महाराष्ट्र में किसकी सरकार है, ये तो पता है, लेकिन ये पता नहीं है कि शिवसेना का असली हकदार कौन है? मंगलवार को इस मामले पर केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने सुनवाई हुई लेकिन शिवसेना के नाम और धनुषबाण के निशान को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका। चुनाव आयोग अब इस मामले पर 20 जनवरी को सुनवाई करेगा। मालूम हो कि शिवसेना (उद्धव गुट) पार्टी प्रमुख के तौर पर उद्धव ठाकरे का कार्यकाल 23 जनवरी को खत्म हो रहा है और इससे पहले उद्धव गुट ने संगठनात्मक चुनाव करवाने की चुनाव आयोग से इजाजत मांगी है। इस मुद्दे को लेकर भी आयोग में मंगलवार को सुनवाई हुई।
मंगलवार को ठाकरे गुट की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं। कपिल सिब्बल ने कोर्ट से अपील की कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले अपना फैसला ना दे। सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना विवाद पर सुनवाई 14 फरवरी को होनी है। सिब्बल ने कहा कि शिवसेना में दो गुट होने की बात में दम नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के अलग हो जाने से शिवसेना पार्टी पर उनका दावा नहीं बनता। यह गैरकानूनी है।
सिब्बल ने कहा कि, ‘विधायकों और सांसदों के बहुमत के आधार पर पार्टी पर दावा नहीं किया जा सकता। जो लोकप्रतिनिधि होते हैं वे पार्टी के चुनाव चिन्ह और नाम के बल पर ही चुनाव जीत कर आते हैं। वे यह नहीं कह सकते कि उनके पास बहुमत है, इसलिए मूल पार्टी पर उनका दावा बनता है। विधायकों और सांसदों से ही पार्टी का गठन नहीं होता है। कई कार्यकर्ता, पदाधिकारी इसे बनाते हैं। इस लिए मेजोरिटी होने की दलील सही नहीं है’।
पिछली सुनवाई में केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी की दलीलें सुनी थीं। इससे पहले 10 जनवरी को जब चुनाव आयोग में सुनवाई हुई थी तब एकनाथ शिंदे के वकील महेश जेठमलानी ने दलील दी थी कि 2018 में जिस तरह से शिवसेना का संविधान बदला गया, वह गैरकानूनी था। शिंदे गुट की ओर से कहा गया था कि एकनाथ शिंदे के पास बहुमत है, चाहे विधायक हों, सांसद हों या संगठन के लोग, एकनाथ शिंदे ही असली शिवसेना है। शिंदे गुट ने तर्क दिया था कि सुप्रीम कोर्ट अयोग्यता के मामले की सुनवाई कर रहा है, जो सिंबल वॉर से अलग है।
अभी चुनाव आयोग के पाले में है गेंद-
जानकारी के अनुसार, शिवसेना के शिंदे खेमे को तत्काल अलग पार्टी के रूप में मान्यता नहीं मिल सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि दल-बदल विरोधी कानून बागी विधायकों को तब तक संरक्षण देता है जब तक कि वे किसी अन्य पार्टी में विलय कर लेते हैं या एक नई पार्टी बना लेते हैं। एक बार जब पार्टियां आयोग से संपर्क करती हैं तो चुनाव आयोग चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के आधार पर निर्णय लेता है।
बता दें कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिवसेना के धनुष और तीर के निशान को फ्रीज कर दिया था और शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट को ‘दो तलवारें और ढाल’ का चिन्ह तो वहीं उद्धव ठाकरे गुट को ‘ज्वलंत मशाल’ चुनाव चिह्न आवंटित किया गया था।