हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने क्षुद्रग्रहों से पृथ्वी को बचाने की तकनीक के परीक्षण के लिए कैलिफ़ॉर्निया वेंडेबर्ग स्पेस फ़ोर्स बेस से एक रॉकेट के जरिए ‘डार्ट’ (डबल एस्टेरॉइड रिडाइरैक्शन टेस्ट) मिशन को लांच किया है। योजना के मुताबिक 24 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एक अंतरिक्षयान 2 अक्टूबर, 2022 को डाइमॉरफस नामक क्षुद्रग्रह से टकराएगा और उसके रास्ते को बदलने की कोशिश करेगा। नासा ने इसे ‘प्लानेट्री डिफेंस’ नाम दिया है। काइनेटिक इम्पैक्टर टेक्नोलॉजी पर आधारित यह प्रयोग इसलिए किया जा रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि अगर भविष्य में कोई आसामनी विनाशदूत (क्षुद्रग्रह या धूमकेतु) पृथ्वी की ओर आता हुआ दिखाई देता है तो क्या उसे उसके यात्रा पथ से विचलित करने में यह तकनीक कारगर साबित हो सकती है या नहीं। पृथ्वी की रक्षा के लिए इस तरह की तकनीक का यह पहला प्रदर्शन होगा।
डार्ट का लक्ष्य डाइमॉरफस क्षुद्रग्रह के मार्ग को थोड़ा-सा बदलना है। डार्ट लगभग 24 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से डाइमॉरफस से टकराएगा। इससे डाइमॉरफस का यात्रा पथ कुछ मिलिमीटर ही बदलने की संभावना हैं। अगर ये हो गया तो, उसकी कक्षा बदल जाएगी। डार्ट मिशन के प्रोग्राम साइंटिस्ट टॉम स्टेटलर के मुताबिक, ‘ये एक बहुत ही छोटा परिवर्तन लग सकता है लेकिन एक क्षुद्रग्रह को पृथ्वी से टकराने से रोकने के लिए हमें बस इतना ही करना है।’
डाइमॉरफस की चौड़ाई 169 मीटर के आसपास है। यह क्षुद्रग्रह अपने से बड़े एक दूसरे क्षुद्रग्रह डिडीमॉस की परिक्रमा कर रहा है, जो लगभग 780 मीटर चौड़ा है। डाइमॉरफस एक ऐसा क्षुद्रग्रह है जिससे पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है, इसलिए इसे परीक्षण के लिए चुना गया है। इस पूरी घटना को पृथ्वी से दूरबीनों के जरिए देखा जा सकेगा। इस टक्कर की मिनिएचर कैमरा से तस्वीरे भी ली जा सकेंगी। नासा के प्रधान विज्ञानी थॉमस जुबुरशेन के मुताबिक, ‘हम यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि किसी खतरे को कैसे टाला जाए।’
हमारा ब्रह्मांड उग्र हलचलों से भरा पड़ा है, जिसमें तारे ग्रहों को निगल जाते हैं, आकाशगंगाओं का एक-दूसरे में विलय हो जाता है, ब्लैक होल आपस में टकरा जाते हैं तथा सुपरनोवा और अन्य खगोलीय पिंड घातक रेडिएशन छोड़ते हैं। कुल मिलाकर ब्रह्मांड एक बेहद हिंसक स्थान है और अंतरिक्ष के अनगिनत खगोलीय संरचनाओं की तुलना में हमारी पृथ्वी की हैसियत नाजुक, कमजोर और खतरों भरी है।
विज्ञानियों ने पृथ्वी के गर्भ में सुरक्षित जीवाश्मों के अध्ययन से यह स्पष्ट निष्कर्ष निकाला है कि हमारी पृथ्वी कभी भी खतरों से खाली नहीं रही और इसने अनेक संकटों को झेला है। बीसवीं शताब्दी तक हम सोचते थे कि हम बहुत सुरक्षित जगह पर रह रहे हैं, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। मानव जाति के लुप्त होने के कई खतरे हैं। कुछ खतरे मानव निर्मित हैं, जैसे- जलवायु परिवर्तन, परमाणु युद्ध, जैव विविधता का विनाश, ओज़ोन की परत में सुराख, वहीं कुछ आसमानी खतरे भी हैं, जैसे- किसी क्षुद्रग्रह या धूमकेतु से टकरा जाने के खतरा।
हमने स्कूलों में जुरासिक काल का इतिहास पढ़ा है कि करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर डायनासोर और बड़े-बड़े प्राणियों का राज था। उनका क्या हुआ? ऐसी कौन सी घटना घटी जिसने पृथ्वी पर से डायनासोर और अन्य विशालकाय जीव-जंतुओं का नामोनिशान ही मिटा दिया?
