महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में बीते 10 मार्च 2021 को अतिथि शिक्षिका डॉ वर्षा ( बदला हुआ नाम) के साथ कार्यस्थल पर शोषण किया जाता है, इस शोषण को करने वाले व्यक्ति और घटनास्थल वाले कॉलेज के डायरेक्टर डॉ योगेंद्र सिंह और मुख्य अभियुक्त सर्वेश मिश्रा के खिलाफ पीड़िता के द्वारा लिखित में शिकायत महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रोफेसर त्रिलोकीनाथ सिंह को देने के बाद भी आज इस घटना के 20 दिन से ज्यादा बीतने पर अभी तक ना तो कुलपति के कानों में जूओं के रेंगने की कोई सुगबुगाहट है ! और ना ही विश्विद्यालय के रजिस्ट्रार साहब लाल मौर्य की तरफ से कोई पहल होती दिख रही है इस उदासीनता का कारण क्यों ! खुलासा भी इसी पोस्ट में है।
दरअसल आरोपी सर्वेश मिश्रा के बारे में बताया जाता है कि विश्विद्यालय के रजिस्ट्रार साहब लाल मौर्या के द्वारा उसको मौखिक रूप से गोद लिया गया है, बेटे की तरह उसको ट्रीटमेंट दिया जाता है, वहीं दूसरी तरह दूसरे आरोपी डॉ योगेंद्र सिंह पर पहले से ही कई मुकदमे और घटनाएं है जिसपर तुरंत FIR करने के निर्देश है, इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा। पर आज तक कोई कारवाई नहीं हुई ! क्योंकि ऐसे मामलों की फ़ाइल त्रिलोकीनाथ सिंह के द्वारा दबा दी गई, यहां तक कि खुद योगेंद्र सिंह की डिग्री पर भी सवाल है, कुलपति के ऐसा करने की एक बड़ी वजह है, योगेंद्र सिंह विश्विद्यालय में कुलपति और रजिस्ट्रार के साथ मिलकर भयंकर रूप से विश्विद्यालय को चूना लगा कर खोखला करने में बराबर का भगीदार है रुपयों का बंटवारा भी बराबर है तीनों में।
अब देखिए कैसे ये तीन तिकड़ी मिलकर एक के बाद एक अपराध और भ्रष्टाचार कर रही है, इनकी सीधी मंशा इस मामलों को न्याय ना देकर दबा देना है इसकी वजह साफ है एक तो योगेंद्र सिंह इनका मुँह लगा है, दूसरा अगले महीने कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह, रजिस्ट्रार साहब लाल मौर्या का कार्यकाल खत्म हो रहा है, तो ये अपने हम प्याले डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश मिश्रा को बचाने के लिए भरपूर जुगाड़ में है। कायदे से जिम्मेदारी तो पूरे विश्विद्यालय प्रशासन और मौर्या की सबसे ज्यादा है, अभी तक विश्विद्यालय में मौजूद सेक्सुअल हैरेसमेंट में बनी कमेटी क्या कर रही है???
कार्यस्थल पर सरकार के द्वारा बताई गई विशाखा गाइडलाइंस की कोई चर्चा नहीं है, कहीं दूर दूर तक। पीड़ित न्याय के लिए भटक रही है और सर्वेश मिश्रा के द्वारा खुलेआम इस मामलें को लेकर बयानबाज़ी की मामला सुलझ जायेगा !
