ज्ञानेन्द्र पाण्डेय: केरल ,तमिलनाडु , पश्चिम बंगाल और असम चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव के लिहाज से मंगलवार 6 अप्रैल का दिन बहुत ख़ास माना जाएगा। ख़ास दिन इसलिए क्योंकि यह एक ऐसा दिन है जिस दिन सभी राज्यों में वोट डालने का काम होना है। असम विधान सभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव का यह अंतिम दिन होगा और बंगाल में भी तीसरे चरण का चुनाव संपन्न होगा। केरल , तमिलनाडु और पुदुचेरी में आज एक ही दिन चुनाव होना है, इसलिए सिर्फ बंगाल को छोड़ कर शेष तीन राज्य विधानसभाओं के चुनाव के साथ ही असम विधानसभा का चुनाव भी आज ही संपन्न हो जाएगा। बंगाल में चूँकि चुनाव की प्रक्रिया आठ चरणों में पूरी होनी है इसलिए यहाँ यह सिलसिला इस महीने के अंत (29 अप्रैल ) तक चलेगा ।
2 मई को सभी राज्यों में वोटों की गिनती का काम एक साथ होने के बाद्द नतीजों की घोषणा कर दी जायेगी। इस बार भाजपा हर राज्य में अपनी जबरदस्त राजनीतिक पहचान बनाने की गरज से चुनाव मैदान में है। असम में भाजपा की पूरी कोशिश साम दाम दंड भेद से सरकार में वापसी की है, और बंगाल में तोड़ – फोड़ के जरिये भाजपा तृणमूल कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश कर रही है। पुदुचेरी में तो चुनाव की घोषणा से पहले ही तोड़ – फोड़ हो चुकी है। केरल में उसे इन्तजार करने से परहेज नहीं है, और तमिलनाडु में भाजपा अपने सहयोगी दल अन्ना द्रमुक के साथ मिल कर विधान सभा की ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने की जी – तोड़ कोशिश भी भाजपा कर ही रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उसे अपनी कोशिशों में कितनी सफलता मिल पाती है। सवाल यह भी है कि क्या इस बार भाजपा तमिलनाडु विधान सभा में पहुँचने का अपना वर्षों पहले देखा सपना पूरा करने में कामयाब हो भी पायेगी कि नहीं। भाजपा इस बार अन्नाद्रमुक के साथ मिल कर विधानसभा की 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
तमिलनाडु की राजनीति में भाजपा के दखल को देखते हुए राजनीति के विशेषज्ञों की एक राय यह भी है कि द्रविड़ राजनीति के दो बड़े चेहरों (करणानिधि और जयललिता) के नहीं होने से तमिलनाडु की राजनीति अब नये मोड़ पर खड़ी है। जयललिता और करुणानिधि के निधन के बाद अन्नाद्रमुक और द्रमुक में नेतृत्व को लेकर संकट पैदा हो गया है। आंतरिक गुटबाजी के कारण ये दोनों दल अब पहले की तरह मजबूत नहीं रह गए हैं।तमिलनाडु की दोनों प्रमुख द्रविड़ पार्टियां-सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक और मुख्य विपक्षी दल द्रमुक अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ समझौते को अंतिम रूप देने के बाद एक – दूसरे के खिलाफ आक्रामक मुद्रा में आमने – सामने हैं।अन्नाद्रमुक की मुख्य सहयोगी पार्टी भाजपा है तो द्रमुक की मुख्य सहयोगी पार्टी कांग्रेस है। दिलचस्प बात यह है कि केंद्र समेत देश के आधे से ज्यादा राज्यों में बारी – बारी से सरकार बनाने वाली देश ये दोनों राष्ट्रीय पार्टियां – कांग्रेस और भाजपा इस राज्य में अपने – अपने सहयोगी क्षेत्रीय दलों के भरोसे चुनाव मैदान में हैं .तमिलनाडु में पहली बार है कि राज्य में करुणानिधि और जयललिता जैसे कद्दावर नेताओं की गैर मौजूदगी में विधानसभा का बिना चुनाव लड़ाजा रहा है देखने वाली बात यह भी होगी कि इन दोनों नेताओं की चुनाव से अनुपस्थिति का फायदा उठाने में कौन सा धडा कामयाब हो पाता है।
तमिलनाडु की राजनीति में इस बार अन्नाद्रमुक के स्थान पर द्रमुक की सरकार बननी चाहिए लेकिन द्रमुक के लिए चिंता की बात यह है कि एम के स्टालिन के नेतृत्व में विपक्ष की यह पार्टी अन्नाद्रमुक के खिलाफ उतने आक्रामक तरीके से सामने नहीं आ सकी जितने आक्रामक तरीके से उसे आना चाहिए था . इन हालातों में द्रमुक के लिए यह चुनाव करो या मरो की स्थिति वाला हो गया है , क्योंकि इस चुनाव में विफल होना द्रमुक को बहुत महंगा पड़ेगा।
द्रमुक दस साल से सत्ता से बाहर है, इसलिए, स्टालिन के लिए सत्ता हासिल करने का यह आखिरी मौका हो सकता है, क्योंकि इस चुनाव में हारने पर पार्टी के भीतर परेशानी पैदा होगी। इसके अलावा द्रमुक की हार से अन्नाद्रमुक और मजबूत बनकर उभरेगी। इसलिए स्टालिन ने पार्टी के निवर्तमान विधायकों पर भरोसा बनाए रखा है और उनमें से अधिकांश को फिर से पार्टी का टिकट दिया है। द्रमुक ने अपने सहयोगियों को कम सीटों के लिए मना लिया है और सीट बंटवारे को सुचारू ढंग से पूरा किया है। कांग्रेस को 25 सीटें दी गईं, जबकि अन्य सहयोगी दलों को एक से छह के बीच सीटें दी गई हैं। दिलचस्प है कि वाइको की पार्टी एमडीएमके सहित कई गठबंधन सहयोगी द्रमुक के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे। द्रमुक कार्यकर्ता जीत के प्रति आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अन्नाद्रमुक के अंदरूनी कलह के चलते दिनाकरन की पार्टी एएमएमके द्वारा वोटों के बंटवारे से द्रमुक को फायदा होगा। दूसरी तरफ अन्नाद्रमुक तीसरी बार सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है। विश्लेषकों का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ गठबंधन करना उसको महंगा पड़ा था। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन में भाजपा को बीस सीटें दी गई हैं, इसलिए यह देखना होगा कि क्या अन्नाद्रमुक के लिए यह फैसला महंगा साबित होता है या नहीं। हालांकि भाजपा के प्रति सहानुभूति रखने वालों का मानना है कि भाजपा के साथ गठबंधन से अन्नाद्रमुक को अतिरिक्त फायदा होगा, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में तमिलनाडु में हिंदू वोट बैंक बढ़े हैं।अनिश्चय के इस माहौल में इस बार राज्य में त्रिशंकू विधानसभा की स्थिति भी बन सकती है। ऐसे में किसी भी पार्टी या गठबंधन को अकेले अपने बूते सरकार बनाने में दिक्कत आ सकती है।