वाराणसी: पिछली बार की कोरोना लहर में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के स्ववित्तपोषित योजना के अंतर्गत कार्यरत 78 संविदा शिक्षकों से बिना वेतन भुगतान के कार्य लिया गया है। इन संविदा शिक्षकों को उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित सेवा नियमावली के अन्तर्गत महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में सम्पूर्ण चयन प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद नियुक्ति मिली थीं, और पांच साल काम करने के कॉन्ट्रैक्ट को विस्तार दिया जाता रहा है। पर 2020 में इस काम को शासनादेश के बाद भी रोक दिया गया, इन पीड़ितों को ना तो कोई भुगतान किया गया और ना बहाली दी गई जिसके खिलाफ इन 78 लोगों ने आमरण अनशन के साथ शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन की जिसमें मौजूदा जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा तक को हस्तक्षेप करना पड़ा।
लेकिन तत्कालीन कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह और गंगापुर कैंपस के डायरेक्टर योगेंद्र सिंह की गलत नियत से ये मामला नहीं सुलझ सका क्योंकि त्रिलोकीनाथ सिंह की सहमति से इन शिक्षकों को हटा कर नई भर्ती की जगह बनाने की कोशिश की जाने लगी। त्रिलोकीनाथ सिंह ने ऊत्तरप्रदेश शासनादेश की अवहेलना करते हुए जुलाई 2020 से इन 78 संविदा शिक्षकों का सेवा विस्तार बिना कोई कारण बताये रोक दिया तथा इन संविदा शिक्षकों से विश्विद्यालय के समस्त कार्य परीक्षा डयूटी, पठन-पाठन तथा अन्य प्रशासनिक कार्य इस आश्वासन पर लेते रहे कि आपका जुलाई से ही सेवा विस्तार दिया जाएगा। लेकिन पांच महीने तक कोई हल ना निकलने पर संविदा शिक्षकों ने 23 दिन तक शांतिपूर्ण धरना दिया। पर शर्म तो उनको आती है जिनके पास जमीर होता है। यहाँ तो बेशर्मी की पराकाष्ठा चरम पर थी क्योंकि पूर्व कुलपति महोदय ने तो देश की सेना का ही सौदा कर दिया था।
यहाँ मंशा बाबू की बगिया में लूट और पैसे बनाने की थी क्योंकि जल्द ही त्रिलोकीनाथ सिंह का कार्यकाल खत्म होने जा रहा था तो एक शिक्षक भर्ती से एक औसतन पैसे पर लेनदेन के बाद करोड़ों बनाने का प्लान था। इस प्लान का दूसरा सहयोगी योगेंद्र सिंह है जिसने इससे पहले बलिया में भी ऐसा ही कांड किया था जिसके बाद जन विरोध पर इनका पद छीन लिया गया। खैर इस आंदोलन की वजह से ना जाने इन पीड़ितों के साथ इनके परिवार ने फांके काटे है, बिना दवाई के अपनी जान दी है, पिछले साल जब ये धरना चल रहा है इन शिक्षकों के घर मे चूल्हा नही जल रहा था तब त्रिलोकीनाथ सिंह शहर के आयोजन में शिरकत के साथ 5 स्टार में मौज उड़ा रहे थे। जबकि परिसर के कुलपति होने के नाते उनकी जिम्मेदारी थी अपने घर के सदस्यों को भूखा ना सोने दे।
गांधी के बताये रास्ते “सत्याग्रह” पर चल कर 2 नवम्बर 2020 से संविदा के शिक्षकों का ये सत्याग्रह निरंतर 23 दिनों तक विद्यापीठ में गांधी प्रतिमा के नीचे चलता रहा तथा पी एम ओ के दखल के वाबजूद भी तत्कालीन कुलपति ने इन संविदा शिक्षकों का पिछले 05 महीने के सेवा को शून्य करते हुए बिना वेतन भुगतान किये, उत्तर प्रदेश के शासनादेश 13 मार्च 2020 की अवहेलना कर आधे शिक्षकों का अवैध रिव्यू सम्पन्न करा कर ज्वाइनिंग दे दी बाकी सभी संविदा शिक्षक इस अवैध प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए और उत्तर प्रदेश शासनादेश 2020 के अनुसार बिना सेवा अवरोध के सेवा विस्तार तथा वेतन भुगतान के लिए, आज भी न्याय के लिए विश्विद्यालय की राह देख रहे हैं तथा गांधी के संस्था में न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इस साल फिर से 2021कुछ संविदा शिक्षकों के सेवा विस्तार की प्रक्रिया पूरी की जानी है। त्रिलोकीनाथ सिंह ने जानबूझकर अदालत में अपनी तरफ से देरी करवाई। अब जब विश्विद्यालय को अपना नया कुलपति मिला है तो उम्मीद है कि प्रो त्यागी इन सभी न्याय संगत मामलों में न्याय करेंगे और भूखे मरने की कगार पर खड़े इन शिक्षकों को अविलंबव न्याय देते हुए जॉइन करवाये। ताकि गलतियों को सुधारा जा सकें।
Apke nyaypriya Patrakarita ke liye salute.