयोग्यता का कारण उनके द्वारा व्यवसायी गौतम अदानी के बारे में सवाल पूछना है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “डरे हुए” हैं।
अब एक सरकारी दावा देखिए, महुआ मोइत्रा ने 27 जुलाई 2021 की एक प्रेस विज्ञप्ति ट्वीट की है। यह अंग्रेजी में है (अनुवाद मेरा) इसके अनुसार, सरकार ने 2018-2021 के बीच 2,38,223 कंपनियों की शेल कंपनियों के रूप में पहचान की। इसमें कहा गया था, कंपनी अधिनियम में “शेल कंपनी” शब्द की कोई परिभाषा नहीं है और यह सामान्य रूप से सक्रिय व्यवसाय संचालन या महत्वपूर्ण संपत्ति के बिना एक कंपनी को संदर्भित करता है, जो कुछ मामलों में अवैध उद्देश्य जैसे कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, अस्पष्ट स्वामित्व, बेनामी संपत्ति आदि के लिए उपयोग किया जाता है। यह बात केंद्रीय कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री श्री राव इंद्रजीत सिंह ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कही थी।
मंत्री ने आगे कहा कि “शेल कंपनियों” के मुद्दे को देखने के लिए सरकार द्वारा गठित विशेष कार्य बल ने अन्य बातों के साथ-साथ शेल कंपनियों की पहचान के लिए अलर्ट के रूप में कुछ रेड फ्लैग संकेतकों के उपयोग की सिफारिश की है। मतलब शेल कंपनी की परिभाषा तो नहीं है लेकिन कार्य बल बना दिया गया। मंत्री ने कहा कि सरकार ने पिछले तीन वर्षों के दौरान शेल कंपनियों की पहचान करने और उन्हें बंद करने के लिए एक विशेष अभियान चलाया है। जाहिर है अधिकारी मनमानी करेंगे और वसूली की संभावना भी है। इसका क्या हुआ इस बारे में अभी जानकारी नहीं है।
मंत्री ने धारा 248 के तहत बंद की गई कंपनियों की कुल संख्या की सूची राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के अनुसार दी थी जो इस प्रकार है, अहमदाबाद – 9243, अंडमान – 41, बैंगलोर – 11185, चंडीगढ़ – 4908, चेन्नई – 11217, छत्तीसगढ – 947, कोयंबटूर – 2992, कटक – 3731, दिल्ली – 45595, एर्नाकुलम – 9189, गोवा – 597, ग्वालियर – 4920, हिमाचल प्रदेश – 858, हैदराबाद – 20488, जयपुर – 9222, जम्मू – 393, झारखंड – 1848, कानपुर – 15803, कोलकाता – 15022, मुंबई – 52869, पटना – 4683, पांडिचेरी – 191, पुणे – 5552, शिलांग – 1256, उत्तराखंड – 555, विजयवाड़ा – 4918, कुल – 238223।
सरकार ने खुद ही कहा है (था) कि शेल कंपनियों की परिभाषा तय नहीं है फिर भी इतनी कंपनियां बंद कर दीं। दूसरी ओर किसी भारतीय ने विदेश में शेल कंपनी खोली हो (जो आशंकाएं शेल कंपनी बनाती हैं उसके साथ) तो सरकार को पता नहीं है, डेटा नहीं है और उससे संबंधित किसी कार्रवाई का सवाल नहीं उठता है। और चर्चा है कि ऐसी ही किसी कंपनी ने अदानी की कंपनी में 20,000 करोड़ रुपए का निवेश कर दिया। मुझे इन कंपनियों को बंद करने का कारण तब भी नहीं समझ में आता था अब भी नहीं आ रहा है पर मुद्दा वह नहीं है। मुद्दा यह है कि इन्हें बंद करने से सरकार या देश को क्या फायदा मिला। अगर इन कंपनियों को इसलिए बंद कर दिया गया कि ये कुछ गलत कर सकती थीं तो क्या यह वैसे ही नहीं है कि लोगों को घर में बंद कर दिया जाए, इंटरनेट न चले और कंप्यूटर छीन लिए जाएं, उन्हें पढ़ने लिखने, ज्ञान, साधनों, सुविधाओं से वंचित कर दिया जाए ताकि वे कुछ अपराध न करें।
