प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा को बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के जनता दल यूनाइटेड यानि जेडीयू द्वारा तलाक देने के उपरांत इस पद से 9 अगस्त को इस्तीफा दे देने के बाज आज उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल यानि आरजेडी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के समर्थन से विधानसभा के सदस्यों का बहुमत जुटा कर 8वीं बार अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो गए। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी, हिंदुस्तान अवामी मोर्चा यानि हम समेत सात पार्टियां नीतिश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन में साथ आ गई है।
पटना में राजभवन में अपराह्न चार बजे आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में लालू प्रसाद यादव की पत्नि, विधानसभा में विपक्ष और आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव की माँ और खुद भी मुख्यमंत्री रह चुकीं राबड़ी देवी भी मौजूद थी। नीतिश ने तेजस्वी यादव के साथ मंगलवार शाम राजभवन जाकर राज्यपाल फागू चौहान के सम्मुख अपनी नई सरकार बनाने का औपचारिक दावा पेश कर दिया था। नई सरकार में नीतीश मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने है। नई सरकार के अन्य मंत्रियों कुछ दिनों बाद शपथ दिलाई जाएगी।
अब और फिर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे
नीतिश कुमार ने शपथ लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा वह अब और फिर मुख्यमंती नहीं बनेंगे। उन्होंने विपक्षी गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनने की संभावना से इनकार कर कहा कि सभी विपक्षी दलों को 2024 के लोक सभा चुनाव की तैयारी के लिए एकजुट हो जाना चाहिए।
नीतीश कुमार ने 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए और सरकार और उसके सुप्रीमो मोदी के प्रति बगावती तेवर अपना लिया था।
जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने उनकी पार्टी के खिलाफ भाजपा द्वारा साजिश रचने का खुला आरोप लगाया था। उनके मुताबिक भाजपा ने पिछले चुनाव में साजिश के तहत दिवंगत केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी यानि एलजेपी को सहारा दिया जिसके कारण जेडीयू के निर्वाचित विधायकों की संख्या घटकर 43 हो गई। दूसरी और भाजपा के विधायकों की संख्या जेडीयू से कहीं ज्यादा हो गई। चिराग पासवान एनडीए में बरकरार हैं और जमुई से लोकसभा सदस्य हैं।
ललन सिंह ने जेडीयू के बिहार से राज्यसभा सदस्य और मोदी सरकार में मंत्री आरसीपी सिंह का नाम लिए बगैर संकेत दिए थे कि भाजपा ने अपनी एक साजिश के तहत ही नीतिश कुमार से सलाह मशविरा किये बगैर उनको केन्द्रीय मंत्री बना दिया।
जेडीयू ने आरसीपी सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप। इस पर उन्होंने जेडीयू से इस्तीफा दे दिया। मोदी सरकार में अब जेडीयू का कोई मंत्री नहीं है। इससे क्षुब्ध नीतीश कुमार नीति आयोग की दिल्ली में हुई बैठक में भाग लेने नहीं गए। उन्होंने दिल्ली नहीं जाने की वजह अपनी अस्वास्थता बताई। हालांकि वह उसी दिन पटना में अपने कैबिनेट में शामिल भाजपा के शाहनवाज हुसैन के साथ एक मंच पर बैठे नजर आए।
पिछले माह जब केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार का दौरा किया तो नीतीश कुमार ने उनसे दूरी बरतने खुद को कोरोना कोविड पॉजिटिव घोषित कर दिया। बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा भी कोविड पॉजिटिव घोषित हो गये।
भाजपा के प्रांतीय नेताओं ने अमित शाह और जेपी नड्डा के हवाले से यह ‘ खबर ‘ फैला दी कि उनकी पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के कब्जे वाली 43 सीटें छोड़ शेष सभी पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। यह बात जेडीयू को चुभ गई और उसने कह दिया कि वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ने तैयार है।
