ज्ञानेन्द्र पाण्डेय: मजहब मतलब धर्म और इबादत मतलब पूजा या अंगरेजी में कहें तो वोर्शिप। इस हिसाब से मजहबी इबादत का मतलब हुआ धर्म की पूजा या धार्मिक पूजा। यह धर्म कोई भी हो सकता है इसे आप हिन्दू , इस्लाम , इसाई , बौद्ध या कुछ और , कुछ भी नाम दे सकते हैं।
ये हैं तो सब एक ही जैसे लेकिन हमने यानी इंसान ने इनको अलग – अलग नाम दे दिए हैं। नाम अलग अलग हैं तो इनकी पूजा विधियां भी अलग अलग हैं। जिस स्थान में पूजा , इबादत या वोर्शिप की जाती है , वो स्थान भी एक – दूसरे से अलग हैं और इन स्थानों के नाम भी अलग – अलग हैं। हिन्दू इसे मंदिर , इसाई चर्च और मुस्लिम इसे मस्जिद कहते हैं और अपने – अपने हिसाब से उसे याद करते हैं , उससे अपने गलत कामों के लिए माफी मांगते हैं और अपना जीवन सुखमय बनाने के लिए प्रार्थना करते हैं। करते सभी अलग – अलग तरीकों से हैं लेकिन हर धर्म में बहुत कुछ एक जैसा ही होता है। एक उदाहरण उपवास का लिया जा सकता है। उपवास करने का है तो एक वैज्ञानिक आधार लेकिन सभी धर्मों के अनुयायियों ने इसे अपने – अपने तरीके का एक धार्मिक आधार दे दिया है। हिन्दू धर्म में साल में छः महीने के अंतराल में दो बार नौ – नौ दिन के नवरात्र व्रत के साथ ही हर महीने की एकादशी और पूर्णिमा को किये जाने वाले व्रतों को मिला कर साल के कुल उपवासों की संख्या 42 दिन की हो जाती है। इसी तरह इसाई धर्म में रविवार को मनाये जाने वाले ईश्टर पर्व से पहले 40 दिन उपवास पर रहने का नियम है। ऐसा ही सिलसिला इस्लाम में 30 दिन के रोजे के बाद ईद का त्यौहार मनाये जाने के रूप में देखा जाता है। जैन धर्म में भी साल में एक बार पर्यूषण पर्व का आयोजन होता है और चालीस दिन के इस पर्यूषण पर्व में व्रत पर रहने की परंपरा है। कभी – कभी ऐसा संयोग भी आता है जब सभी धर्मों के पर्वों का सिलसिला एक ही क्रम में एक के बाद एक लगातार कई दिन तक बना रहता है।कुछ ऐसा ही संयोग इस बार भी बना है पिछले एक हफ्ते से पर्वों का यह सिलसिला जारी है।
आज 2 अप्रैल दिन शुक्रवार है और इसाई मत के हिसाब से गुड फ्राईडे का संयोग है। इससे चार दिन पहले 29 मार्च को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रंगों के हिन्दू पर्व होली का पूरे देश में रंगीन धार्मिक आयोजन हुआ था। यह अद्भुद संयोग ही है कि होली खेलने से एक दिन पहले 28 मार्च को बुराई की प्रतीक होलिका का दहन किया गया था उसी दिन इस्लाम धर्म को मानने वालों ने शब् – ए – बरात पर्व का आयोजन किया था। हिन्दू , इसाई और इस्लाम धर्मों के इन धार्मिक पर्वों के एक साथ आयोजन के सन्दर्भ में इन सभी के बारे में जानना कम दिलचस्प नहीं होगा। तो सबसे पहले चर्चा शब – ए – बरात की। इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने को शबान कहते हैं और उस महीने की 15 वीं तारीख को शब-ए-बारात के नाम से जाना जाता है। इस बार यह त्योहार 28 मार्च और 29 मार्च को लगभग होली के साथ ही मनाया गया था । इस पर्व के मौके पर पूरी रात मस्जिदों में इबादत करते हुए सभी लोग अपने-अपने बुजुर्गों के लिए फातिहा पढ़ते हैं। इस साल यह एक तरफ इत्तफाक था कि एक तरफ मोहल्लों में होलिका दहन की रस्म अदा की जा रही थी तो दूसरी तरफ इबादत का दौर भी चल रह था ।
