सर्वोच्च न्यायलय ने हेट स्पीच और हेट क्राइम को लेकर सोमवार को बेहद ही शख्त टिप्पणी की। न्यायलय ने कहा कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक आधार पर हेट क्राइम के लिए कोई जगह नहीं है। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ हेट क्राइम से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि, किसी भी राज्य का ये संवैधानिक कर्तव्य है कि वो हर नागरिक की सुरक्षा करे। राज्य में काम कर रहे जिम्मेदार अधिकारीयों का ये दायित्व बनता है कि वे लोगों के मन में कानून के प्रति आदर भाव को बढ़ाएं। अगर ऐसा नहीं होता है तो हर आदमी कानून को हाथ में लेने लगेगा। अदालत ने तल्ख़ अंदाज में कहा कि अगर आप कानून के राज पर प्रहार करेंगे तो समाज पर उसका प्रतिकूल असर होगा और फिर इसका प्रभाव राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक देखने को मिलेगा।
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा, “जब नफरत की भावना से किए जाने वाले अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब एक ऐसा माहौल बनेगा, जो खतरनाक होगा । नफरती भाषण पर किसी भी तरह से कोई समझौता नहीं किया जा सकता । ”
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यूपी सरकार की तरफ से पेश हुए ASG के एम नटराज ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि हेट क्राइम का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इस पर बेंच ने कहा कि हमने हाल ही में देखा है कि किस तरह से राजस्थान में नृशंष हत्या की गई थी। यह सब खतरे की घंटी है। अगर इसको नजरअंदाज किया जाएगा तो यह एक समय में आपके ऊपर आएगा। अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक सबके लिए एक मानवाधिकार होता है। अदालत ये उम्मीद करती है कि अधिकारी उदाहरण पेश करेंगे और ऐसी घटना को गंभीरता से लेंगे।
जस्टिस जोसफ ने कहा, “आजकल, नफरती भाषण के इर्द-गिर्द आम सहमति बढ़ती जा रही है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के नाम पर हेट क्राइम करने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसे जड़ से खत्म करना होगा और यह सरकार का दायित्व है कि वह इस तरह के किसी अपराध से अपने नागरिकों की सुरक्षा करे।”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “यदि एक व्यक्ति पुलिस के पास आता है और कहता है कि मैं एक टोपी पहने हुए था तथा मेरी दाढ़ी खींची गई और धर्म के नाम पर मेरे साथ बदसलूकी की गई, तब भी शिकायत दर्ज नहीं की जाती है, तो ये गंभीर समस्या है।” जस्टिस जोसफ ने कहा कि प्रत्येक सरकारी अधिकारी की कार्रवाई कानून के अनुरूप होनी चाहिए। अन्यथा, हर कोई कानून को अपने हाथों में लेगा। पीठ ने कहा, “हम सिर्फ अपनी व्यथा बता रहे हैं।”
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट एक मुस्लिम व्यक्ति की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमे याचिकाकर्ता 62 साल के काजीम अहमद शेरवानी ने आरोप लगाया था कि 4 जुलाई 2021 को कुछ लोगों ने धर्म के नाम पर उन पर हमला किया और उनसे बदसलूकी की। जब वो शिकायत दर्ज करने पहुंचे तो पुलिस ने उनकी शिकायत भी दर्ज नहीं की। इस घटना को उस वक्त अंजाम दिया गया था जब वे नोएडा से अलीगढ़ जाने के लिए एक कार में सवार हुए थे।