नीतीश कुमार को शायद ऐसा लगा कि भाजपा , मोदी सरकार की शह पर महाराष्ट्र में शिवसेना की तरह आरसीपी सिंह के जरिए जेडीयू तोड़ने की तैयारी में लगी है।उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे को अपदस्थ करने की सियासी चालों से सबक लेकर समय रहते आक्रामक कदम उठाना बेहतर माना।
नीतिश कुमार ने मंगलवार को जेडीयू के सभी विधायकों और सांसदों की बुलाई बैठक के बाद भाजपा से अलग होने की घोषणा करने के साथ ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। राज्यपाल ने उनसे वैकल्पिक व्यवस्था होने तक मुख्यमंत्री बने रहने कहा। जानकार सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार ने चालू श्रावण महीना के शुभ माने जाने वाले दिनों के 11 अगस्त को खत्म होने और अशुभ माने जाने वाले भाद्र माह की तिथि शुरू होने के पहले नई सरकार के गठन का लक्ष्य तय कर लिया था। देश की आजादी का अमृत महोत्सव बिहार में भी 15 अगस्त को मनाया जा रहा है।
नीतीश कुमार की पहलकदमी पर लालू प्रसाद यादव के परिवार के साथ उनके बिगड़े संबंध सुधारने लगे। बिहार की सियासत में भाजपा और आरजेडी विपरीत ध्रुव हैं जिनके बीच रहकर जेडीयू पार्टी नेतृत्वकारी भूमिका में आती रहती है। उसे आरजेडी का साथ होने से अन्य पिछड़े वर्ग की कोयरी और कुर्मी जातियों ही नहीं यादव वोटरों के अलावा मुस्लिम समर्थन मिल जाता है। नीतिश कुमार को आरजेडी और कांग्रेस के साथ रहकर 2024 के अगले राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने का मौका भी मिल सकता है। उन्होंने अपने गृह जिला नालंदा की सीट से लोक सभा चुनाव लड़ने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है।
नीतीश कुमार का डीएनए
2016 मे नीतीश कुमार ने ‘संघ मुक्त भारत’ का नारा दिया था। उस वक़्त उन्होंने कहा था वह न तो किसी व्यक्ति विशेष और न ही किसी दल के खिलाफ हैं पर संघ यानी आरएसएस की समाज को बांटने वाली विचारधारा के खिलाफ है। उस वक्त वह बोले थे कि मोदी जी ने भाजपा के कद्दावर नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को दरकिनार कर दिया। अब यह दल ऐसे व्यलक्ति के हाथ में चला गया है, जिनका धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द में कोई विश्वावस नहीं है। लेकिन उसके बरस भर के भीतर ही वह फिर मोदी जी के साथ लग गए।
शाहनवाज हुसैन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के पूर्व मंत्री और भाजपा के प्रमुख मुस्लिम चेहरा , शाहनवाज हुसैन की पिछले बरस बिहार विधान परिषद के उपचुनाव में जीत से उनका सियासी पुनर्वास हो गया है। कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे शाहनवाज हुसैन को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता था। विधानसभा चुनाव के बाद जदयू के नेतृत्व में भाजपा और कुछ छोटे दलों की नई सरकार बनने पर नीतिश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने में कामयाब रहे। लेकिन पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को मंत्रिमंडल से बाहर ही रख बाद में उन्हें राज्यसभा चुनाव में मिली जीत के बाद इस सूबा की सियासत से हटा कर दिल्ली भेज दिया गया। बिहार में भाजपा का फिलहाल कोई बड़ा नेता नहीं है। शाहनवाज अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री थे।
लालू के बोल
लालू प्रसाद यादव के मुताबिक 2020 के बिहार चुनाव में उनकी पार्टी इसलिए हारी कि कांग्रेस हारी थी। हमने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं लेकिन वह हार गई। इसलिए हमें भी हारना पड़ा। कांग्रेस के पास अब वोट ही नहीं है। दोनों पार्टी के बीच संबंध पर उनका कहना है भविष्य की बात भविष्य में देखी जाएगी।
आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन 2000 से हैं। कांग्रेस 2009 का लोकसभा चुनाव अपने दम पर अकेले लड़ी थी। दिसंबर 2021 में दो सीटों पर मध्यावधि विधानसभा चुनावों में आरजेडी ने कांग्रेस को एक भी सीट देने से इंकार कर दिया था। राज्य विधान परिषद की पंचायत खंड से 24 सीटों के आगामी चुनाव में आरजेडी ने कांग्रेस को दो सीटें से ज्यादा देने से इंकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि उनके पुत्र और विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने 2020 में कांग्रेस से 70 सीटों के लिए बात की थी। हम दोनों भाजपा को हटाना चाहते हैं। लेकिन कांग्रेस को एहसास होना चाहिए कि क्षेत्रीय दलों की भूमिका मुख्य होती है।
तेजस्वी ने 2022 के लोकसभा चुनाव के सिलसिले में हैदराबाद जाकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति यानि टीआरएस अध्यक्ष के.चंद्रशेखर राव से भेंट कर साफ कह दिया था कांग्रेस, आरजेडी की सबसे पुरानी सहयोगी है। 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के साथ थे तब भी लालू कांग्रेस को 15 से ज्यादा सीटें देने राजी नहीं थे। नीतीश ने ही लालू को इस बात के लिए राजी किया था कि वे कांग्रेस को 41 सीटें दें।
कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान के मुताबिक आरजेडी ने पहले भी गलतियां की थीं और उनको कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। 2009 में कांग्रेस ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा था। इसके बाद आरजेडी उम्मीदवारों को आधा दर्जन से ज्यादा लोकसभा सीटें गंवानी पड़ी थीं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की बागडोर सौंप दी है। चर्चा है लालू शायद ही ऐसा करेंगे।
बिहार के 20 वें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला के तहत डोरंडा कोषागार से 139.5 करोड़ रुपये गबन के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानि सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए थे। 10 मार्च 1990 को लालू प्रसाद यादव ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। वह अपनी पहली पारी में 28 मार्च 1995 तक मुख्यमंत्री बने रहे। अगली पारी के शुरुआती वर्षों में ही लालू यादव “चारा घोटाला” में लिप्त हो गए। अदालत, लालू को इससे पहले चारा घोटाला के ही चार अन्य मामलों में 14 साल जेल की सजा दे चुकी है। डोरंडा ट्रेजरी से अवैध निकासी मामले में लालू प्रसाद यादव समेत 110 आरोपी थे हैं जिनमें से अब 99 अभियुक्त को सजा मिलेगी। 24 आरोपी बरी हो गए। पहला मामला चाईबासा कोषागार से अवैध तरीके से 37.7 करोड़ रुपए निकालने का है। इस मामले में लालू यादव समेत 44 आरोपी थे। उन्हें 5 साल कारावास और 25 लाख रुपए का जुर्माना भरने की सजा हुई। चारा घोटाले के तहत देवघर सरकारी कोषागार मामला से 89.28 लाख रुपये गबन के मामले में लालू यादव को साढ़े तीन साल की कैद और पांच लाख का जुर्माना हुआ। तीसरा मामला चाईबासा कोषागार का है। इसमें 33.67 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के मामला में लालू को 5 साल की कैद और 10 लाख का जुर्माना की सजा हुई। चौथा मामला दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का है जिसमें लालू को दो अलग-अलग धाराओं में 7-7 साल की सजा सुनाई गई। इसमें 60 लाख का जुर्माना भी लगा। मामले के मूल 170 आरोपियों में से 55 की मौत हो चुकी है, सात सरकारी गवाह बन चुके हैं, दो ने आरोप स्वीकार कर लिए हैं और छह फरार हैं। लालू के अलावा पूर्व सांसद जगदीश शर्मा, तत्कालीन लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष ध्रुव भगत, पशुपालन सचिव बेक जूलियस और पशुपालन सहायक निदेशक डॉ के एम प्रसाद मुख्य आरोपी हैं।