मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में बुधवार को एक बार फिर सुनवाई हुई । मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के प्रति बहुत ही कड़ा रुख अपनाया । आज की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने CEC की नियुक्ति के लिए कोलेजियम जैसी व्यवस्था कायम करने का विरोध किया । सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि, ‘हमें वह बताएं, जिसे आप नियुक्ति में लागू करते हैं। आपने अभी 2 दिन पहले किसी को CEC के रूप में नियुक्त किया है। हमने आपको कल भी कहा था’।
इस पर जवाब देते हुए ASG (केंद्र सरकार की तरफ से) बलबीर सिंह ने कहा कि, ‘मामला यह नहीं है कि किसी अक्षम व्यक्ति को नियुक्त किया गया है। वास्तव में चुनाव आयोग ने पूरी तरह से ठीक काम किया है। कोई विशिष्ट आरोप भी मौजूद नहीं है। ऐसा नहीं है कि अराजकता है। ऐसा नहीं है कि चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी के मामले में लोकतांत्रिक प्रक्रिया खतरे में है। आज एक प्रक्रिया है जो काम कर रही है। कुछ गलत हुआ, ऐसा कोई विशिष्ट उदाहरण नहीं पेश किया गया है। अब अगर हम कोई वैकल्पिक व्यवस्था लाते हैं तो क्या हम राष्ट्रपति या मंत्रिपरिषद को हटा देंगे’। ASG ने कहा कि ऐसी स्थिति में जहां कोई आरोप नहीं बनता। कोई समस्या नहीं दिखाई गई। कोई ऐसी बात सामने नहीं आई, फिर यह विश्लेषण क्यों?
केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए ASG ने चुनाव आयोग की भूमिका दिखाने के लिए NJAC के फैसले को पढ़ा। एएसजी ने कहा कि, ‘यह फैसला स्पष्ट करता है कि अदालत ने कैसे नोट किया है कि सिस्टम में पहले से ही चेक और बैलेंस मौजूद हैं। संविधान सभा की बहस (CAD) और वाद-विवाद पर वापस चलते हैं। तमाम समस्याओं से पूरी तरह वाकिफ होने के कारण, सभा ने एक खास तरह का प्रावधान बनाने का फैसला किया था’। एएसजी ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की तुलना पर गौर करे अदालत और “परामर्श” शब्द की व्याख्या पर गौर करे। क्योंकि संविधान सभा ने प्रावधान का मसौदा तैयार करते समय यह सब देखा था।
इस पर कोर्ट की संवैधानिक पीठ का नेतृत्व कर रहे जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि इस मामले में जजों का मामला एक मार्गदर्शक कारक हो सकता है।
इसके जवाब में ASG ने कहा कि अब यह तुलना प्रासंगिक है, क्योंकि क्या हम केवल इसलिए विश्लेषण कर सकते हैं, क्योंकि कुछ अपारदर्शी है। यदि संस्था का कामकाज चुनौती के अधीन नहीं है तो केवल इसलिए कि यह अपारदर्शी है, इसे इस हद तक ले जाया जा सकता है। अब विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब संसद को ऐसा करना जरूरी नहीं लगा, तो क्या न्यायालय उस आकलन में जा सकता है? केंद्र की ओर से ASG ने कहा कि छिटपुट घटनाओं को अदालत के हस्तक्षेप का आधार नहीं बनाया जा सकता है। पद को सुरक्षित रखना हमारा प्रयास है। हम निर्धारित स्थान सेकुछ भी नहीं हटा सकते हैं। अनुच्छेद 324 में पारदर्शिता में रिक्तता क्या है? इसे कैसे भरें?।
इस पर पीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि, ‘आप न्यायपालिका से तुलना कर रहे थे। अब उस पर नजर डालते हैं। पहले जब कार्यकारिणी नियुक्त कर रही थी तो हमने महापुरुषों को देखा है लेकिन प्रश्नचिन्ह भी थे। इसलिए कोर्ट ने एक नया तंत्र पेश किया। जस्टिस रस्तोगी ने आगे कहा कि अब अगर मौजूदा सिस्टम भी काम नहीं करता है तो आप इसे बदल सकते हैं। न्यायशास्त्र को देखें। एक ही बात। पहले शत प्रतिशत इंटरव्यू होता था। यह बदल गया तो मूल रूप से हम अनुभव से सीखते हैं। जस्टिस रस्तोगी ने आगे कहा कि यदि अवसर की मांग है तो हम इसे बदल सकते हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि सिस्टम सही नहीं है। हम जो कह रहे हैं वह यह है कि एक पारदर्शी तंत्र होना चाहिए। लोगों को पता होना चाहिए कि आप किसके लिए काम करने जा रहे हैं। इसलिए हम पूछ रहे हैं कि हमें वह तंत्र दिखाएं, जिसे आप नियुक्ति में लागू करते हैं। आपने अभी 2 दिन पहले किसी को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया है। यह याद होना चाहिए। हमें दिखाओं। हमने आपको कल कहा था’।