कायदे से, सरकार को संदेह था तो इनपर नजर रखा जा सकता था। इसके लिए कई एजेंसियां हैं, एक नई भी बनाई जा सकती थी और इन्हें काम करने दिया जाता, अपराध भी। उसे पकड़ा जाता। कम से कम ठीक काम तो कर पाते। सच यह है कि ईज ऑफ बिजनेस की बात करने वाली सरकार ने चालू खाता खोलना और रखना मुश्किल कर दिया है। इसका नुकसान सरकार और देश दोनों को है जबकि हत्या बलात्कार को छोड़कर अपराध पर नजर और नियंत्रण रहे तो संभवतः सबका फायदा है और यही जीवन है। अर्थव्यवस्था और जीडीपी दोनों इसी से बढ़ते हैं। अभी जब ठग, लुटेरे गिरोहों पर कोई रोक नहीं है तब इनपर रोक लगा दी गई जो डिजिटल लेन-देन करते, हजारों का खेल करते और इनकी चोरी पकड़ना अपेक्षाकृत आसान था। हत्या बलात्कार जैसे अपराध की आशंका कम थी। लोगों को रोजगार मिलता। खास बात यह भी कि ये सब ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के दावे के बावजूद किया गया।
ये दो लाख 28 हजार शेल कंपनियां चल रही होंती तो इनके चालू खातों में न्यूनतम 5,000 रुपये की राशि रखनी पड़ती और नहीं रखने पर बैंक इनसे प्रति क्वार्टर सर्विस चार्ज लेते उसपर जीएसटी भी आता। तो क्या इसे दिल्ली की शराब नीति की तरह राजस्व कम करने वाली कार्रवाई मान लूं? ये सभी किराए के ऑफिस से चल रहे होंगे। घर से होते तो तो क्या शेल और क्या संदिग्ध लेकिन सरकार उन्हें भी संदिग्ध मानती है। मेरा चालू खाता बंद कर दिया था क्योंकि मैं घर से काम करता हूं और बिना जरूरत एक सरकारी पंजीकरण मुफ्त वाला कराया तो चल रहा है। हालांकि दो साल हो गए हैं और बैंक कुछ नया मांग चुका है। टर्नओवर कम है, खाते में पैसे नहीं होते हैं तो शुल्क देता हूं। खाता चालू है फिर भी। दूसरी ओर, सरकार ने इन सभी कथित सेल कंपनियों को इससे मुक्त कर दिया। मैं बात कर रहा था किराए के दफ्तर की। अगर 5,000 महीना औसत किराया भी मान लीजिये (इतना तो जीएसटी नंबर के साथ बोर्ड टांगने का ही लेगा, बोर्ड का खर्चा अलग) तो इतने जीरो लगेंगे कि मैं संबित पात्रा साबित हो सकता हूं इसलिए उसमें नहीं पड़ूंगा। वैसे भी गौरव बल्लभ हमारे ही क्षेत्र से चुनाव हारे हुए हैं।
अब सात फरवरी 2023 की एक खबर के अनुसार पिछले 3 साल में देश के सरकारी रिकॉर्ड में 1.27 लाख कंपनियों को बंद किया जा चुका है। इन सभी कंपनियों ने 2 साल से एक अहम जानकारी जमा नहीं कराई थी। कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने सदन को बताया कि सरकार ने कंपनी कानून की धारा 248(1) के तहत एक विशेष अभियान चलाया। ऐसी कंपनियों की पहचान की गई जिन्होंने पिछले दो लगातार वित्त वर्ष में अपने वार्षिक रिर्टन और फाइनेंशियल स्टेटमेंट जारी नहीं किए। इन सभी बंद पड़ी कंपनियों को रजिस्टर ऑफ कंपनीज के रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। अगर कंपनी चल ही नहीं रही थीं तो रिकार्ड से हटाने का उन्हें नुकसान क्या हुआ या सरकार को फायदा क्या हुआ – खबर छप गई। प्रचार नहीं है तो क्या है? वह भी बिना किसी सवाल के। कोई कागजी कंपनी (जी हां, कागजी की ही बात कर रहा हूं) अगर रिटर्न न फाइल करे तो जुर्माने का प्रावधान है और नहीं कराने से सरकार को दिक्कत क्या है? इसके अलावा कोरोना के बाद के इस समय में इतनी जल्दी क्यों थी और यह प्रचार किसलिए था – ना किसी ने पूछा ना बताया गया। और राहुल गांधी ने पूछा कि इतनी सख्ती के बाद अदानी की कंपनी में 20,000 करोड़ किसके हैं तो उनकी संसद की सदस्यता चली गई। सरकार कहती है उनकी करनी से गई, उसकी कोई भूमिका नहीं है तो मैं मान लेता हूं पर यह व्यवस्था तो सरकार की ही है। इसमें सब चंगा सी? कैसे मान लूं और जिन्हें सब ठीक लग रहा है वो देशद्रोही नहीं हैं?