बिहार में बीते दिनों राष्ट्रीय जनता दल के नेता और शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर द्वारा यह टिप्पणी करने के बाद विवाद छिड़ गया कि ‘रामचरितमानस’ – तुलसीदास द्वारा लिखित रामायण का एक लोकप्रिय संस्करण – के कुछ छंदों में जाति के स्वर थे जो अपमानजनक थे। मंत्री महोदय ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने बिहार विधानसभा में सभापति देवेश चंद्र ठाकुर के बार-बार हस्तक्षेप के बावजूद, अपने बयानों का बचाव करने के लिए रामचरितमानस पर लगातार टिप्पणियां की थी।
जीतनराम मांझी जो वर्तमान में राज्य में ‘महागठबंधन’ सरकार का हिस्सा हैं, उन्होंने कहा, “… जब भी राम को किसी परेशानी का सामना करना पड़ा, तो उन्हें अलौकिक शक्तियां प्र्राप्त थी, लेकिन रावण के मामले में ऐसा नहीं था…।” यह पूछे जाने पर कि मांझी ने किस आधार पर यह टिप्पणी की कि रावण का कद राम से ऊंचा है, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख ने कहा, “यह व्यक्तिगत व्याख्या के अधीन है।” उन्होंने कहा, “हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि ऐसा क्यों है कि वाल्मीकि, जिन्हें सबसे पुरानी रामायण लिखने का श्रेय दिया जाता है, तुलसीदास की तरह कभी भी पूजनीय नहीं हैं।”
मांझी ने कहा कि सामाजिक भेदभाव की निंदा करने वाले विवादास्पद हिस्सों को किताब से निकाल दिया जाना चाहिए। मांझी ने अपनी ‘काल्पनिक-आकृति’ वाली टिप्पणी का बचाव करते हुए कहा, ‘मैंने हमेशा माना है कि भगवान राम एक काल्पनिक व्यक्ति हैं, ऐतिहासिक नहीं। मैं ऐसा कहने वाला पहला व्यक्ति नहीं हूं। इसी तरह के विचार राहुल सांकृत्यायन और लोकमान्य तिलक जैसे विद्वानों ने व्यक्त किए हैं। लेकिन चूँकि वे ब्राह्मण थे, इसलिए किसी ने आपत्ति नहीं की। जब मैं कहता हूं, तो लोगों को समस्या होती है।”
जीतन राम मांझी पहले भी भगवान राम और रामायण को लेकर बयान देते रहे हैं। उन्होंने रामायण की कुछ पंक्तियों को गलत बताया था। उन्होंने कहा था कि वे रामायण को मानते हैं, रामायण से ही रामचरितमानस का सृजन हुआ है और रामायण को वाल्मीकि ने लिखा है फिर भी वाल्मीकि की जयंती क्यों नहीं मनाई जाती है। उनको क्यों नहीं पूजा जाता है। वहीं, ‘नारी नीर नीच कटी धावा, ढोल गवार शुद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी, पूज्य विप्र शील गुण हीना’…. रामायण के चौपाइयों पर भी जीतन राम मांझी पहले सवाल उठा चुके हैं।
बता दें कि इससे पहले समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताया था। मौर्य ने कहा था कि लोग रामचरितमानस को नहीं पढ़ते हैं, सब बकवास है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने मांग की थी कि रामचरितमानस पर बैन लगा देना चाहिए।