शब-ए-बारात साल में एक ख़ास मौका होता है जब अल्लाह के बंदे परवरदिगार से ख़ास मिन्रानत कर अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं, और इसके साथ ही अल्लाह से उन तमाम लोगों के भी गुनाह माफ कर उन्हें जन्नत में जगह देने की दुआ करते हैं, जो दुनिया से गुजर गए हैं। कहते हैं कि अल्लाह इस रात केवल दो लोगों को छोड़ कर सभी को उनके गुनाहों की माफी देते हैं। लेकिन इस रात केवल उन दो लोगों के गुनाहों की माफी नहीं होती एक वो जो लोगों से दुश्मनी रखते हैं और दूसरे वो जिन्होंने किसी का जीवन छीन लिया हो। शब-ए-बारात के दिन कई लोग रोजा भी रखते हैं लेकिन कुछ उलेमा मानते हैं कि शब-ए-बारात के दिन रोजा रखना जरूरी नहीं है। चूंकि शबान के महीने के बाद रोजा रखने वाला रमजान का महीना शुरू हो जाता है।
ईसाई समुदाय के लिए क्रिसमस की तरह गुड फ्राइडे भी अहम त्योहारों में से एक है। गुड फ्राइडे को ‘होली फ्राइडे’ या ‘ग्रेट फ्राइडे’ भी कहा जाता है।ईसाई समुदाय ईसा मसीह को मानते हैं और इस दिन उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था। यानी गुड फ्राइडे खुशी का त्योहार नहीं है। लेकिन ईसा मसीह को सूली चढ़ाने के तीन बाद ही वे फिर ज़िंदा हो उठे थे, जिसकी ख़ुशी में ईस्टर संडे मनाया जाता है। क्योंकि ‘गुड फ्राइडे’ को ईसाई धर्म के लोग ‘शोक दिवस’ की तरह मनाते हैं इसलिए कई लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल इस बात को लेकर आता है कि जिस दिन यीशू को सूली पर चढ़ाया गया, उस दिन को ‘गुड’ यानी अच्छा कैसे कहा जा सकता है?असल में, ईसाई समुदाय में यह मान्यता है कि ईसा मसीह ने अपने समुदाय की भलाई के लिए अपनी जान दे दी थी, इसलिए इस दिन को ‘गुड’ यानी अच्छा कहकर संबोधित किया जाता है।
क्योंकि यह दिन शुक्रवार को आता है इसलिए इसे ‘गुड फ्राइडे’ कहा जाता है। इस दिन को उनकी कुर्बानी दिवस के रूप में मनाते हैं। ‘जिस दिन ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाया गया था, उस दिन फ्राइडे यानी कि शुक्रवार था। तब से उस दिन को गुड फ्राइडे कहा जाने लगा।गुड फ्राइडे को ईसाइ समुदाय के लोग बड़े स्तर पर मनाते है। उनके घरों में गुड फ्राइडे के 40 दिन पहले से ही प्रार्थना और उपवास रखना शुरू कर दिया जाता है। गुड फ्राइडे के उपवास में शाकाहारी खाना ही खाया जाता है। 40 दिन बाद जब उपवास ख़त्म होता है, तो लोग गुड फ्राइडे के दिन चर्च जाते हैं और ईसा मसीह को याद कर शोक मनाते हैं। इस दिन ईसा की अंतिम बातों की विशेष व्याख्या की जाती है, जो त्याग, क्षमा, सहायता और सामंजस्य पर केंद्रित होती है।