कोरोना केवल महामारी नहीं है ,यह एक ऐसा रोग भी है जो इंसान का खात्मा करने के साथ ही इंसानियत , मानवीय संवेदनाओं , भावनाओं और नैतिक मूल्यों का भी खात्मा ही नहीं कर रहा है बल्कि इनकी भी अंत्येष्टि कर रहा है।
इसके साथ ही धार्मिक मान्यताएं , परंपराएं और संस्कार भी नष्ट हो रहे हैं . ऐसा हो रहा है और आए दिन इस तरह के समाचार सुनने को मिल रहे हैं कि अमुक व्यक्ति ने कोरोना से मृत्यु के बाद अपने माँ / बाप का शव ही लेने से इनकार कर दिया इस डर से कि कहीं वो भी कोरोना का शिकार न हो जाएँ। कई लोगों का संस्कार करने के लिए गाँव , मोहल्ले में चार कन्धा देने वाले नसीब नहीं हुए , फिर किसी तरह सरकारी एजेंसियों की मदद से अंतिम संस्कार की रस्म अदा की गई। ये सभी घटनाएं ज्यादातर उन हिन्दू परिवारों में हुईं जहां इंसान के पैदा होने से लेकर मरने तक सोलह से अधिक संस्कार करने का विधान है और माना जाता है कि संस्कार से इंसान को पवित्र किया जाता है।
इसी संस्कार प्रधान समाज में ही उत्तर प्रदेश के उन्नाव में कोरोना से मौत के बाद सैकड़ों लोगों को गंगा नदी के किनारे ही चार फीट गहरे 8 फीट लम्बे और 3 फीट चौड़े गड्ढे में दफ़न कर दिया जाता है और इस काम में भी इतनी लापरवाही बरती जाती है कि कुछ दिन बाद ही कुत्ते और जंगली जानवर उन गड्ढों को खोदने लगते हैं। इसी राज्य में जो आबादी और राजनीति के लिहाज से देश का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण राज्य कहा जाता है और जहां के मुखिया भी नितांत आध्यात्मिक किस्म के संत व्यक्ति हैं।
इसी राज्य के एक शहर से गंगा नदी में बह कर असंख्य शव पड़ोसी राज्य बिहार पहुँच जाते हैं। बिहार पहुँचने पर कोरोना से मारे गए इन अभागों के शवों को देख कर स्थानीय प्रशासन की यह त्वरित टिप्पणी होती है कि ये शव तो उत्तर प्रदेश के हैं इन से हमारा क्या मतलब ? बात यहीं पर ख़त्म नहीं होते कई लोग नदी के पुल के कोरोना से मरने वालों के शव नदी में फेंकते हुए भी देखे जाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। इन्हीं में एक ताजा किस्सा 23 मई का है जब उत्तर प्रदेश के ही संतकबीर नगर जिले के धर्मसिहवा कस्बे के पर्सा शुक्ल गाँव के राम ललित को कोरोना से मौत के बाद उनके बेटों , पोतों और परिजनों ने गाँव के बाहर ही एक खेत में जेसीबी मशीन से गढ़ा खोद कर दफ़न कर अंतिम संस्कार कर दिया था।
दुनिया के किसी दूसरे देश में संक्रामक रोग से मारे जाने वाले लोगों के साथ इस तरह के अपमानजनक व्यवहार पर शायद इतना आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जाता क्योंकि वहाँ मृत्यु को धार्मिक दृष्टि से इस तरह संस्कारित नहीं जाता जितना भारत में और ख़ास कर हिन्दू धर्म में किया जाता है। हमारी धार्मिक मान्यता में मृत्यु के बाद भी इंसान को अंतिम विदाई देने के लिए एक संस्कार की जरूरत होती है और इस संस्कार के साथ ही किसी इंसान के जीवन के संस्कारों की इतिश्री होती है।