एक बड़ा सवाल खड़ा करता है ! विश्विद्यालय प्रशासन और कुलपति और रजिस्ट्रार मिलकर केवल घोटालें और दलाली में लिप्त है। तक्षकपोस्ट पर रजिस्ट्रार की भ्रस्टाचार की कई कहानी पहले भी लिखी गई है जहां जिक्र है कैसे परीक्षा सामग्री खरीदने में कई जिलों में मौर्या ने घोटाला किया है। कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह पहले भी IACCS IAF 7900 करोड़ के केस में आरोपी है। मंशा जब अपराध करने की हो तो अपराधी को सज़ा भी नहीं दे सकता इस मानसिकता वाला व्यक्ति ये बात त्रिलोकीनाथ सिंह पर सटीक बैठती हैं।
घटना की शिकायत के बाद भी इन दोनों व्यक्तियों पर क्यों कोई कारवाई नहीं हुई
अभी तक ना कोई जांच कमेटी बनी है ! ना किसी ने डॉ वर्षा से संपर्क किया है , डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश मिश्रा खुलेआम महिला से जुड़े लोगों को ये कहते घूम रहे है कि मामला सुलह हो जायेगा ! मतलब साफ है कि कुलपति और रजिस्ट्रार साहब लाल मौर्या कुछ करना नहीं चाहते ! डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश को साफ तौर पर बचाया जा रहा है। कुलपति को लोकल और आरएसएस का समर्थन है सुनील अंबेकर जैसे व्यक्ति इसके रहनुमा है इसलिए शायद त्रिलोकीनाथ सिंह राष्ट्रीय महिला आयोग के कारवाई करने के आदेश को भी अपने जूतों की नोंक पर रखकर चल रहे है। आरएसएस और भाजपा की मानसिकता महिलाओं को लेकर क्या है ये सब जानते है। न्याय करने के मामले में ये पूरी दुनिया ने हाथरस कांड में देख लिया।
सवाल तो कड़े है, पर तक्षकपोस्ट पूछना चाहता है कि क्या कुलपति, और रजिस्ट्रार की घर की किसी महिला के साथ ऐसी घटना होती, और डॉ योगेंद्र सिंह और सर्वेश मिश्रा दोषी होते तब भी कोई कारवाई नहीं होती ??? कुलपति की पत्नी खुद को प्रथम महिला बताती है विश्विद्यालय की कैसी प्रथम महिला है वो ! जब अपने घर में बच्चों को न्याय नहीं दिलवा सकती है, न्याय मांगने वाली महिला की मानसिक स्थिति का अंदाजा क्यों नहीं समझ पा रही कि एक महिला किस तरह की सामाजिक वर्जना और मानसिक प्रताड़ना को झेलती है ऐसे शिकायत के बाद। जल्द से जल्द डॉ वर्षा को सुरक्षा मिलनी चाहिए और इन आरोपियों को डॉ वर्षा के साये से दूर किया जाए ताकि उनकी सुरक्षा में कोई सेंध ना लगे।
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डॉ वर्षा को अपनी इज्जत और सम्मान के बदले अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है। घटना के लिए न्याय की उम्मीद में आज भी वो इंसाफ की राह देख रही है जो वाकई हमारे सभ्य समाज के मुंह पर एक बदनुमा दाग है।
पीड़िता के द्वारा इस घटना के बारे में लिखित शिकायत ऊत्तरप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल समेत , राज्य महिला आयोग, और राष्ट्रीय महिला आयोग को भी दी गई है। पीड़िता ने राजभवन और राज्य महिला आयोग को स्पीड पोस्ट के द्वारा अपनी शिकायत भेजी है जिसकी रिसिविंग कॉपी तक्षकपोस्ट के पास है! पर तक कोई कारवाई की खबर नहीं है। शायद ये सभी संस्था केवल प्रदेश और केंद्र की सत्ता में भक्तिभाव को प्रदर्शित करने के लिए रह गई है। दूसरी तरफ शायद उनकी मंशा ये भी हो कि पीड़ित थककर बैठ जायें। जैसा अब तक उत्तर प्रदेश चल में चल रहा है,बात चाहे सेंगर की करें या हाथरस घटना की!
मजेदार बात ये है कि पिछले साल से राज्य महिला आयोग के सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने के बाद कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है, मतलब चू चू का मुरब्बा ! कितनी संवेदनशील है सरकार महिला हिंसा को लेकर ये इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से संबंद्धता वाले कॉलेज डॉ विभूति नारायण गंगापुर कैंपस में एक अतिथि शिक्षिका डॉ वर्षा ( बदला हुआ नाम, पीड़ित की पहचान हम नहीं उजागर कर सकते है,) को कॉलेज के निदेशक डॉ योगेंद्र सिंह के चैंबर में बुलाया जाता है , और उनके साथ बदसलूकी के साथ भद्दे और (Derogatory ) अपमानजनक भाषा का कई लोगों की मौजूदगी में ना सिर्फ डॉ वर्षा के लिए प्रयोग किया जाता है, बल्कि उनको धमकी भी दी जाती है। डॉ योगेंद्र सिंह के द्वारा, धमकी और नौकरी से बाहर करके धमकाने के बहाने मंशा कुछ और ही थी, जिसका जिक्र पीड़िता ने अपनी लिखित शिकायत में किया है इसमें योगेंद्र सिंह के साथ-साथ उसी कैंपस में पढ़ाने वाले शिक्षक डॉ सर्वेश मिश्रा का भी हाथ है।
क्या कहता है भारत का कानून-
Indian penal Court और (POSH act 2013 ) के अंदर ये मानसिक बलात्कार की श्रेणी में आता है, किसी भी कार्यस्थल पर ऐसी घटना को IPC 358, और 509 में शिकायत के बाद रजिस्टर्ड करवाना जरूरी है, विशाखा गाइडलाइंस और निर्भया कांड के बाद भी बहुत सारे बदलाव हुये है , जिसका पालन किसी भी कार्यस्थल पर जरूरी है। कुछ ऐसी बातें है जो कार्यस्थल पर अपराध की श्रेणी में आता है देखिये।