डायनासोर पृथ्वी से कैसे विलुप्त हो गए, इसकी कई वजहें बताईं जाती हैं, लेकिन इसका सर्वाधिक मान्यता प्राप्त सिद्धांत यह है कि आज से तकरीबन 6.5 करोड़ साल पहले किसी बड़े क्षुद्रग्रह के टकराने से मची तबाही ने डायनासोर समेत पृथ्वी पर रहने वाले लगभग 75% जीव-जंतुओं का हमेशा-हमेशा के लिए सफाया कर दिया। जिस जगह ये टक्कर हुई उसे आज दक्षिणपूर्वी मेक्सिको का युकातन प्रायद्वीप कहा जाता है। इस टक्कर की वजह से बेहद गर्म तरंगें पैदा हुईं और उन्होंने आकाश को ठोस और तरल कणों वाली गैस के बादल से भर दिया। इसकी वजह से सूर्य के सामने कई महीनों के लिए एक काला धब्बा आ गया और नतीजन सूर्य की रोशनी पर निर्भर पेड़-पौधे और जीव-जंतु मर गए। इसी प्रलय के चलते विशालकाय डायनासोर की तमाम प्रजातियाँ भी खत्म हो गईं। आम लोग क्षुद्रग्रहों से इसी वजह से खौफ खाते हैं कि जब यह करोड़ों वर्षों तक धरती पर राज करने वाले डायनासोर जैसे विशाल प्राणियों का नामोनिशान मिटा सकता है तो हम मामूली इंसान किस खेत की मूली हैं!
यह एक सुपरिचित वैज्ञानिक तथ्य है कि हमारी पृथ्वी जिस पथ पर गतिमान है, वहाँ निर्वात या शून्य है। इस वजह से किसी अन्य खगोलीय पिंड से पृथ्वी के टकराने की गुंजाइश कम है। लेकिन आए दिन किसी क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के पृथ्वी के आसपास से गुजरने की खबरें आती रहती हैं। इसकी क्या सच्चाई है?
क्षुद्रग्रह चट्टानों और धातुओं से बने ऐसे पिंड हैं जो मुख्यत: मंगल और बृहस्पति के बीच की ‘एस्टेरॉइड बेल्ट’ में पाए जाते हैं। इनका आकार 100 मीटर से लेकर 1000 किलोमीटर तक हो सकता है। छोटे आकार के क्षुद्रग्रह को उल्कापिंड कहा जाता है। वहीं धूमकेतु हमारे सौरमंडल की बाहरी सीमा जिसे ‘ओर्ट क्लाउड’ कहा जाता है, में अरबों की संख्या में पाए जाते हैं। हमारे सौरमंडल के बाकी सदस्यों की तरह क्षुद्रग्रह और धूमकेतु भी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
हमारा सूर्य स्वयं 792,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। ऐसे में कई बार नजदीक से गुजरते किसी आकाशीय पिंड या तारे की वजह से ऐसी स्थिति बनती है कि उस तारे और सूर्य की साझा गुरुत्वाकर्षण शक्ति क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को उनके पथ से विचलित कर देती है, जिससे ये छिटक कर सौरमंडल के भीतर 4.5 करोड़ किलोमीटर तक पहुँच जाते हैं और पृथ्वी के लिए खतरा बन जाते हैं।
हालांकि खतरा सिर्फ 30 मीटर से ज्यादा आकार के पिंड से होता है। रोजाना 30 मीटर से कम आकार के उल्कापिंडों और धूमकेतुओं के 100 मीट्रिक टन टुकड़े पृथ्वी पर गिरते हैं, जिनसे कोई खतरा नहीं होता क्योंकि ये पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होते ही घर्षण की वजह से जलकर ख़ाक हो जाते हैं।
