केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार होने के साथ ही विगत बुधवार 7 जुलाई को केंद्र और देश के आधे से ज्यादा राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक अघोषित परामर्श मंडल के सदस्यों की संख्या भी स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है। पार्टी के इस अघोषित परामर्श मंडल का विधिवत गठन तो किसी तिथि को नहीं हुआ था, लेकिन यह माना जाता है कि 2014 में जब नए नेतृत्व ने कमान संभाली थी और केंद्र में नई सरकार का गठन होने के साथ ही पार्टी संगठन को भी नई ताकत दी गई थी तभी पार्टी के कुछ पुराने नेता जिनकी वजह से पार्टी आज यहाँ तक पहुँची है , खुद ही एकांतवास में चले गए थे और खुद को पार्टी के परामर्श मंडल का सदस्य मान कर पार्टी मामलों में बोलने से चुप्पी साध ली थी।
ऐसे दो नेता हैं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी। दरअसल परामर्श मंडल पार्टी के ऐसे पुराने और वरिष्ठ नेताओं का एक ऐसा अनौपचारिक संगठन है जिसके नेता बोलते तो कुछ नहीं हैं लेकिन अन्दर ही अन्दर कुढ़ते जरूर रहते हैं क्योंकि पार्टी या सरकार के मसलों पर उनसे कभी भी किसी तरह की सलाह नहीं ली जाती भाजपा परामर्श मंडल के। इन दो बुजुर्ग सदस्यों के अलावा असंख्य और भी सदय हैं इनमें कुछ तो ऐसे भी हैं जो कई साल की नाराजगी के बाद अंततः अपनी उपेक्षा से दुखी होकर भाजपा छोड़ कर ही चले गए परामर्श मंडल के एक ऐसेही पूर्व सदस्य थे यशवंत सिन्हा। ऐसे ही एक अन्य सदस्य थे पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया था।
अभी तक पार्टी में शांति थी , कुछ हो नहीं रहा था इसलिए नाराजगी दिखाई नहीं दे रही थी लेकिन मंत्रिमंडल में विस्तार के बाद जिन लोगों को केंद्र के मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा है वो पूरे न सही आंशिक रूप से ही सही इस परामर्श मंडल के सदस्य तो बन ही गए हैं। इनकी संख्या भी कम नहीं है। पूरे एक दर्जन नेता इस वजह से मुंह फुलाए बैठे हैं चाहे वो रवि शंकर प्रसाद हों या प्रकाश जावडेकर अथवा रमेश पोखरियाल निशंक।
इस बार हुए मंत्रिमंडल विस्तार में सस्पेंस भी कुछ ज्यादा ही था और एक्साईटमेंट भी कुछ कम नहीं था। कई महीने तैयारियां चल रही थीं। कई एजेंसियां एक साथ काम कर रहीं थी कि जिसको मंत्री बनाना है वो कितनी तरह की कसोटियों पर खरा उतर सकता है। सब कुछ तय होने के बाद जब पूरी लिस्ट बन गई तब उस लिस्ट में शामिल सभी संभावित केन्द्रीय मंत्रियों को शपथ ग्रहण की निर्धारित तिथि से दो दिन पहले दिल्ली तलब कर लिया गया सबकी पहले पार्टी अध्यक्ष के साथ अलग – अलग और सामोहिक मुलाक़ात हुई और उसके बाद्द शपथ ग्रहण से थोड़ी देर पहले ही राष्ट्रपति भवन के उसी अशोक हाल में उनको शपथ दिलाई जानी थी, वहीं प्रधानमंत्री ने उनको अलग से संबोधित भी किया। आम तौर पर किसी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में इतना कामकाज नहीं होता।
दूसरी पार्टियों की बात तो दूर खुद नरेन्द्र मोदी को भी अपने पहले प्रधानमंत्री काल में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर यह सब और इतना सब कुछ नहीं करना पड़ा था। उनके पूर्ववर्ती किसी प्रधान मंत्री ने इतनी कवायद कभी नहीं की जितनी इस बार उन्हें खुद करनी पड़ी। वो भी तब जब उनकी सरकार पूर्ण बहुमत है। भाजपा के ही 300 से ज्यादा सदस्य लोकसभा में जीत कर आये हैं और सहयोगी दल अलग से मदद को तैयार बैठे हैं इसके बाद भी इतना कुछ करना पड़े तो मानना होगा कि जरूर कोई ख़ास बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इतनी मेहनत करनी पड़ी है। जहां तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या का सवाल है , हमारे संविधान में यह साफ़ व्यवस्था है कि संसद के दोनों सदनों की कुल सदस्य संख्या का 15 फीसदी संख्या केन्द्रीय मंत्रिमंडल की हो सकती है।
इस हिसाब से केंद्र सरकार आज की तारीख में 81 मंत्रियों की सेवा ले सकती है . बुधवार को हुए मंत्रिमंडल बदलाव के बाद भी यह संख्या प्रधानमंत्री समेत 78 ही पहुँची है।
प्रसंगवश एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि 2019 में बम्पर तरीके से लोकसभा का दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद नरेन्द्र मोदी ने केंद्र में सरकार का गठन किया था तब कुल 58 मंत्रियों ने शपथ ली थी। इस बीच विवादास्पद किसान क़ानून लागू करने के लिए एक साल बाद लाये गए विधेयको के विरोध में अकाली दल समेत कई सहयोगी दस्लों के मंत्री गठबंधन के साथ ही अधबीच सरकार और मंत्रिमंडल से भी अलग हो गए जिससे मंत्रिमंडल के सदस्यों की सख्या और भी कम हो गई थी। दो साल पहले 58 सदस्यों वाले जिस मंत्रिमडल का गठन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था उसके सदस्यों में लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान और एक अन्य सहयोगी पार्टी के सुरेश अगाड़ी भी थे जिनका बीमारी की वजह से निधन हो गया था और इसी कड़ी में केन्द्रीय मंत्री थावरचंदगहलौत को राज्यपाल बना कर भेजे जाने से भी केन्द्रीय मंत्रियों की संख्या घट कर 53 रह गई थी।
ऐसे हालात में केन्द्रीय मंत्रियों की संख्या बढ़ना जरूरी भी था और इस जरूरत को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पार्टी के शीर्ष नेताओं , संघ के शीर्ष नेत्रत्व के साथ ही सहयोगी दलों के साथ भी विचार विमर्श करना पड़ा था। यह पूरी प्रक्रिया तरह से माथापच्ची का ही काम था जिसे अंततः पूरा किया ही गया , ऐसे में अगर पार्टी के कुछ लोग नाराज होकर परामर्श मंडल में शामिल हो जाते हैं तो उसमें प्रधानमंत्री कर भी क्या सकते हैं। इस प्रक्रिया में कई मंत्रियों के विभाग बदले गए। कई मंत्री प्रोन्नत होकर केबिनेट मंत्री भी बने और कुछ को बाहर भी होना पड़ा। राजकाज में ऐसा तो चलता ही रहता है। सभी खुश रखना किसी के लिए संभव नहीं है . ऐसे में नरेन्द्र मोदी से भी कुछ लोग तो नाराज होंगे ही।