950 करोड़ रुपये का यह घोटाला अविभाजित बिहार के विभिन्न जिलों में धोखाधड़ी कर सरकारी खजाने से सार्वजनिक धन की निकासी से संबंधित है। लालू को चारा घोटाला मामले में 14 साल जेल की सजा सुनाई गई और कुल 60 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। उन्हें दुमका, देवघर और चाईबासा कोषागार से जुड़े चार मामलों में जमानत मिल गई है। चारा घोटाला मामला जनवरी 1996 में पशुपालन विभाग में छापेमारी के बाद सामने आया। सीबीआई ने जून 1997 में लालू आरोपी दर्ज किया। एजेंसी ने लालू और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के खिलाफ आरोप तय किए। सितंबर 2013 में निचली अदालत ने चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में लालू प्रसाद,जगन्नाथ मिश्रा और 45 अन्य को दोषी ठहराया। लालू को रांची जेल भेज दिया गया। दिसंबर 2013 में उच्चतम न्यायालय ने मामले में प्रसाद को जमानत दे दी। दिसंबर 2017 में सीबीआई अदालत ने उन्हें और 15 अन्य को दोषी पाया। उन्हें बिरसा मुंडा जेल भेज दिया। झारखंड उच्च न्यायालय ने प्रसाद को अप्रैल 2021 में जमानत दे दी थी। लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री रहते 1990 से 95 के बीच बिहार के सरकारी खजाने के पशु चारा के नाम पर 950 करोड़ की अवैध निकासी हुई थी। इसका खुलासा 1996 में हुआ। जांच बढ़ने पर लालू पर आंच आ गयी।
झारखंड में चारा घोटाले के कुल पांच मुकदमों में लालू प्रसाद यादव अभियुक्त बनाये गये। 24 लोगों को इस मामले में बरी किया गया है।
वह 1990 से 1997 तक मुख्यमंत्री रहे। बाद में उन्हें 2004 से 2009 तक केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानि यूपीए सरकार में रेल मन्त्री का कार्यभार सौंपा गया। जब वह 15वीं लोक सभा में सारण (बिहार) से सांसद थे तो उन्हें बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में रांची स्थित सीबीआई की अदालत ने पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के लिए उन्हें बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार रांची में रखा गया था। 3 अक्टूबर 2013 को न्यायालय ने उन्हें पाँच साल की कैद और पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा दी।दो महीने तक जेल में रहने के बाद 13 दिसम्बर को लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से बेल मिली। यादव और जनता दल यूनाइटेड नेता जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोकसभा से अयोग्य ठहराया गया।इसके बाद राँची जेल में सजा भुगत रहे लालू प्रसाद यादव की लोकसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गयी। चुनाव के नये नियमों के अनुसार लालू प्रसाद अब 11 साल तक लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। लोकसभा के महासचिव ने यादव को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराये जाने की अधिसूचना जारी कर दी। इस अधिसूचना के बाद संसद की सदस्यता गँवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में लोक सभा के पहले सांसद हो गये ।
बिहार के गोपालगंज में एक यादव परिवार में 11 जून 1948 को पैदा हुए लालू यादव ने सियासत की शुरूआत जयप्रकाश नारायण के जेपी आन्दोलन से की थी। तब वह छात्र नेता थे और उस समय के राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे।
1977 में आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में लालू यादव जीते और पहली बार 29 साल की उम्र में लोकसभा पहुँचे। 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे।
बहरहाल , बिहार में महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 9 अगस्त 1942 से शुरू अगस्त क्रांति जैसा माहौल नजर आ रहा है। इससे पैदा सियासी हालात कब तक रहेगा और देश की सियासत पर उसका कितना कारगर असर होगा इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में है।
File Cartoon by Gokula Vardharajan