एक अच्छा प्रशासक और सरकार कभी भी द्वेषभाव से काम नही करती है। वह अपना एजेंडा, अपने वादे और अपनी मुख्य विचारधारा के साथ टिकी तो रहती है पर प्रशासन में वह नियम कानूनो की शुचिता को बनाये रखती है और उसका प्रशासनिक निर्णय द्वेष रहित ही होता है। पर लगता है केंद्र सरकार का स्थायी भाव ही द्वेष भाव है। सरकार ने अब अलपन बंदोपाध्याय को धारा 51 डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के अंतर्गत एक नोटिस जारी किया है। जिसमे एक साल की सज़ा का प्राविधान है। इस धारा के अंतर्गत, केंद्रीय सरकार के आदेश न मानने या उसमे बाधा पहुंचाने पर दंड का प्राविधान है।
अलपन बंदोपाध्याय से तीन दिन में ही यह लिखित रूप से बताने के लिये कहा गया है कि, क्यों न धारा 51 (b), डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के अंतर्गत उनके खिलाफ कार्यवाही की जाय ?
यह नोटिस उनके रिटायर होने के कुछ ही घन्टे पहले उन्हें दी गयी है। उन्होंने अपना सेवा विस्तार, जो उन्हें 31 अगस्त तक केंद्र सरकार के ही आदेश से मिला था, लेने से मना कर दिया और 31 मई 2021 को ही अपनी अधिवर्षता की आयु पूरी कर के रिटायर हो गए। अब वे मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार हैं। डीओपीटी की यह अजीबोगरीब कार्यवाही देखिए, कि उनके रिटायरमेंट के ही दिन उनका वे केंद्र में तबादला कर रहे हैं। जिसे अलपन ने नही माना और उसी दिन वे रिटायर हो गए।
अब डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट क्या है, इसे संक्षेप में देखिए। यह एक्ट, 2004 में आयी भयंकर सुनामी के कारण राहत कार्यो में कोई बाधा न हो, इसलिए वर्ष 2005 में यूपीए सरकार के समय संसद द्वारा पारित किया गया है। 24 मार्च 2020 को पहली बार यह एक्ट देश मे कोरोना महामारी के समय, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉर्टी द्वारा लागू किया गया। इसका उद्देश्य, महामारी से निपटने में सभी विभागों और लोगो की वैधानिक सहायता लेना है। यह एक्ट जिला मैजिस्ट्रेट को दवा, ऑक्सीजन और अन्य हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के संबंध में कोई बाधा न हो, इसलिए राजकार्य की सुगमता के लिये, अतिरिक्त शक्तियां देता है जिससे महामारी का मुकाबला किया जा सके। केंद्रीय गृह सचिव इस अथॉर्टी ( एनडीएमए ) के पदेन चेयरमैन होते हैं और यह एक्ट पूरे भारत मे 30 जून 2021 तक लागू है।
आईएएस अफसरों के कैडर नियंत्रण और अन्य कार्यो का निष्पादन डीओपीटी ( डिपार्टमेंट ऑफ कार्मिक एंड ट्रेनिंग ) करता है पर यह नोटिस डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के अंतर्गत जारी किया गया है जिसे गृह मंत्रालय देखता है।
नोटिस में कहा गया है कि चूंकि प्रधानमंत्री जो, एनडीएमए के अध्यक्ष है और वे यास तूफान के संदर्भ में उसकी समीक्षा करने गए थे, तो उस अवसर पर मीटिंग से अनुपस्थित रहना, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा 51 का उल्लंघन है। यही दोष केंद सरकार अलपन बंदोपाध्याय का बता रही है।
नोटिस के अनुसार-
” 28 मई को कलाईकुंडा में पीएम द्वारा एक मीटिंग आयोजित की गयी थी। उस मीटिंग में मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भी बुलाया गया था। पीएम और उनके दल के लोगो ने 15 मिनट तक के लिये मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की प्रतीक्षा की। थोड़ी देर बाद मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव दोनो आये और कुछ देर बाद ही चले गए। यह कृत्य डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट धारा 51 (b) के अंतर्गत कदाचार में आता है।”
कानूनी जानकारों का कहना है कि, इस नोटिस में, सरकार को यह साबित करना होगा कि-
” दोषी अधिकारी बिना किसी उचित काऱण और वैधानिक आधार के जानबूझकर कर उक्त मीटिंग से अनुपस्थित रहा। “
केंद्र सरकार यह साबित नही कर पायेगी क्योंकि, मुख्य सचिव तो मुख्यमंत्री के साथ ही थे। वे मुख्यमंत्री के साथ प्रधानमंत्री के सामने, उक्त मीटिंग में गए भी। ममता बनर्जी ने जो पत्र प्रधानमंत्री को लिखा है उसमें उन्होंने यह कहा है कि वे पीएम से पूछ कर ही मीटिंग से बाहर मुख्य सचिव के साथ अगले दौरे के लिये गयी थीं। यही बात उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में भी कही है। यही बात कोलकाता के अखबारों ने छापा भी है।
अब अलपन बंदोपाध्याय इस नोटिस का क्या जवाब देते हैं यह तो उनके जवाब के बाद ही पता लगेगा। पर मुख्य सचिव की एक एक मीटिंग का मिनिट्स रहता है। उनका मिनिट दर मिनिट इंगेजमेंट फाइल पर रहता है। उनके द्वारा की गयी, हर समीक्षा की डिटेल फाइल पर रहती है। जिस मुख्य सचिव को, उनके कोविड से जुड़े काम को सराहनीय पाते हुए, हुए केंद्र सरकार ने, राज्य सरकार की सिफारिश पर, 31 अगस्त 2021, तक का सेवा विस्तार देती है, वही केंद्रीय सरकार एक मीटिंग में जिंसमे वे मुख्यमंत्री के साथ गए भी हैं, उन्हें, इस आधार पर नोटिस जारी कर देती है कि, उन्होंने महामारी के संदर्भ में जानबूझकर लापरवाही बरती और मीटिंग में उपस्थित नहीं हुए।
पर केंद्र सरकार को यूपी में महामारी की भयावह दुरवस्था, गंगा में बहते शव, रेत में दफन मुर्दे, उनके कफ़न घसीटते लोग, ऑक्सीजन की कमी से तड़प तड़प कर मरते बीमार नागरिक, घर की जमापूंजी बेच कर निजी अस्पतालों में अपना सब कुछ गंवा कर मरीज का शव लेकर लौटते लोग, चुनाव के दौरान सैकड़ो मरे हुए शिक्षक और कर्मचारी नहीं दिखते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में भी वही दल सत्ता में है जो केंद्र में है। पर एक विपक्षी दल द्वारा शासित पाश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय, ज़रूर दिख गए जो मीटिंग में गए भी थे और मुख्यमंत्री के साथ ही थे।
अजीब वक़्त है, और अजीब सरकार भी, न इलाज मयस्सर है, न कफ़न दफन, न सम्मान से अंतिम संस्कार और अफसर चाहे जितना भी सीनियर हो वह चैन से रिटायर भी नहीँ हो पा रहा है।