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर ASG ने कहा कि, ‘तो क्या अदालत कह रही है कि मंत्रिपरिषद पर भरोसा नहीं है’। इस पर जस्टिस रस्तोगी ने कहा नहीं, हम अपनी संतुष्टि के लिए कह रहे हैं कि आपने दो दिन पहले नियुक्ति में जो मैकेनिज्म अपनाया था, वह हमें दिखाइए।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा- क्या आप चुनाव आयुक्तों को नियुक्ति करने संबंधी नोटिफिकेशन को वापस ले सकते हैं?। क्या आप दोबारा ऐसा कर सकते हैं और पुरानी स्थिति में वापस जा सकते हैं? ASG बलबीर सिंह ने कहा जी हां।, बिल्कुल, कानूनन यह किया जा सकता है। ASG ने आगे कहा कि चरित्रवान व्यक्ति की तलाश करना एक बात हो सकती है। लेकिन इसका नियुक्ति के तरीके से कोई लेना-देना नहीं है।अभी हमारे पास एक तंत्र है, जो इतना बड़ा और ऐसा है कि यह किसी को पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण रखने और एक पक्ष लेने की अनुमति नहीं देता है। ऐसा कोई आरोप भी नहीं है।
जस्टिस केएम जोसेफ ने ASG से कहा कि चुनाव आयुक्त बनने वाले व्यक्ति को स्वतंत्र होना चाहिए। यहां हमें उस पर गौर करने की जरूरत है। हमें यह देखना है कि नियुक्ति प्रक्रिया कितनी स्वतंत्र है। पंजाब कैडर के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए अपने टिप्पणी में कहा है कि हम चाहते हैं कि चुनाव आयुक्तों के नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी हो।
ASG ने कोर्ट को बताया कि, ‘हमने यह दिखाया है कि परंपरा का पालन कैसे किया जाता है और फिर हम प्रक्रिया भी दिखाते हैं। वरिष्ठता इत्यादि। यह चुनने और चुनने की प्रणाली बिल्कुल नहीं है। एक प्रक्रिया होती है’।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि ‘हम समझते हैं कि सीईसी की नियुक्ति ईसी में से की जाती है। आपने वरिष्ठता की बात की। लेकिन उसका कोई आधार नहीं है’।
जवाब में ASG ने कहा कि फिर कोई सिस्टम उस मामले में काम नहीं कर सकता है।
इस पर कोर्ट ने पूछा कि ‘आप सिर्फ सिविल सेवकों तक ही क्यों सीमित हैं’?
ASG ने कहा कि यह पूरी तरह से अलग बहस है। अगर कोई परंपरा है तो हम उसका पालन कैसे नहीं करते। क्या हम उम्मीदवारों के राष्ट्रीय पूल में ला सकते हैं। यह एक बड़ी बहस है। एक अंतर्निर्मित गारंटी भी है। जब भी राष्ट्रपति सुझाव से संतुष्ट नहीं होता है तो वह कार्रवाई कर सकते हैं।
जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि, ‘उदाहरण के लिए चुनाव आयुक्त को प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई कदम उठाना हो और अगर आयुक्त कमज़ोर होगा तो वो कोई कदम ही नहीं उठा पायेगा। मैं यहाँ काल्पनिक तौर पर सिर्फ़ उदाहरण के लिए PM की बात कह रहा हूं। आयुक्त को स्वतंत्र,निष्पक्ष होना चाहिए।इसके लिए ज़रूरी है कि उनका चयन सिर्फ कैबिनेट के बजाए उससे कहीं मजबूत और पारदर्शी बॉडी की ओर से हो। राजनीतिक नेता बाते तो करते रहे है,पर ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ है’।
इस पर ASG ने सरकार की तरफ से जवाब दिया कि, ‘सिर्फ काल्पनिक स्थिति के आधार पर केंद्रीय कैबिनेट पर अविश्वास नहीं किया जाना चाहिए. अब भी योग्य लोगों का ही चयन किया जा रहा है’।