निश्चित रूप से किसी बड़े क्षुद्रग्रह या धूमकेतु का पृथ्वी से टकराना मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है। ऐसे बड़े आकाशीय आक्रांताओं को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 1999 में ‘सेंटर फॉर नीयर अर्थ ओब्जेक्ट्स स्टडीज़’ (सीएनईओएस) नामक एक अलग विभाग की स्थापना की, जिसका काम है- पृथ्वी से पांच करोड़ किलोमीटर के दायरे में मौजूद खगोलीय पिंडों की निगरानी करना। नासा का यह विभाग संभावित रूप से खतरनाक पिंडों को ‘पोटेंशियली हज़ार्डस ऑब्जेक्ट्स’ (पीएचओएस) के रूप में वर्गीकृत करता है।
जनवरी 2018 तक तकरीबन 1885 पोटेंशियली हज़ार्डस ऑब्जेक्ट्स को खोजा जा चुका है। इनमें से 157 ऐसे पीएचओएस जिनका आकार 1 किलोमीटर से अधिक है जबकि 1601 अपोलो वर्ग के हैं बाकी एटेन वर्ग के ओब्जेक्ट्स हैं। इन सभी पीएचओएस में से 99% पिंडों से आगामी 100 सालों में पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है, क्योकि इनका यात्रा पथ भलीभाँति निर्धारित किया जा चुका है। लेकिन कुछ ऐसे भी क्षुद्रग्रह और धूमकेतु हैं जो अगले 100 सालों में पृथ्वी के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। तमाम निगरानी के भी बावजूद यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कब, कौन-सा अंतरिक्षीय आक्रांता पृथ्वी की तरफ आता हुआ प्रकट हो जाए। और ऐसा बीते तीन दशकों में 20-25 बार हो चुका है, जब किसी बड़े धूमकेतु या क्षुद्रग्रह के पृथ्वी के करीब से गुजरने का पता हमें काफी बाद में चला। विज्ञानियों के मुताबिक अगर 60 मीटर आकार का भी कोई पिंड पृथ्वी से टकरा जाए तो उससे 6 मेगाटन हाइड्रोजन बम की ऊर्जा के बराबर ऊर्जा पैदा होगी और इससे उत्पन्न प्रभाव हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम जैसे 500 बमों के बराबर होगा!
धरती के दामन पर लगे 200 से अधिक दाग (क्रेटर्स) इस बात के साक्षी हैं कि अंतरिक्ष के विनाशदूत यायावरों ने एक नहीं कई बार पृथ्वी से जैव प्रजातियों का नामोनिशान मिटाया है। भूगर्भिक साक्ष्यों से विज्ञानियों को यह पता चला है कि हर 260 लाख साल के अंतराल पर हमारी पृथ्वी किसी छोटे या बड़े प्रलय का सामना जरूर करती है। कई खगोल विज्ञानियों का मानना है कि हर 2 करोड़ 60 लाख साल में हमारे सौरमंडल में ऐसी परिस्थितियाँ (चरम गुरुत्वीय उथल-पुथल) बनती हैं, जो क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को सौरमंडल के भीतर की ओर मोड़ देती हैं।
नासा के प्लानेट्री डिफेंस ऑफिसर लिंडले जॉनसन के मुताबिक, ‘हालांकि अभी तक ऐसे किसी क्षुद्रग्रह के बारे में जानकारी नहीं मिली है जिससे निकट भविष्य में पृथ्वी को नुकसान पहुंचने वाला हो, लेकिन धरती के आसपास अंतरिक्ष में बड़ी संख्या में क्षुद्रग्रह हैं। नासा की कोशिश ऐसी तकनीक विकसित करना है जिससे कि भविष्य में पृथ्वी को खतरा पैदा होने की स्थिति में समय रहते कार्रवाई की जा सके।’ बहरहाल, दुनिया भर के विज्ञानियों की निगाह नासा के डार्ट मिशन पर है क्योंकि यह मिशन भविष्य में पृथ्वी की तरफ आ रहे खतरनाक क्षुद्रग्रहों/धूमकेतुओं को उसके पथ से विचलित करने का तरीका बताएगा।
(लेखक विज्ञान संचारक हैं)