हिन्दू धर्म में अन्त्येष्टि को अंतिम संस्कार कहा जाता है। यह हिंदू धर्म का आखिरी यानी 16वां संस्कार है। मान्यता है कि अगर मृत शरीर का विधिवत अंतिम संस्कार किया जाता है तो जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। मृत शरीर, इस दुनिया की सभी मोह माया को त्यागकर पृथ्वी लोक से परलोक की तरफ कूच करता है। बौधायन पितृमेधसूत्र में अंतिम स्ंस्कार के महत्व को बताते हुए ये कहा गया है कि
“जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति मृतसंस्कारैणामुं लोकम्।” इस अर्थ होता है कि जातकर्म आदि संस्कारों से व्यक्ति पृथ्वी लोक पर जीत हासिल करता है और अंतिम संस्कार से परलोक पर विजय प्राप्त करता है। एक अन्य श्लोक के अनुसार, तस्यान्मातरं पितरमाचार्य पत्नीं पुत्रं शि यमन्तेवासिनं पितृव्यं मातुलं सगोत्रमसगोत्रं वा दायमुपयच्छेद्दहनं संस्कारेण संस्कृर्वन्ति।।
अगर व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो माता, पिता, आचार्य, पत्नी, पुत्र, शिष्य, चाचा, मामा, सगोत्र, असगोत्र का दायित्व ग्रहण करना चाहिए और संस्कारपूर्ण मृत शरीर का दाह करना चाहिए। वेदों और शाश्त्रों में वर्णित नियमों के अनुसार अंतिम संस्कार जीव की मृत्यु उपरान्त किया जाता है ताकि जीव-आत्मा को इस भौतिक जगत से जो की चिंतोंऔ से परिपूर्ण है से मुक्ति मिल सके और अपने अगले पड़ाव की और बड़े शास्त्रों के अनुसार मृत-शरीर या स्थूल-शरीर का दाहसंस्कार २४ घंटों के अंदर-अंदर वेदों में वर्णित विधि और नियमों के अनुसार कर देना चाहिए। समय पर दाहसंस्कार न करना या ज्यादा समय तक मृत शरीर को खुले वातावरण में रखने से उसकी और नकारात्मक शक्तियां आकर्षित होना शुरू हो जाती है जो न तो उस मृत-शरीर के लिए ही अच्छा होता है और न ही उसके परिवार वालों के लिए।
हम सभी जानते है कि यह पूरा ब्रह्माण्ड पंचतत्व से बना है ठीक उसी प्रकार हमारे शरीर का निर्माण भी पंचतत्वों से ही हुआ है। ये पांच तत्व :- पृथ्वी ( मिटटी ), जल ( वाष्प ), वायु ( हवा ), अग्नि ( आग ) और आकाश ( नभ ) है. ये पांच तत्व सर्वत्र विद्यमान है.जब किसी जीव की मृत्यु हो जाती है तब यह अत्यंत जरूरी हो जाता है कि उस स्थूल-शरीर का दाहसंस्कार अर्थात अग्नि के द्वारा जला देना चाहिए. क्यूंकि, अग्नि ही परम साक्षी और पवित्र है और पूरी दुनिया में इससे बड़ा और कोई हतियार नहीं है. अग्नि के माध्यम से ही मृत-शरीर में विधमान पंचतत्वों को पृथक किया जा सकता है. इन पांच तत्वों का स्वतंत्र होना उतना ही आवयशक होता है जितना की भौतिक शरीर से आत्मा का।
अन्त्येष्टि एक संस्कार है। यह द्विजों द्वारा किये जाने वाले सोलह या इससे भी अधिक संस्कारों में एक है मनुयाज्ञवल्क्यस्मृतिएवं जातुकर्ण्यके मत से यह वैदिक मन्त्रों के साथ किया जाता है।ये संस्कार पहले स्त्रियों के लिए भी होते थे, किन्तु बिना वैदिक मन्त्रों के (किन्तु विवाह संस्कार में वैदिक मन्त्रोंच्चारण होता है) और शूद्रों के लिएभी बिना वैदिक मन्त्रों के।