गुजरात हाई कोर्ट ने मंगलवार को मोरबी पुल हादसे की सुनवाई की। हाई कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था। आज हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार और मोरबी नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई और उनसे कई सवाल भी पूछे। हाई कोर्ट ने कहा कि मोरबी नगर पालिका होशियार बनने की कोशिश कर रही है।
मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की बेंच ने मुख्य सचिव से पूछा, ’15 जून 2017 को कॉन्ट्रैक्टर का टर्म समाप्त हो जाने के बाद भी नया टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया? और बोलियां क्यों नहीं आमंत्रित की गईं? बिना टेंडर के एक व्यक्ति के प्रति राज्य की ओर से कितनी उदारता दिखाई गई? इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए महज डेढ़ पेज में एग्रीमेंट कैसे पूरा हुआ? अदालत ने कहा कि राज्य को उन कारणों को बताना चाहिए कि आखिर क्यों नगर निकाय के मुख्य अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की गई?
On what basis, the bridge was permitted to be operated by the contractor for three years, after the first agreement expired.
Details of all these questions to be given on affidavit on next hearing after two weeks.Next date – November 24.
— Bar & Bench (@barandbench) November 15, 2022
कोर्ट ने कहा कि ‘पहला एग्रीमेंट समाप्त हो जाने के बाद किस आधार पर ठेकेदार को पुल को तीन सालों तक ऑपरेट करने की इजाजत दी गई’?
हाई कोर्ट ने मोरबी नगर पालिका को भी फटकार लगाईv कोर्ट ने कहा कि नोटिस के बावजूद वे अदालत में नहीं आए हैं। ऐसा लगता है कि “वे ज्यादा होशियार बन रहे हैं, बल्कि उन्हें सवालों के जवाब देने चाहिए।”
… which led to unfortunate death of 135 persons in the incident. The State shall also place on record the reasons as to why disciplinary proceedings against the Chief Officer of the civic body aren't commenced. #GujaratHighCourt #MorbiBridgeTragedy
— Bar & Bench (@barandbench) November 15, 2022
कोर्ट ने कहा, “नगर पालिका, जो एक सरकारी निकाय है, उसने चूक की है, जिसने 135 लोगों को मार डाला। क्या गुजरात नगर पालिका अधिनियम, 1963 का पालन किया गया था?”
हाई कोर्ट की बेंच ने गुजरात सरकार से पूछा कि ‘क्या उन लोगों के परिवार के सदस्य को सहायता के तौर पर नौकरी दी जा सकती है, जो अपनी फैमिली में अकेले कमाने वाले थे लेकिन इस दुर्घटना में उनकी मौत हो गई’?। कोर्ट में राज्य मानवाधिकार आयोग के वकील ने बताया कि अभी इसकी पुष्टि की जा रही है कि संबंधित परिवारों को मुआवजा दिया गया है या नहीं।
Counsel for State Human Rights Commission informs that it is verifying if the compensation as awarded is paid properly to the concerned families or not. #GujaratHighCourt #MorbiBridgeTragedy
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The bench also seeks to know from State if it could provide compassionate jobs to the family members of those, who died in the incident but was the sole earning member of the family. #GujaratHighCourt#MorbiBridgeTragedy
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आज की सुनवाई में राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि इस मामले में उसने “बिजली की गति” से काम किया और कई लोगों की जान बचाई। सरकारी वकील ने कहा, “नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है और अगर कोई और दोषी पाया जाता है तो हम निश्चित रूप से उन पर मामला दर्ज करेंगे।”
कोर्ट ने अपने आदेश में मोरबी के प्रधान जिला न्यायाधीश को नगर निकाय को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, “घटनाओं की सूची से संकेत मिलता है कि एमओयू पर 16 जून, 2008 को कलेक्टर और ठेकेदार के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। यह निलंबन पुल के संबंध में किराए का संचालन, रखरखाव, प्रबंधन और संग्रह करना था। उक्त अवधि 15 जून, 2017 को समाप्त हो गई। इस प्रकार विवादास्पद प्रश्न होगा: इस समझौता ज्ञापन के तहत, जिसे फिटनेस प्रमाणित करने की जिम्मेदारी तय की गई थी। 2017 में कार्यकाल समाप्त होने के बाद, मोरबी नागरिक निकाय और कलेक्टर ने टेंडर जारी करने के लिए क्या कदम उठाए थे?”
हाई कोर्ट में अब इस मामले पर अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी। कोर्ट ने कहा कि इन सवालों का जवाब हलफनामे में अगली सुनवाई के दौरान दें, जो कि दो हफ्तों के बाद होगी।
In the meanwhile, State is directed to secure entire file of the contract from the very first day of it till date and file it in the Registry in a sealed cover. It shall also respond as to why it has not exercised powers as prima facie the civic body has defaulted…
— Bar & Bench (@barandbench) November 15, 2022
बताते चलें कि मोरबी जिले में 30 अक्टूबर की शाम को हुए हादसे में कम से कम 140 लोगों की मौत हो गई थी और 150 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान लिया था और छह विभागों से जवाब तलब किया था।